रमज़ान का मुबारक महीना शुरू हो गया है। साल में एक महीना रमज़ान मुबारक का आता है जिसमें 30 रोज़े रखे जाते हैं। यह पूरा महीना इबादत करने का है। रमज़ान का महत्व क्या है इस पर देवबंदी उलेमा अरबी विद्वान मौलाना नदीमुलवज़दी ने बताया कि रोज़ों का ताल्लुक रमज़ान से है। रमज़ान का महीना बड़ा पवित्र समझा जाता है और मुसलमान इस महीने को बहुत ही अहमियत देते हैं। ग्यारह महीने के बाद साल में यह महीना आता है और मुसलमानों को इस महीने का बेसब्री से इन्तज़ार रहता है, कि कब यह महीना आये और कब हम लोग इबादत करें। सबसे बड़ी इबादत रोज़ा है और इसकी दूसरी इबादत तरावीह है। बीस रकात तरावीह पढ़ना और कुरआन शरीफ तीस दिनों में पूरा करना बड़े शबाब का काम है। उन्हाेंने बताया कि हमारे नबी को भी इस महीने का बेसब्री से इन्तज़ार रहता था और जब शाबान आता था यानी रमज़ान से पहला महीना उसके बाद आप रोज़े भी रखते थे और बड़ी ही बेकरारी के साथ यह महीना आये और हम इस महीने में दाखिल हो यह महीना मुसलमानों के लिए रहमत का मगफिरत का और दोज़ख से आज़ादी का महीना बताया है। इस माह के पहले दस दिन वो रहमत के और दूसरे दस दिन वो मगफिरत के हैं। तीसरे दस दिन दोज़ख से निज़ात के लिए आज़ादी के हैं इस महीने में खुदा पाक ने अपने फज़लों करम से नेकियो में सत्तर गुना अधिक इज़ाफा कर दिया है यानि आप एक नेकी करोगे तो आपको सत्तर नेकी का सवाब मिलेगा यानि अगर हम आम दिनो में एक रकात पढ़ेगें तो एक ही सवाब मिलेगा और अगर रमज़ान के महीने में एक रकात पढ़गें तो सत्तर रकातो का सवाब मिलेगा
नदीमुल वाजदी काे सुनने के लिए यहां क्लिक करें https://youtu.be/u45XqHekPbw रमज़ान में अगर हम सदका हो नमाज़ हो ज़कात हो जो भी नेकी करते हैं उस नेकी का सत्तर नेकी के बराबर सवाब मिलता है जिस महीने में खुदा पाक ने इतना सवाब रखा है तो उस महीने का बेसब्री से इन्तज़ार क्यों न हो इस महीने की बहुत सी फज़ीलते है.(महत्व) सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस महीने के अन्दर कुरआन शरीफ नाज़िल हुआ वो हमारी शरियत की बुनियाद है और जिस पर हम अम्ल करते है और जिसकी रात दिन हम इबादत करते हैं इस माह की दूसरी खसुसियत यह है कि इस माह में रोज़ा फर्ज़ किया गया और तीसरी खसुसियत (महत्व)एक नेकी करने पर सत्तर नेकी का सवाब तीसरी खसुसियत यह है कि इस माह में सत्तर गुनाह सवाब बढ़ा दिया गया मुसलमानों को चाहिए कि वह इस महीने की कद्र करें और अपने कारोबार को इसलिए लेकर चले कि इबादत के लिए भी वक्त मिले और अपनी मुलाज़मात को भी इस तरह लेकर चले कि इबादत के लिए ज़यादा से ज़्यादा समय मिल सके मुसलमान इस महीने की कद्र करें यह महीना ग्यारह महीने के बाद आता है और जब यह महीना चला जाता है तो हसरत और नरामत के सिवा कुछ नहीं रहता।