बड़ी विचित्र-सी बात लगती है न कि मुंबई के बाहरी इलाके में नई बसाई गई बस्तियों में रात को तेंदुआ घूमता है। पर यह सच है। इसकी स्वयं नेशनल जियोग्राफिक सोसायटी की टीम ने वीडियोग्राफी की। जंगलों के निकट बसे गांवों और शहरों में वन्यपशुओं के घुस आने की अनेक घटनाएं आए दिन सामने आती हैं। इसी मई के पहले सप्ताह में कालेमुंह के वानरों का एक पूरा झुंड सागर जिला मुख्यालय के मकरोनिया उपनगर में उन कॉलोनियों से होकर गुजरा जहां कभी वानरों का प्रकोप नहीं रहा। चूंकि आधुनिक कॉलोनियों में फलदारवृक्षों का अभाव रहता है तथा छत या आंगन में भी खाने-पीने की वस्तुएं नहीं मिल पाती हैं अत: वह वानर-झुंड कॉलोनी के इलाके में रुका नहीं। छतों से होता हुआ आगे कहीं चला गया। नि:संदेह इस झुंड की यात्रा वहां जाकर थमी होगी जहां इन्हें खाना-पानी मिला होगा। उनका इस तरह शहर के भीड़ भरे इलाके से होकर गुजरना इस बात का सबूत था कि उन वानरों का निवास या तो जंगल काटे जाने से उजड़ गया है या फिर उनके इलाके में उनके लिए भोजन और पानी समाप्त हो चुका है। मूल समस्या यह है कि शहरों में इनके लिए कोई जगह नहीं है और ये अपने प्राकृतिक आवास को खोते जा रहे हैं। इस प्रकार ये वानर कब तक जीवन संघर्ष में सफल होते रहेंगे? यदि वानर अथवा कोई भी वन्य पशु अथवा पक्षी विलुप्ति के कगार पर पहुंचता है तो यह मानना चाहिए कि पृथ्वी पर जीवन की एक कड़ी टूटकर नष्ट हो जाती है। कल्पना करिए कि पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रकार के जीव एवं वनस्पतियां मोती की माला के मोती हैं तो मानव उस माला का लॉकेट है। माला के टूटने और मोतियों के बिखरने से लॉकेट का अस्तित्व भी नहीं रहेगा।
धरती पर मौजूद जंतुओं और पौधों के बीच के संतुलन को बनाए रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस 22 मई को मनाया जाता है। इसे विश्व जैव-विविधता संरक्षण दिवस भी कहते हैं। इस दिवस को संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रारंभ किया था। इस वर्ष की थीम रखी गई है- अवर बायोडायवर्सिटी, अवर फूड, अवर हेल्थ। जैव विविधता सभी जीवों एवं पारिस्थितिकी तंत्रों की विभिन्नता एवं असमानता को कहा जाता है। 1992 में ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में हुए जैव विविधता सम्मेलन के अनुसार जैव विविधता की परिभाषा इस प्रकार है- धरातलीय, महासागरीय एवं अन्य जलीय पारिस्थितिकीय तंत्रों में उपस्थित अथवा उससे संबंधित तंत्रों में पाए जाने वाले जीवों के बीच विभिन्नता जैवविविधता है।
प्राकृतिक एवं पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में जैव विविधता का महत्व देखते हुए ही जैव विविधता दिवस को अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। नैरोबी में 29 दिसंबर, 1992 को हुए जैव विविधता सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया था, किंतु कई देशों द्वारा व्यावहारिक कठिनाइयां जाहिर करने के कारण इस दिन को 29 मई के बजाय 22 मई को मनाने का निर्णय लिया गया। इसमें विशेष तौर पर वनों की सुरक्षा, संस्कृति, जीवन के कला शिल्प, संगीत, वस्त्र-भोजन, औषधीय पौधों का महत्व आदि को प्रदर्शित करके जैव विविधता के महत्व एवं उसके न होने पर होने वाले खतरों के बारे में जागरूक करना है।
