सहारनपुर

Kairana and Noorpur By Election Live Update : कैराना-नूरपुर उपचुनाव नहीं लड़ते हुए भी कांग्रेस ने उड़ाए भाजपा के होश

कांग्रेस 2019 के लिए भाजपा के खिलाफ एक मजबूत गंठबंधन की भूमिका तैयार करने में जुटी है। कैराना लोकसभा उपचुनाव में विपक्ष की एकजुटता दिखी है

सहारनपुरMay 28, 2018 / 12:44 pm

Iftekhar

कैराना-नूरपुर उपचुनाव नहीं लड़ते हुए भी कांग्रेस ने उड़ाए भाजपा के होश

मेरठ. फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को मिली हार के बाद यूपी के कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा उपचुनाव को लेकर यहां विपक्ष की जो एकजुटता दिखी है। उसके पीछे कांग्रेस की बड़ी चाल मानी जा रही है। दरअसल, इस चुनाव के जरिए कांग्रेस 2019 के लिए भाजपा के खिलाफ एक मजबूत गंठबंधन की भूमिका तैयार करने में जुटी है। यही वजह है कि कैराना लोकसभा सीट पर मजबूत स्थिति में होने के बाद भी विपक्ष की जीत को सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस ने यहां अपना प्रत्य़ाशी तक घोषित नहीं किया। दरअसल, कांग्रेस की चाल है कि विपक्ष का वोट किसी भी हाल में नहीं बंटे, ताकि भाजपा को मात दिया जा सके। यही वजह है कि कांग्रेस अब उपचुनाव में खुद चुनाव लड़ने के बजाए कांग्रेसमुक्त भारत का नारा देने वाली भाजपा को मजबूत विपक्षी उम्मीदवार देकर हराने का काम कर रही है। कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने किसी उम्मीदवार की घोषणा नहीं की। कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का भी यही मानना है कि सपा और रालोद का गठबंधन कांग्रेस के इशारे पर ही हुआ है। इस उपचुनाव में कांग्रेस की खोमोशी पर जब पत्रिका संवाददाता ने प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष इमरान मसूद से बात की तो उन्होंने भी साफ कर दिया कि हमारे लिए मुद्दा प्रत्याशी उतारने का नहीं है। मुद्दा भाजपा को हराने का है, जो भाजपा को हराएगा, हम उसके साथ खडे़ हैं। इससे पहले कांग्रेसी नेता और आईपीएल के चेयरमैन राजीव शुक्ला ने भी अपने सहारनपुर दौरे के दौरान राजनैतिक बयान दिया था कि कांग्रेस विपक्ष को एकजुट करने में लगी है।

इसलिए कांग्रे नहीं लड़ रही चुनाव
दरअसल, राजनीतिक हलकों में ये चर्चा है कि अब कांग्रेस अलग से लड़ती भी है तो इससे भाजपा विरोधी मतों को बांटने का आरोप लगेगा। ऐसी परिस्थिति में 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में प्रदेश के क्षेत्रीय दलों का गठबंधन भी कांग्रेस को अपने से अलग कर सकता है। परेशानी यह भी है अगर कांग्रेस यहां पर अकेले चुनाव लड़ती है तो उसकी हालत गोरखपुर और फूलपुर की तरह हो जाती। जहां उसके उम्मीदवार कुछ हजार वोट ही पा सके थे। अलग से लड़कर और किसी मुस्लिम को उम्मीदवार बनाकर वह महागठबंधन को ही नुकसान पहुंचाती, जिसका सीधा फायदा भाजपा को होता। इसी लिए कांग्रेस ने इस चुनाव से अपना प्रत्याशी उतारने से परहेज किया है।


ये हैं भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन के उम्मीदवार

भाजपा ने सहानुभूति की लहर का फायदा उठाने के लिए दोनों ही सीटों पर दिवंगत नेताओं के परिवार की महिला प्रत्याशियों पर भरोसा जताया है। भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद खाली हुई कैराना लोकसभा सीट से भाजपा ने उनकी बेटी मृगांका सिंह को टिकट दिया है। वहीं, नूरपुर विधानसभा सीट के विधायक लोकेंद्र सिंह की सड़क दुर्घटना में मौत के बाद खाली हुई सीट पर उनकी पत्नी अवनी सिंह को प्रत्याशी बनाया गया है। गौरतलब है कि कैराना से रालोद की प्रत्याशी तबस्सुम हसन और नूरपुर से सपा के उम्मीदवार नईमुल हसन दावा ठोक रहे हैं। दरअसल, इस उपचुनाव में भाजपा के खिलाफ सभी विरोधी पार्टियां एक हो गई है। सपा-बसपा, रालोद और कांग्रेस सभी एक साथ आ गई है। यहां तक कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद और भीम आर्मी ने भी गठबंधन के पक्ष में मतदान करना का ऐलान किया हुआ है। ऐसे में भाजपा के लिए इस महागठजोड़ को मात देना मुश्किल नजर आ रहा है।

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