इस्कॉन द्वारा कोलकाता में निकाली गई रथयात्रा के लिए इस्कॉन के विशेष आमंत्रण पर नुसरत जहां अपने पति के साथ रथयात्रा में भाग लेने पहुंची। इस दौरान उन्होंने आरती भी की। इस पर फतवा ऑनलाइन के प्रभारी मुफ्ती अरशद फारूकी ने कहा कि जहां तक इस्लाम का ताल्लुक है तो मुसलमान किसी दूसरे धर्म की निशानी या क्रियाकलाप को नहीं कर सकता है। यह बिल्कुल गलत है। वहीं, जमीयत दावतुल मुसलिमीन के संरक्षक मौलाना कारी इसहाक गोरा ने कहा कि शरीयत के अनुसार इसकी इजाजत नहीं कि किसी की निजी जिंदगी में दखलअंदाजी की जाए। लेकिन इस्लाम में रहते हुए मुसलमान केवल अल्लाह की इबादत कर सकता है, क्योंकि इस्लाम एक एकेश्वरवादी धर्म है। इसमें मूर्तिपूजा या फिर किसी अन्य धर्म के क्रियाकलाप को करने की इजाजत नहीं है। जिस प्रकार एक अंक के साथ किसी दूसरे अंक को जोड़ देने से एक अंक का स्तित्व खुद-ब-खुद समाप्त हो जाता है। उसी प्रकार कोई भी एकेश्वरवादी (मुस्लिम) अगर किसी और धर्म के देवी-देवता की पूजा कर ले तो वह खुद-बखुद बहुदेवतावादी बन जाता है। यानी जब कोई व्यक्ति एक अल्लाह के अलावा किसी और को भी पूजा योग्य मान लेता है तो वह एकेश्वरवादी कैसे कहला सकता है। ऐसे लोगों का इस्लाम धर्म से कोई संबंध नहीं बचता है, क्योंकि इस्लाम का संबंध मुसलमानों वाला नाम रख लेने से नहीं है, बल्कि इस्लाम के अनुसार ईमान और अमल करने से हैं। जिस प्रकार इस्लाम के सिद्धांत को अपनाने वाला दूसरे धर्म का शख्स मुसलमान हो जाता है, उसी प्रकार इस्लाम के सिद्धांतों का इनकार या उसके विपरीत आचरण करने वाला मुस्लिम परिवार में पैदा हुआ शख्स भी इस्लाम से स्वत: ही खारिज हो जाता है। उसे इस्लाम से किसी को खारिज करने की जरूरत नहीं है।
मजलिस इत्तेहाद-ए-मिल्लत के प्रदेशाध्यक्ष मुफ्ती अहमद गौड़ ने कहा कि नुसरत जहां अगर यह इकरार करें कि उन्होंने मुस्लिम धर्म छोड़ दिया है तो फिर वह कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन अगर वह मुसलमान है तो इस्लाम धर्म के अनुसार जिंदगी गुजारे और इस्लाम मजहब के हिसाब से इबादत करें। यदि वह किसी दूसरी तरह से इबादत करती है तो वह गुनाहगार है।