अब तक नहीं मिल पाया है ठिकाना
सिंगरौली रीजन में कोयला खदानों के कारण पहले से ही बड़ी संख्या में विस्थापित आदिवासी परिवारों को अब तक ठिकाना नहीं मिल पाया है। कई परिवार मुड़वानी और मुहेर जैसे प्रदूषित और खतरनाक जगहों पर रहने को मजबूर हैं। अब ओपन कास्ट माइनिंग(खुली खदानें)के लिए सरई तहसील के जिस कोयला धारित क्षेत्र का चयन किया गया है, वहां 80 प्रतिशत वन क्षेत्र है। इसलिए आदिवासी परिवारों का अनुपात भी अधिक है। इनके बेदखली की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है और कागजात मांगे जा रहे हैं। सभी से वादा यही है कि पक्के मकान दिए जाएंगे, लेकिन उनके कब्जे की वनभूमि के बदले क्या मिलेगा, इस बारे में नहीं बताया गया है। तीन कोल ब्लॉक सुलियरी, बंधा और धिरौली की साढ़े पांच हजार हैक्टेयर यानी की 14 हजार एकड़ भूमि पर कोयला खनन की तैयारी चल रही है, जहां रह रहे परिवारों को विस्थापित किया जाना है। लेकिन अधिकतर आदिवासी परिवारों को इसके बारे में ज्यादा नहीं पता है। साधन, सुविधा के साथ ही जागरूकता की कमी से जिला मुख्यालय में हुई जनसुनवाई में आदिवासियों का प्रतिनिधित्व न के बराबर ही रहा।
सिंगरौली रीजन में कोयला खदानों के कारण पहले से ही बड़ी संख्या में विस्थापित आदिवासी परिवारों को अब तक ठिकाना नहीं मिल पाया है। कई परिवार मुड़वानी और मुहेर जैसे प्रदूषित और खतरनाक जगहों पर रहने को मजबूर हैं। अब ओपन कास्ट माइनिंग(खुली खदानें)के लिए सरई तहसील के जिस कोयला धारित क्षेत्र का चयन किया गया है, वहां 80 प्रतिशत वन क्षेत्र है। इसलिए आदिवासी परिवारों का अनुपात भी अधिक है। इनके बेदखली की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है और कागजात मांगे जा रहे हैं। सभी से वादा यही है कि पक्के मकान दिए जाएंगे, लेकिन उनके कब्जे की वनभूमि के बदले क्या मिलेगा, इस बारे में नहीं बताया गया है। तीन कोल ब्लॉक सुलियरी, बंधा और धिरौली की साढ़े पांच हजार हैक्टेयर यानी की 14 हजार एकड़ भूमि पर कोयला खनन की तैयारी चल रही है, जहां रह रहे परिवारों को विस्थापित किया जाना है। लेकिन अधिकतर आदिवासी परिवारों को इसके बारे में ज्यादा नहीं पता है। साधन, सुविधा के साथ ही जागरूकता की कमी से जिला मुख्यालय में हुई जनसुनवाई में आदिवासियों का प्रतिनिधित्व न के बराबर ही रहा।
20 हजार परिवारों पर असर
प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार सुलियरी, बंधा और धरौली में लगने वाली कोयला खदान से इस इलाके के करीब आधा सैकड़ा गांव व मजरा टोले में निवास करने वाले 17 हजार से अधिक परिवार प्रभावित होंगे। लेकिन वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है। अनुमान 20 हजार से अधिक परिवारों के प्रभावित होने का है। जिन्हें विस्थापित होना पड़ेगा। इन क्षेत्रों में आदिवासी परिवारों की बहुतायत होने के कारण प्रभावित आदिवासियों की संख्या 10 हजार तक बताई जा रही है।
