भीष्मशंकर तीसरी बार संसद पहुंचने को बेताब पूर्व सांसद भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी संतकबीरनगर लोकसभा सीट पर दो बार सांसद रह चुके हैं। पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी के सुपुत्र कुशल तिवारी संतकबीरनगर लोकसभा में हुए उपचुनाव में निर्वाचित होकर पहली बार सांसद बने थे। 2009 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर फिर सांसद बने। लेकिन 2014 में चुनाव हार गए। तिवारी परिवार पूर्वांचल के ब्राह्मणों में सर्वमान्य नाम है। पूर्वांचल में दशकों से ब्राह्मण-क्षत्रिय वर्चस्व की लड़ाई जो दिखती है उसका एक छोर ‘हाता’ यानी तिवारी परिवार से जुड़ा है। 2017 में बीजेपी की लहर के बावजूद पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी के छोटे सुपुत्र विनयशंकर तिवारी अपने पिता की पारंपरिक सीट चिल्लूपार से चुनाव जीत गए थे। इस बार संतकबीरनगर में इस परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। यह चुनाव यह भी साबित करेगा कि ब्राह्मण बीजेपी के साथ नहीं बल्कि अभी भी तिवारी परिवार के ही साथ है।
निषाद राजनीति दांव पर, उपचुनाव में जीत चमत्कार नहीं
निषाद राजनीति दांव पर, उपचुनाव में जीत चमत्कार नहीं
गोरखपुर उपचुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ.संजय निषाद के पुत्र प्रवीण निषाद प्रत्याशी बनाए गए थे। गोरखपुर संसदीय सीट तीन दशक से भाजपा और गोरखनाथ मंदिर के पास रही थी। लेकिन 2018 में हुए उपचुनाव में सपा के उम्मीदवार के रूप में प्रवीण निषाद ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। इस जीत के बाद निषाद पार्टी सुर्खियों में आई। निषाद मतदाताओं का एकाधिकार इस पार्टी के पास समझा जाने लगा। 2019 के लोकसभा चुनाव के ऐलान के पहले भाजपा ने निषाद पार्टी के साथ समझौता किया। निषाद वोटरों को अपने पाले में करने की ललक में बीजेपी का यह समझौता कितना सफल हुआ यह संतकबीरनगर सीट के परिणाम से भी तय होगा। यह इसलिए क्योंकि निषाद पार्टी के समर्थन से बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में प्रवीण निषाद यहां प्रत्याशी हैं। प्रवीण डाॅ.संजय निषाद के पुत्र हैं और निषाद समाज के बड़े नेताओं में शुमार हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में निषाद मतों की संख्या काफी अच्छी खासी है।
बार बार दल बदलने के बाद भी जनता पसंद करती या नहीं समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष रह चुके भालचंद यादव ने 1999 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर संसदीय चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उनके सिर जीत का सेहरा बंधा। 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में भालचंद ने पाला बदला और बसपाई हो गए। बसपा के टिकट पर लड़कर भालचंद यादव दुबारा संसद में पहुंचे। अगला चुनाव आते आते भालचंद यादव समाजवादी पार्टी में आ गए। 2009 में सपा की टिकट पर लड़े लेकिन चालीस हजार से अधिक वोटों से चुनाव हारे। वह इस बार तीसरे नंबर पर आ गए। 2014 में भी सपा की टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन इस बार भी सफल नहीं हो सके। मोदी लहर में भाजपा के शरण त्रिपाठी करीब साढ़े तीन लाख वोट पाकर विजयी हुए तो बसपा के कुशल तिवारी 2.50 लाख व सपा के भालचंद 2.40 लाख पाकर तीसरे नंबर पर आ गए। इस बार समझौते में यह सीट बसपा के कोटे में चली गई। टिकट नहीं मिलने के बाद पूर्व सांसद भालचंद यादव भाजपा में हाथपांव मारने के बाद कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। भालचंद यादव संतकबीरनगर के बड़े नेताओं में शुमार हैं। ओबीसी में खासी पकड़ रखने वाले पूर्व सांसद को मिलने वाला वोट तय करेगा कि लगातार दल बदलने के बाद जनता उनके बारे में क्या सोचती है।
भाजपा विधायकों की भी परीक्षा संतकबीरनगर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के निवर्तमान सांसद शरद त्रिपाठी को टिकट दिए जाने पर भाजपा के विधायक राकेश बघेल व विधायक जय चैबे आदि ने खुलेआम विरोध किया था। जूताकांड के बाद यह विरोध सड़कों पर आ गया था। टिकट के ऐलान के पहले संतकबीरनगर में संगठन के एक कार्यक्रम में विधायकों के गुट वाले लोगों ने जोरदार प्रदर्शन करने के साथ तोड़फोड़ भी किया था। गुस्साएं कार्यकर्ताओं ने प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ नारेबाजी करते हुए सांसद को टिकट दिए जाने का विरोध किया था। नेतृत्व ने टिकट काटकर प्रवीण निषाद को यहां प्रत्याशी बना दिया है। अब इन विधायकों पर जीत का पूरा दारोमदार है। इनको अपने अपने क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी को जिताने का भी दबाव है ताकि यह साबित कर सकें कि उनकी मांग जायज थी।