संवाद सेतु

संवाद सेतु कार्यक्रम बनेगा जनता की आवाज सरकार तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम

राजस्थान पत्रिका समूह का संवाद सेतु (Samvad Setu) कार्यक्रम जनता की बात सरकार तक और सरकार की बात जनता तक पहुंचाने का एक माध्यम है। पत्रिका ग्रुप लंबे समय से यह कार्यक्रम कर रहा है। पत्रिका संवाद सेतु कार्यक्रम में शहर के प्रबुद्ध लोग एकत्र होते हैं, जिसमें कम से कम पांच समस्याओं पर विस्तार से चर्चा होती है। इसमें जो निष्कर्ष निकलता है पत्रिका ग्रुप अपने संसाधनों (टीवी, डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक) से उसे उठाता है, ताकि जनता की बातें सरकार तक पहुंचे और सरकार उनका निदान कर सके।

Dec 08, 2021 / 10:11 pm

Mahendra Pratap

लखनऊ. पत्रिका का संवाद सेतु (Samvad Setu) कार्यक्रम जनता की बात सरकार तक और सरकार की बात जनता तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम है। पत्रिका ग्रुप का मानना है कि जनता और समाचार पत्र के बीच सीधा-सीधा संवाद होना चाहिए, ताकि जनता के मुद्दे सरकार तक और सरकार की बातें जनता तक पहुंच सकें। जनता की बात सरकार तक और सरकार की बात जनता तक पहुंचाने के लिए पत्रिका ग्रुप लंबे समय से संवाद सेतु कार्यक्रम कर रहा है। संवाद सेतु कार्यक्रम को पत्रिका ग्रुप के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी संबोधित करते हैं। कार्यक्रम में शहर के प्रबुद्ध लोग एकत्र होते हैं, जिसमें जिले की कम से कम पांच प्रमुख समस्याओं पर विस्तार से चर्चा होती है। कार्यक्रम में यह सवाल जानने की कोशिश की जाती है कि इन समस्याओं के लिए जिम्मेदार कौन है और उसका निदान क्या है? इस मंथन जो निष्कर्ष निकलता है पत्रिका ग्रुप अपने संसाधनों (टीवी, डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक) से उसे उठाता है, ताकि जनता की बातें सरकार तक पहुंचे और सरकार उनका निदान कर सके। इन्हीं मुद्दों के आधार पर पत्रिका ग्रुप जिलों का विजन डॉक्यूमेंट जारी करता है।
पत्रिका ग्रुप यह नहीं मानता है कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है, क्योंकि अगर खुद को चौथा स्तम्भ मानेंगे तो आप भी उसी सिस्टम का एक हिस्सा बन जाएंगे। न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका की तरह आप भी खुद के लिए स्पेशल प्रिविलेज की मांग करेंगे। और जब भी कोई स्पेशल प्रिविलेज की मांग करता है वह जनता की समस्याओं से दूर हो जाता है। राजस्थान पत्रिका ग्रुप का मानना है कि चौथा स्तम्भ जैसी कोई बात नहीं होती है। जनता के बीच जाकर जनता की समस्याओं को जानना चाहिए। इसी क्रम में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी और समूह संपादक भुवनेश जैन 09 दिसंबर को उत्तर प्रदेश में रहेंगे।
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उत्तर प्रदेश के ताजा राजनीतिक हालात

दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता है, यह राजनीतिक जुमला यूं ही नहीं है। देश की सबसे बड़ी विधानसभा यूपी में है, जहां 403 सीटें हैं। अगले कुछ महीनों बाद यूपी की 18वीं विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं। ठंड के इस मौसम में इसीलिए राजनीतिक दलों के पसीनें छूट रहे हैं। चुनावी तपिश बढ़ गई है और सभी दल चुनावी तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। प्रत्याशियों की घोषणा में बसपा सबसे आगे है। उसके आधे से अधिक प्रत्याशी बिना किसी शोर-शराबे के घोषित किए जा चुके हैं। कांग्रेस ने 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने की घोषणा की है। स्क्रीनिंग कमेटी प्रत्याशियों के नाम तय करने में जुटी है। सपा ने अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किए हैं। छोटे दलों को जोड़कर सपा सूबे में सबसे बड़ा गठबंधन बनने की ओर है। सपा के साथ सुभासपा, रालोद, अपनादल (कमेरा गुट) और महान दल आ चुके हैं। शिवपाल सिंह यादव के प्रसपा को लेकर अभी असमंजस की स्थिति है। फिलहाल विजय रथ पर सवार सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव राजनीतिक माहौल को भांपने के लिए सूबे के दौरे पर हैं। बसपा और कांग्रेस ने अकेले मैदान में उतरने की ऐलान किया है।
भाजपा के साथ निषाद पार्टी और अपना दल हैं। पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ केंद्र व प्रदेश सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार में जुटे हैं। फिलहाल भाजपा छह चुनावी यात्राओं के जरिए वोटरों को अपने पक्ष में करने में ज़ुटी है। प्रियंका गांधी की अगुआई में कांग्रेस पार्टी जमीनी स्तर पर इस बार सबसे ज्यादा सक्रिय दिख रही है। जबकि, नेताओं की भगदड़ के बाद बसपा नये सिरे से चुनावी तैयारियों में जुटी है। 2017 में बसपा को 19 सीटों पर जीत मिली थी, अब जिनमें से पार्टी के साथ महज 5 विधायक बचे हैं। इनमें से एक मुख्तार अंसारी जेल में हैं। बाकी या तो पार्टी छोड़ गये या फिर मायावती ने उन्हें निष्कासित कर दिया।
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राजाभैया तलाश रहे गठजोड़ की संभावनाएं

असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी प्रदेश में अपने लिए जमीन तलाश रही हैं। क्षेत्रीय क्षत्रप रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजाभैया का जनसत्ता दल भी पहली बार मैदान में है। राजाभैया सपा या भाजपा से गठजोड़ की संभावनाएं तलाश रहे हैं। बिहार का वीआइपी दल, तृणमूल कांग्रेस, जदयू और राजद भी अपने प्रत्याशी मैदान में उतारने की तैयारी में हैं।
धड़ाधड़ शिलान्यास और लोकार्पण का दौर जारी

उत्तर प्रदेश में इन दिनों धड़ाधड़ शिलान्यास और लोकार्पण जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के हर हफ्ते दौरे लग रहे हैं। आरएसएस और उसके आनुषंगिक संगठन भी बीजेपी के पक्ष में माहौल तैयार करने में जुटे हैं। विपक्षी दलों का दावा है कि उत्तर प्रदेश के मतदाता इस बार भाजपा को सत्ता से दूर करेंगे। किसानों की दुर्दशा, गन्ना किसानों का भुगतान, नौकरियों और प्रतियोगी परीक्षाओं में भ्रष्टाचार, महंगाई, रोजगार और कानून-व्यवस्था अभी तक प्रमुख चुनावीमुद्दा बना हुआ है। पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर कर्मचारी आंदोलित हैं। उन्हें लगता है किसान बिल की तरह पेंशन बहाली पर सरकार निर्णय ले सकती है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी विपक्षी दलों को नाकारा करार देते हुए प्रदेश में विकास की बयार बहने का दावा कर रही है। पूर्वांचल एक्सप्रेस के साथ हर जिले में मेडिकल कालेज, इंटरनेशनल एयरपोर्ट, गोरखपुर, आगरा, कानपुर में मेट्रो ट्रेन, गोरखपुर में खाद कारखाने का उद्घाटन विकास के प्रतीक के रूप में गिनाए जा रहे हैं। पश्चिमी यूपी और पूर्वी यूपी की राजनीति इस बार भी अलग-अलग मुद्दों पर बंटी दिख रही है। पश्चिम में किसान भाजपा से नाराज दिख रहे हैं। तो पूर्वी यूपी में जातीय समीकरण पार्टियों की पेशानी पर पसीना ला रहा है। मतदाता खामोश हैं। समय बताएगा ऊंट किस करवट बैठेगा।
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