मौन हुए खुद को हिंदू घोषित करने वाले आशीष खां के सुर
मैहर घराने के संस्थापक उस्ताद अलाउद्दीन खां के सरोद वादक पौत्र का कैलीफोर्निया में निधन
कला के क्षेत्र में भारत के सर्वोच्च संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से हुए सम्मानित
सर्वश्रेष्ठ पारंपरिक विश्व संगीत एल्बम श्रेणी में ग्रेमी पुरस्कार के लिए किए गए थे नामांकित
जन्म: 5 दिसंबर 1939मृत्यु: 14 नवंबर 2024सतना। संगीत के क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध मैहर घराने के संस्थापक उस्ताद अलाउद्दीन खां के पौत्र आशीष खां देवशर्मा (85) का 14 नवंबर को कैलीफोर्निया अमेरिका में निधन हो गया। 2006 में उन्होंने खुद को हिंदू बताते हुए अपने नाम के आगे देवशर्माजोड़ना शुरू कर दिया था। बाबा अलाउद्दीन खां से सीधे संगीत की शिक्षा प्राप्त करने वाले वे आखिरी जीवित व्यक्ति रहे। इनके निधन के बाद अलाउद्दीन खां शिक्षित शिष्य अब कोई नहीं रह गया है। संगीत की दुनिया में विख्यात सरोद वादक के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले आशीष को कला के क्षेत्र में भारत के सर्वोच्च ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ 2005 में दिया गया था। 2006 में वे ‘सर्वश्रेष्ठ पारंपरिक विश्व संगीत एल्बम’ श्रेणी में ‘ग्रेमीपुरस्कार’ के लिए नामांकित किए गए थे। वे संयुक्त राज्य अमेरिका में कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ द आर्ट्स और अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में भारतीय शास्त्रीय संगीत के सहायक प्रोफेसर भी रहे।
मैहर में जन्म, मैहर में शिक्षा आशीष खां का जन्म 5 दिसंबर 1939 को मैहर में हुआ था। उनका लालन पालन मैहर में ही उनके दादा उस्ताद अलाउद्दीन खां ने किया। मैहर में ही उनकी शिक्षा दीक्षा भी हुई। 5 साल की आयु से ही आशीष को उस्ताद अलाउद्दीन खां ने संगीत की शिक्षा देनी शुरू कर दी थी। आशीष को उस्ताद अलाउद्दीन ने अपने मुख्य वाद्य सरोद की ही शिक्षा दी और 12 से 13 घंटे का संगीत का प्रशिक्षण और रियाज करवाते थे। इस वजह से वे अल्पआयु में ही संगीत में निपुण हो गए थे। 13 साल की आयु में उन्होंने अपने दादा बाबा अलाउद्दीन खां के साथ आल इंडिया रेडियो के नेशनल प्रोग्राम नई दिल्ली में अपना पहला प्रदर्शन किया था। इसी साल उन्होंने अपने दादा और पिता अली अकबर खां के साथ कोलकाता के तानसेन संगीत सम्मेलन में अपनी कला का प्रदर्शन किया। दादा के अलावा इनके सरोद वादन को उनकी पिशिमा (बुआ) अन्नपूर्णा देवी ने निखारा। इनके पिता अली अकबर खां भी शास्त्रीय संगीत के साधक और प्रसिद्ध सरोदवादक थे।
