सहारनपुर

इस शक्तिपीठ में चोरी करने से हाेती है पुत्ररत्न की प्राप्ति, माँ चूड़ामणि के वरदान से भरती है गोद

– सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन दशकाें से चली आ रही परम्परा
– पुत्र प्राप्ति के बाद वापस लाैटानी हाेती है चाेरी की गई वस्तु
– रुड़की के पास चुड़ियाला गांव में है स्थित है शक्तिपीठ
– इसी गांव के नाम पर अंग्रेजाें ने बनवाया था रेलवे स्टेशन
– पुत्र प्राप्ति के लिए देशभर से दंपति पहुंचते हैं इस गांव
– आईए जानते हैं मंदिर का इतिहास और कुछ राेचक बातें

सहारनपुरJun 07, 2019 / 12:23 pm

shivmani tyagi

maa chudamani

सहारनपुर। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें चोरी करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि इस शक्तिपीठ में चाेरी करने के लिए देश भर से श्रद्धालु आते हैं। एसी मान्यता है कि मां चूड़ामणि के इस शक्तिपीठ से कभी किसी दपंति काे निराशा नहीं मिली जाे भी श्रद्धालु यहां आते हैं मां चूड़ामणि से उन्हे पुत्र रत्न का वरदान प्राप्त हाेता है।
यह अलग बात है कि हिन्दू धर्म में चोरी करना ”पाप” बताया गया है और भारतीय संविधान में चोरी के लिए सजा भी तय की गई है लेकिन ऐसी मान्यता है कि देवी के इस मंदिर में चोरी करने से ”पुण्य” प्राप्त होता है और स्थानीय पुलिस भी इस चाेरी काे चाेरी नहीं मानती। आप साेच रहे हाेंगे कि भला ऐसा कैसे हाे सकता है ? ताे आपका साेचना भी सही है लेकिन इस मंदिर से की गई चाेरी काे चाेरी नहीं मानने के पीछे भी एक बड़ा कारण है।
दरअसल यहां सदियों से यहां यह परम्परा चली आ रही है। पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए दंपति जिस वस्तु काे मंदिर से चाेरी करते हैं उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हाेने तक ही अपने पास रखते हैं। जब उन्हे पुत्र प्राप्त हाे जाता है ताे चाेरी की गई वस्तु काे वापस मन्दिर में ही रख जाते हैं। यही कारण है कि, इस चोरी को चोरी नहीं माना जाता।

हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के शहर रुड़की से करीब 20 किलोमीटर दूर चुड़ियाला गांव में स्थित चूड़ामणि देवी के मंदिर की। यह मंदिर देश के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है। मंदिर के पुजारी पंडित अनिरुद्ध बताते हैं कि माता के चरणों में लकड़ी का बना लोकड़ा रखा जाता है। पुत्र रत्न की चाह रखने वाले दंपति मंदिर में माता के दर्शन करने आते हैं और चुपके से इस लोकड़े को चोरी कर लेते हैं। लोकड़े को चोरी करने के बाद दंपति अपने घर ले जाते हैं और जब उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाती है तो लोकड़े को वापस मंदिर में रखने के लिए आते हैं।
खास बात यह है कि पुत्र रत्न की प्राप्ति के बाद दंपति को दो लोकड़े वापस करने होते हैं। इनमे एक मंदिर से चोरी किया गया लोकड़ा होता है ताे दूसरा उन्हें खुद बढ़ई से बनवाकर या बाजारा से खरीदकर लाना होता है। दो लोकड़े वापस करने की परंपरा कब पड़ी इसके बारे में तो पंडित जी नहीं बता पाते लेकिन यही माना जाता है कि मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को चोरी करने के लिए लोकड़े मिलते रहें और मंदिर में लाेकड़ाें की कमी ना पड़े इसलिए दो लोकड़े वापस करने की परंपरा पड़ी होगी।
 

 