प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार सुलियरी, बंधा और धरौली में लगने वाली कोयला खदान से इस इलाके के करीब आधा सैकड़ा गांव व मजरा टोले में निवास करने वाले 17 हजार से अधिक परिवार प्रभावित होंगे। लेकिन वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है। अनुमान 20 हजार से अधिक परिवारों के प्रभावित होने का है। जिन्हें विस्थापित होना पड़ेगा। इन क्षेत्रों में आदिवासी परिवारों की बहुतायत होने के कारण प्रभावित आदिवासियों की संख्या 10 हजार तक बताई जा रही है।
बदल जाएगा जीवन चक्र
धिरौली कोल ब्लॉक से प्रभावित होने वाले तेजबली पनिका ने कहा कि यह केवल घर खाली कराने का मामला नहीं है। बल्कि आदिवासी परिवारों का पूरा जीवनचक्र ही ठहर जाएगा। हम सब पीढिय़ों से जंगल पर आश्रित हैं, यही हमारी रोजी-रोटी है। इस धरती पर पूर्वजों की राख बिखरी है। धिरौली के गिरजा प्रसाद कहते हैं जंगल नहीं बल्कि हमारी पूरी संस्कृति यहीं बसती है। खाली करना पड़ा तो कहां जाएंगे। तेजबली व गिरजा प्रसाद ने बताया कि पुनर्वास व विस्थापन को लेकर कलेक्टे्रट में लगी जनसुनवाई में यह बात रखी है, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं है।
धिरौली कोल ब्लॉक से प्रभावित होने वाले तेजबली पनिका ने कहा कि यह केवल घर खाली कराने का मामला नहीं है। बल्कि आदिवासी परिवारों का पूरा जीवनचक्र ही ठहर जाएगा। हम सब पीढिय़ों से जंगल पर आश्रित हैं, यही हमारी रोजी-रोटी है। इस धरती पर पूर्वजों की राख बिखरी है। धिरौली के गिरजा प्रसाद कहते हैं जंगल नहीं बल्कि हमारी पूरी संस्कृति यहीं बसती है। खाली करना पड़ा तो कहां जाएंगे। तेजबली व गिरजा प्रसाद ने बताया कि पुनर्वास व विस्थापन को लेकर कलेक्टे्रट में लगी जनसुनवाई में यह बात रखी है, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं है।
सुलियरी में नए साल से खनन
बताया गया है कि इस इलाके के तीन कोल ब्लॉकों में लगने वाली कोयला खदानों में दो पर अडानी ग्रुप की कंपनी काम कर रही है। इनमें आंध्रप्रदेश मिनरल डेवलपमेंट कार्पोरेशन को आवंटित सुलियरी कोल ब्लॉक भी शामिल है। कंपनी ने आंध्रप्रदेश सरकार के इस उपक्रम से ब्लॉक विकसित कर कोयला उत्पादन करने का अनुबंध किया है। नए साल से इस ब्लॉक से कोयला खनन शुरू हो जाएगा। जबकि धिरौली ब्लॉक अडानी ग्रुप की कंपनी स्ट्राटेक मिनरल्स को आवंटित किया गया है, उस पर काम चल रहा है।
बताया गया है कि इस इलाके के तीन कोल ब्लॉकों में लगने वाली कोयला खदानों में दो पर अडानी ग्रुप की कंपनी काम कर रही है। इनमें आंध्रप्रदेश मिनरल डेवलपमेंट कार्पोरेशन को आवंटित सुलियरी कोल ब्लॉक भी शामिल है। कंपनी ने आंध्रप्रदेश सरकार के इस उपक्रम से ब्लॉक विकसित कर कोयला उत्पादन करने का अनुबंध किया है। नए साल से इस ब्लॉक से कोयला खनन शुरू हो जाएगा। जबकि धिरौली ब्लॉक अडानी ग्रुप की कंपनी स्ट्राटेक मिनरल्स को आवंटित किया गया है, उस पर काम चल रहा है।
इन कोल ब्लॉक में लगेंगी खदानें