जैव विविधता का संरक्षण और उसका टिकाऊ उपयोग, पारिस्थितिक रूप से टिकाऊ विकास के लिये महत्वपूर्ण है। विभिन्न प्रकार के जीवों की अपनी अलग-अलग भूमिका है, जो प्रकृति को संतुलित रखने तथा हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूर्ण करने, तथा सतत् विकास के लिए संसाधन प्रदान करने में अपना योगदान करती है। जैव विविधता का वाणिज्यिक महत्व, भोजन, औषधियां, ईंधन, औद्योगिक कच्चा माल, रेशम, चमडा, ऊन आदि से हम सब परिचित हैं। इसके पारिस्थितिकी महत्व के रूप में खाद्य शृंखला, मृदा की उर्वरता को बनाये रखना, जैविक रूप से सड़ी-गली चीजों का निपटान, भू-क्षरण को रोकने, रेगिस्तान का प्रसार रोकने, प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाने एवं पारिस्थितिकी संतुलन बनाये रखने में के रूप में देखा जा सकता है। इसके अलावा जैव विविधता का सामाजिक, नैतिक तथा अन्य प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष महत्व है, जो हमारे लिए महत्वपूर्ण है।
वैश्विक नेताओं ने भविष्य की पीढिय़ों के लिए पृथ्वी को एक जीवित ग्रह सुनिश्चित करते हुए वर्तमान जरूरतों को पूरा करने के लिए सतत विकास की एक व्यापक रणनीति पर सहमति व्यक्त की थी। 193 सरकारों ने इस पर हस्ताक्षर किए गए थे। अंतरराष्ट्रीय जैव-विविधता संरक्षण का उद्देश्य ऐसे पर्यावरण का निर्माण करना है, जो जैव विविधता में समृद्ध, टिकाऊ और आर्थिक गतिविधियों के लिए अवसर प्रदान कर सके। जैव विविधता का तात्पर्य विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु और पेड़-पौधों का अस्तित्व धरती पर एक साथ बनाए रखने से होता है। इसकी कमी से बाढ़, सूखा और तूफान आदि जैसी प्राकृतिक आपदा का खतरा बढ़ जाता है। पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने तथा खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने में भी जैव विविधता की अहम भूमिका होती है। इसलिए हमें प्रकृति से उपहार के रूप में मिले पेड़-पौधे, अनेक प्रकार के जीव-जंतु, मिट्टी, हवा, पानी, महासागर, समुद्र, नदिया आदि का संरक्षण करना चाहिए।
पृथ्वी पर लाखों प्रजाति के जीव व वनस्पति उप्लब्ध हैं। इन सबकी विशेषता एवं आवास विविध हैं, फिर भी यह आपस मे प्राकृतिक कडिय़ों से जुड़े हैं। संक्षेप में हम इसे वैश्विक जैव विविधता मान सकते हैं। मानव के कारण पर्यावरण में हो रहे बदलाव के कारण इनकी कडिय़ां टूट रही हैं, जो कि चिन्ता का विषय है। विश्व के समृद्धतम जैव विविधता वाले 17 देशों में भारत भी सम्मिलित है, जिनमें विश्व की लगभग 70 प्रतिशत जैव विविधता विद्यमान है। अन्य 16 देश हैं- ऑस्ट्रेलिया, कांगो, मेडागास्कर, दक्षिण अफ्रीका, चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, पापुआ न्यू गिनी, फिलीपींस, ब्राजील, कोलम्बिया, इक्वेडोर, मेक्सिको, पेरू, अमेरिका और वेनेजुएला। संपूर्ण विश्व का केवल 2.4 प्रतिशत भाग ही भारत में है, लेकिन यहां विश्व के ज्ञात जीव जंतुओं का लगभग 5 प्रतिशत भाग निवास करता है। भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण एवं भारतीय प्राणी सर्वेक्षण द्वारा किए गए सर्वेक्षणों के अनुसार भारत में लगभग 49,000 वनस्पति प्रजातियां एवं 89,000 प्राणी प्रजातियां पाई जाती हैं। भारत विश्व में वनस्पति-विविधता के आधार पर दसवें, क्षेत्र सीमित प्रजातियों के आधार पर ग्यारहवें और फसलों के उद्भव तथा विविधता के आधार पर छठवें स्थान पर है। वैसे भारत जैव विविधता संरक्षण का प्रबल पक्षकार है।