संगीत के क्षेत्र में बनाई वैश्विक पहचान आशीष खां देबशर्मा ने भारतीय उप महाद्वीप के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी शास्त्रीय संगीत विधा का लोहा मनवाया। इसके साथ ही संगीत के क्षेत्र में उन्होंने कई प्रयोग भी किए। विश्व के प्रसिद्ध सरोद वादक के रूप में पहचान बना चुके आशीष ने भारतीय संगीत को वैश्विस्रूप देने के लिए उस्ताद जाकिर हुसैन के साथ इंडो-अमरिकन म्यूजिक ग्रुप ‘शांति’ की स्थापना की। इसके साथ ही उन्होंने फ्यूजन ग्रुप ‘द थर्ड आई’ की स्थापना की। वे रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड के अध्येता बनने वाले पहले भारतीय संगीतकार रहे। वे सैन राफेल कैलिफोर्निया में अली अकबर कॉलेज ऑफ म्यूजिक, कनाडा में अल्बर्टा विश्वविद्यालय और वाशिंगटन विश्वविद्यालय में संगीत शिक्षक रहे। उन्होंने पूरे अमेरिका, कनाडा, यूरोप और अफ्रीका के साथ-साथ भारत में भी शिष्यों को संगीत सिखाया।
फिल्मों में भी दिया संगीत आशीष ने कई उल्लेखनीय फिल्मों में अपना संगीत दिया। प्रसिद्ध संगीतकार रविशंकर के निर्देशन में उन्होंने आस्कर विजेता सत्यजीत रे की फिल्म अपुर संसार, पारास पत्थर, जालसाघर, रिचर्ड एडिनबरो की फिल्म गांधी में संगीत दिया। इसके अलावा जॉन ह्यूस्टन की फिल्म ‘द मैन हू वुड बी किंग’ , डेविड लीन की ‘ए पैसेज टू इंडिया’ में काम किया। तपन सिन्हा की फिल्म ‘जोतुर्गिहा’ के लिए संगीत तैयार किया। जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ फिल्म स्कोर पुरस्कार मिला। उन्होंने वैश्विक संगीतज्ञ एंड्रयू मैकलीन के साथ “श्रृंगार” का सह-नेतृत्व किया है, जिसमें टिम ग्रीन और जेसन मार्सालिस जैसे वैश्विक न्यू ऑरलियन्स संगीतकार शामिल रहे। इसे संगीत विधा जैज़ का मक्का माना जाता है।
खुद को बताया हिन्दू वर्ष 2006 में उन्होंने खुद को हिन्दू घोषित करते हुए अपने नाम के आगे देबशर्मा जोड़ लिया था। उन्होंने घोषणा की थी कि उनके पूर्वज पूर्वी बंगाल के हिंदू ब्राह्मण थे, और कुलनाम “देबशर्मा” रखते थे। इसलिए वे लोगों को अपनी संगीत वंशावली की जड़ को समझने में मदद करने के लिए अपने पूर्वजों के कुलनाम का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने दावा किया था कि उनका परिवार कभी भी आधिकारिक रूप से इस्लाम में परिवर्तित नहीं हुआ था और उपनाम “खान” का मतलब यह नहीं था कि वह मुसलमान थे।
मां शारदा के लिए छोड़ दिया शादी का प्रस्ताव आशीष खां को करीब से जानने वालों के अनुसार उनके पिता अली अकबर उनका विवाह प्रसिद्ध तबला वादक अल्ला रक्खा की बेटी से करना चाहते थे। दरअसल अली अकबर खां, अल्ला रखा और रविशंकर संगीत के क्षेत्र में तिगल बंदी करते थे। अली अकबर की बेटी से शादी की बात चल रही थी इसी दौरान एक घटना ने इस शादी को अंजाम तक नहीं पहुंचने दिया। आशीष खां जिस बक्से में अपना सरोद रखते थे, उसमें मां शारदा की फोटो भी होती थी। बक्से से सरोद निकालने के पहले वे मां शारदा को प्रणाम करते थे। इसे देख कर अल्ला रखा की पत्नी ने सवाल किया कि हमारे इस्लाम में तो ऐसी इबादत वर्जित है। इस पर आशीष खां ने कहा कि उनकी मां शारदा पर आस्था है और इसे वे नहीं छोड़ सकते। यह बात अली अकबर तक पहुंची उन्होंने भी आशीष की बात का समर्थन किया। इसके बाद अल्ला रक्खा ने इसकी चर्चा उस्ताद अलाउद्दीन खां से की। अलाउद्दीन खां इस बात से काफी नाराज हुए और उन्होंने अपनी ओर से ही यह रिश्ता तोड़ दिया।