कंपनी नाम ब्लॉक आवंटित जमीन अनुमानित प्रभावित
एपीएमडीसी सुलियरी 1297 हैक्टेयर 8000
ईएमआइएल माइंस बंधा 1600 5000
स्ट्राटेक मिनरल्स धिरौली 2672 4000 भू-अधिग्रहण के निर्धारित नियम में ऐसे रहवासियों के लिए भी प्रावधान हैं, जिनके पास दस्तावेज नहीं हैं। उनका पालन किया जाएगा। बाकी कोई विशेष परिस्थिति आती है तो उनके लिए विचार किया जाएगा और निर्णय लिए जाएंगें।
कंपनी नाम ब्लॉक आवंटित जमीन अनुमानित प्रभावित
एपीएमडीसी सुलियरी 1297 हैक्टेयर 8000
ईएमआइएल माइंस बंधा 1600 5000
स्ट्राटेक मिनरल्स धिरौली 2672 4000 भू-अधिग्रहण के निर्धारित नियम में ऐसे रहवासियों के लिए भी प्रावधान हैं, जिनके पास दस्तावेज नहीं हैं। उनका पालन किया जाएगा। बाकी कोई विशेष परिस्थिति आती है तो उनके लिए विचार किया जाएगा और निर्णय लिए जाएंगें।
राजीव रंजन मीना, कलेक्टर सिंगरौली विस्थापित बैगा बस्ती में बिजली न पानी
एनसीएल के कोयला खदान की वजह से 40 साल पहले विस्थापित हुए मुड़वानी के बैगा आदिवासियों का अब तक पुनर्वास नहीं हो पाया है। मुड़वानी में ऐसी जगह रह रहे हैं जहां तीन तरह का खतरा है। सामने कोयला की गहरी खदान है और बगल में डैम जिसमें कोयला का प्रदूषित जल जमा होता है। तीसरे छोर पर ओवर बर्डन से बना धूल और मिट्टी का पहाड़ है। जिसके कटाव और पानी के रिसाव से हमेशा दबने का खतरा बना रहता है। बैगा बस्ती के पांच किलोमीटर के दायरे में 10 हजार मेगावॉट के चार पॉवर प्लांट हैं इसके बाद भी इस बस्ती तक बिजली नहीं पहुंची है। जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दूर बसे होने के बाद भी पीने के साफ पानी और सफाई का प्रबंध नहीं किया जा सका है। समाज और सिस्टम से कटे यहां की बैगा जनजाति के आय का स्रोत बकरीपालन है। उसी से उनकी जिंदगी चलती है। ऐसी ही स्थिति मुहेर कोयला खनन क्षेत्र के विस्थापित आदिवासी परिवारों का भी है जो ओवर बर्डन के पहाड़ के नीचे जिंदगी गुजार रहे हैं।
एनसीएल के कोयला खदान की वजह से 40 साल पहले विस्थापित हुए मुड़वानी के बैगा आदिवासियों का अब तक पुनर्वास नहीं हो पाया है। मुड़वानी में ऐसी जगह रह रहे हैं जहां तीन तरह का खतरा है। सामने कोयला की गहरी खदान है और बगल में डैम जिसमें कोयला का प्रदूषित जल जमा होता है। तीसरे छोर पर ओवर बर्डन से बना धूल और मिट्टी का पहाड़ है। जिसके कटाव और पानी के रिसाव से हमेशा दबने का खतरा बना रहता है। बैगा बस्ती के पांच किलोमीटर के दायरे में 10 हजार मेगावॉट के चार पॉवर प्लांट हैं इसके बाद भी इस बस्ती तक बिजली नहीं पहुंची है। जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दूर बसे होने के बाद भी पीने के साफ पानी और सफाई का प्रबंध नहीं किया जा सका है। समाज और सिस्टम से कटे यहां की बैगा जनजाति के आय का स्रोत बकरीपालन है। उसी से उनकी जिंदगी चलती है। ऐसी ही स्थिति मुहेर कोयला खनन क्षेत्र के विस्थापित आदिवासी परिवारों का भी है जो ओवर बर्डन के पहाड़ के नीचे जिंदगी गुजार रहे हैं।