विश्व के कुल 25 जैव विविधता के सक्रिय केन्द्रों में से दो क्षेत्र पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट, भारत में है। जैव विविधता के सक्रिय क्षेत्र वह हैं, जहां विभिन्न प्रजातियों की समृद्धता है और ये प्रजातियां उस क्षेत्र तक सीमित हैं। भारत में 450 प्रजातियों को संकटग्रस्त अथवा विलुप्त होने के कगार पर दर्ज किया गया है। लगभग 150 स्तनधारी एवं 150 पक्षियों का अस्तित्व खतरे में है, और कीटों की अनेक प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। ये आंकड़े जैव विविधता पर निरंतर बढ़ते खतरे की ओर संकेत करते हैं। यदि यही दर बनी रही तो वर्ष 2050 तक हम एक तिहाई से ज्यादा जैव विविधता खो सकते हैं। जैव विविधता को कई कारणों से नुकसान हो रहा है। इसमें मुख्य है आवास की कमी, आवास विखंडन एवं प्रदूषण, प्राकृतिक एवं मानवजन्य आपदायें, जलवायु परिवर्तन, आधुनिक खेती, जनसंख्या वृद्धि, शिकार और उद्योग एवं शहरों का फैलाव। अन्य कारणों में सामाजिक एवं आर्थिक बदलाव, भू-उपयोग परिवर्तन, खाद्य शृंखला में हो रहे परिवर्तन, तथा जीवों की प्रजनन क्षमता में कमी इत्यादि है। जैव विविधता का संरक्षण करना मानवजीवन के अस्तित्व के लिये आवश्यक है। भारत को विश्व के उन 12 देशों मे शमिल किया जाता है जो सर्वाधिक जैव विविधता वाले देश हैं। पक्षियों की दृष्टि से भारत का स्थान दुनिया के दस प्रमुख देशों में आता है। भारतीय उप महाद्वीप में पक्षियों की 176 प्रजातियां पाई जाती हैं। दुनिया भर में पाए जाने वाले 1235 प्रजातियों के पक्षी भारत में हैं, जो विश्व के पक्षियों का 14 प्रतिशत है।
गंदगी साफ करने में कौआ और गिद्ध प्रमुख हैं। गिद्ध शहरों ही नहीं, जंगलों से खत्म हो गए। 99 प्रतिशत लोग नहीं जानते कि गिद्धों के न रहने से हमने क्या खोया। 1997 में रैबीज से पूरी दुनिया के 50 हजार लोग मर गए। भारत में सबसे ज्यादा 30 हजार लोग मारे गए। तब स्टेनफोर्ट विवि के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि गिद्धों की संख्या में अचानक कमी के कारण ऐसा हुआ। वहीं दूसरी तरफ चूहों और कुत्तों की संख्या में अचानक वृद्धि हुई। अध्ययन में बताया गया कि पक्षियों के खत्म होने से मृत पशुओं की सफाई, बीजों का प्रकीर्णन और परागण भी काफी हद तक प्रभावित हुआ। अमेरिका जैसा पूंजीवादी और प्रगतिशील देश चमगादड़ों को संरक्षित करने का हर संभव उपाय कर रहा है। यदि हम सोचते हैं कि चमगादड़ तो पूरी तरह बेकार हैं तो हमारी यह सोच गलत है क्योंकि वैज्ञानिकों के अनुसार चमगादड़ मच्छरों के लार्वा खाता खाते हैं और मनुष्य को मच्छरों से होने वाली अनेक बीमारियों से बचाते हैं।
यदि जंगल नहीं होगा तो वन्यपशु-पक्षी नहीं होंगे, पशु-पक्षी नहीं होंगे तो हानिकारक कीटाणु हमें क्षति पहुंचाते रहेंगे। जंगल नहीं रहेगा तो पानी भी समाप्त होता जाएगा और यदि नन्हें पक्षी नहीं रहेंगे तो जंगलों की संतति थमने लगेगी। सभी एक-दूसरे से परस्पर पूरक के समान जुड़े हुए हैं। इसीलिए जल, थल, वायु कभी स्थानों के जीवों का अपने-अपने स्थान पर होना आवश्यक है। इसे सरल शब्दों यही कहा जा सकता है कि पृथ्वी पर मानव जीवन के भविष्य के लिए हर एक जीव जरूरी है और इसके लिए जरूरी है जैव विविधता का बना रहना।