1-महागठबंधन- बीजेपी के गढ़ को जितना आसान नहीं है इस बात को विपक्ष अच्छी तरह जानता था। इसलिए बीजेपी को हराने के लिए गोरखपुर और फूलपुर की तरह कैराना में भी एक जबरदस्त गठबंधन बन कर सामने आया। जिसे कई छोटे-बड़े बीजेपी विरोधी संगठनों का भी समर्थन मिल गया। जो बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह कह सकते हैं।
2-जाट वोट को खींचने में असमर्थ रही भाजपा- कैराना लोकसभा उपचुनाव में विपक्ष में जीत में सबसे बड़ी भूमिका रालोद की रही। ये सीट जितना बीजेपी के लिए जरूरी थी उतना ही राष्ट्रीय लोकदल के लिए भी अहम थी। राजनीति के हाशिये पर चल रही रोलोद को एक बार फिर जाट समुदाय का साथ मिला है जिसने पार्टी को नया जीवन दिया है। दरअसल कैराना लोकसभा इलाके में कई सीटें जाट समुदाय है जिसका रालोद को फायदा मिला है। जाट बिरादरी का वोट निश्चय ही रालोद के खाते में गया जो बीजेपी की हार के कारणों में से बड़ी वजह है।
3-गन्ना भुगतान नहीं हो पाया-किसानों का मुद्दा लेकर सत्ता में आई योगी सरकार ने एक साल बाद भी किसानों के लिए कुछ खास नहीं कर सकी। इतना ही नहीं गन्ना किसानों को तोल पर्ची का भी समय पर नहीं मिल पाना भी बीजेपी की हार की वजह है। गन्ना पर्ची न मिलने से किसानों में सरकार के खिलाफ रोष बढ़ता गया और निराश किसानों ने गठबंधन को अपना मत दे दिया।
4- चुनावी वादे – बीजेपी ने अपने चुनावी वादे में कानून-व्यवस्था और गन्ना किसानों की परेशानी को मुख्य मुद्दा बनाया रखा था। लेकिन एक साल बाद भी सरकार के वादे धरातल पर नजर नहीं आए। विपक्ष ने सरकार के इन्हीं चुनावी वादों को हवाहवाई बताया और चीनी मिलों द्वारा किसानों का बकाया शीघ्रता से देने के सरकारी दावे को खारिज करते हुए सरकार को असफल करार दिया।
5-SC वर्ग का विरोध- सूबे में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद पिछले दिनों एक के बाद एक दलितों के साथ हुई मारपीट का मुद्दा भी राजनीतिक गलियारों में खूब उड़ता रहा। दलित समाज भी बीजेपी शासन में खुद को असुरक्षित महसूस करने लगा। 2014 में मायावती का वोट बैंक जो बीजेपी के खाते में गया था 2017 आते-आते बीजेपी के विरोध में आ गया वहीं 2018 में दलितों ने खुल कर बीजेपी का विरोध भी शुरू कर दिया और बीजेपी को दलितों की नाराजगी की भारी कीमत चुकानी पड़ी है।
6-सहारनपुर कांड ( शब्बीरपुर)-2017 में योगी सरकार के सत्ता में आते ही सहारनपुर के शब्बीरपुर में दलित और ठाकुरों के बीच भीषण बवाल देखने को मिला। जहां ठाकुरों मे दलितों के मकानों में आग लगा दी। दोनों ओर से जमकर हिंसा हुई जिसमें एक युवक की मौत हो गई। इस कांड के बाद दलितों ने भी प्रदर्शन किया जिसके बाद पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। जिसने दिलतों और बीजेपी के बीच एक बड़ी खाई खोद दी और विपक्ष ने इस मुद्दे का भरपूर फायदा उठाया।
7- दंगा और पलायन के मुद्दे को जनता ने नकारा- यूपी विधानसभा चुनावसे पहले हुकुम सिंह ने कैराना में हिंदू पलायन का मुद्दा उठाया था, जिसने राजनीति गलियों में हलचल मचा दी और कहीं ना कहीं बीजेपी को इस मुद्दे का फायदा भी मिला। लेकिन उपचुनाव से एक बार फिर बीजेपी ने हिंदू पलायन के मुद्दे को हवा देने की कोशिश की। लेकिन जनता ने इन मुद्दोें पर नकार दिया। लेकिन इसकी सबसे बड़ी वजह जातीय समीकरण को मान सकते हैं क्योंकि विपक्षी गठबंधमन के बाद बीजेपी के वोट बैंक में भी बड़ी सेंधमारी हुई है।
8-मुस्लिम फैक्टर- कैराना लोकसभा क्षेत्र में ज्यादातर इलाके या तो जाट इलाके से आते हैं या तो मुस्लिम बहुल इलाका है। मुस्लिम का एक बड़ा तबक पहले से ही बीजेपी से नाराज चलता है उसमें योगी सरकार के सत्ता में आने पर स्लॉटर हाउस का बंद कराना, गौहत्या को लेकर बार-बार मुस्लिमों का नाम आना और उनकी साथ हो रही हिंसा ने भी उन्हें बीजेपी से और दूर कर दिया। इतना ही नहीं तीन तलाक, लव जिहाद जैसे मुद्दे भी बीजेपी की हार की वजह से शामिल हैं।
9-कर्ज माफी में किसी को पैसा मिला किसी को नहीं- सरकार ने कर्ज माफी का ऐलान दिया और कागजों पर किसानों के कर्ज माफी भी दिखाए गए। लेकिन धरातल पर हकिकत तो कुछ और ही रही। कर्ज माफी के नाम पर किसी के 9 पैसे माफ हुए तो किसी के 2 रुपये। जिसने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया और उनके आंखों में एक बार फिर आंसृ ला दिए और देश के अन्नदाताओं ने कहीं ना कहीं बीजेपी सरकार से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया।
10- बीजेपी के स्थानीय नेताओं की गुटबाजी बनी हार कारण- पश्चिमी यूपी में अपनी-अपनी राजिनीति चमकाने के लिए कई बार नेताओं के बीच अनबन की भी खबरे आती रहीं। स्थानीय मुद्दों और जनता के बीच जाकर उनकी समस्याएं सुनने की जगह नेता अपनी-अपनी धुन में मस्त रहे।