पुत्र प्राप्ति के बाद कराते हैं भंडारा

चुड़ियाला गांव के लोगों से जब हमने बात की तो इसी गांव के रहने वाले मास्टर केशव राम ने बताया कि जब लोकड़ा चोरी कर ले जाने वाले दंपति पुत्र रत्न की प्राप्ति के बाद अपने पुत्र के साथ दोबारा शक्तिपीठ के दर्शन करने के लिए आते हैं। इस दौरान वह अपने साथ दो लोकड़े लेकर आते हैं जिन्हें पुत्र के हाथों से माता के चरणों में रखवा दिया जाता है। इसके बाद मंदिर प्रांगण में ही दंपति भंडारा भी करते हैं। इसी गांव के रहने वाले बसंत कुमार बताते हैं कि उनके गांव में दशकों से सदियों से यह परंपरा चली आ रही है और अब मंदिर में चोरी करने आने वाले दंपतियों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

एक बार ही होती है पुत्र रत्न की प्राप्ति
मंदिर के ही दूसरे पुजारी आशीष काैशिक बताते हैं कि शक्तिपीठ को जो वरदान है वह लड़का और लड़की में भेद नहीं करता लेकिन वंश चलाने के लिए अगर किसी दंपति को पुत्र रत्न की प्राप्ति चाहिए तो वह वरदान शक्तिपीठ से प्राप्त होता है। एक दंपति को एक बार ही मंदिर से पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। यहां वहीं दंपति आते हैं जिन्हें पुत्र नहीं होते और उन्हें एक पुत्र की इच्छा होती है। एक से अधिक पुत्र वालों की मनोकामना मां के दरबार में पूर्ण नहीं होती।

आइए जानते हैं कैसा होता है लोकड़ा
आपके मन में यह सवाल जरूर उठा होगा कि आखिर यह लोकड़ा होता क्या है। दरअसल लोकड़ा लकड़ी के एक खिलौने जैसा होता है। यह आपको किसी भी बढ़ई या लाैहार के पास आसानी से मिल जाएगा। यह लोकड़ा पुत्र का प्रतीक होता है। इसका आकार बच्चों के छोटे खिलौनों की तरह ही होता है और इसी लोकड़े को शक्तिपीठ में मां के चरणों से चोरी करना होता है।

जून और जुलाई माह में पहुंचते हैं सर्वाधिक श्रद्धालु
आषाढ़ माह यानी जून और जुलाई माह में चुड़ियाला स्थित मां के शक्तिपीठ पर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी हुई है। इसका कारण यह है कि जिन दंपति को पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाती है वह जून और जुलाई माह में ही मंदिर में आते हैं और भंडारा करते हैं। यही कारण है कि इन दिनों मंदिर में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और हर रोज यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। गांव वाले भी मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का स्वागत करते हैं और श्रद्धालु यहां हर दिन भंडारा करते हैं।

जानिए मंदिर का इतिहास
मंदिर का इतिहास सदियाें पुराना है। गांव के लोगों की से मिली जानकारी के अनुसार चुड़ियाला स्थित माता चूड़ामणि के इस मंदिर की स्थापना 1662 में हुई थी। मंदिर में आज भी इसके सबूत है। यहां सन और संवत् लिखा हुआ है। बताया जाता है कि 1805 में रुड़की के पास स्थित लंढाैरा रियासत के राजा अंग्रेजी शासन काल में चुड़ियाला गांव से अपनी सेना के साथ जा रहे थे। इसी दौरान उन्हें माता का चूड़ामणि पिंडी के समक्ष घुटनों के बल बैठकर माता को प्रणाम किया और पुत्र रत्न की इच्छा जताई। जब राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो उन्होंने इस शक्तिपीठ मंदिर का निर्माण कराया और तभी से यह परंपरा चली आ रही है जिस दंपति को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं होती वह माता के इस शक्तिपीठ पर आकर लोकड़ा चोरी करते हैं और माता से पुत्र रत्न प्राप्ति का वरदान मांगते हैं।
 

अंग्रेजी शासनकाल में बना था चुड़ियाला रेलवे स्टेशन स्टेशन भी

जब आप ट्रेन से रुड़की, हरिद्वार और देहरादून जाते हैं ताे रुड़की स्टेशन के पास ही चुड़ियाला स्टेशन भी पड़ता है। माना जाता है कि अंग्रेजी शासन काल में चुड़ियाला रेलवे स्टेशन बनाए जाने के पीछे के कारणाें में यह शक्तिपीठ भी एक बड़ी वजह था।
 

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