टीकमगढ़. 1700 साल पहले भी जिले में पत्थरों के अनूठे मठ, मंदिर और महल तैयार किए गए थे। समय के साथ यह जमींदोज हो गए हैं तो कुछ के अवशेष अब भी शेष हैं। यहां पर वाकाटक, गुप्त काल और प्रतिहार शासकों के समय के मठ, मंदिर और महल बताए जा रहे हैं। अब इन अवशेषों को संरक्षित करने के साथ ही यहां पर खुदाई कर इसकी संपूर्ण जानकारी सामने लाई जाएगी। इसके लिए प्रशासन ने कवायद शुरू कर दी है।
जिले के ग्रामीण अंचलों में मिलने वाली प्रतिमाएं, मठ-मंदिरों के जो अवशेष सामने आए हैं, उससे पता चलता है कि यहां की कला संस्कृति 1700 साल पुरानी हैं। यहां चौथी से छठवीं शताब्दी के अवशेष सामने आए हैं। इनमें से कुछ अवशेष सबसे पुराने वाकाटक काल के बताए जा रहे हैं। अब इन सभी अवशेषों का संरक्षण करने के साथ ही यहां पर खुदाई कराकर इस पूरे इतिहास को सामने लाया जाएगा। इससे जिले में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा तो इतिहास के अध्ययन एवं उस समय के वास्तु, शिल्प के साथ ही समृद्ध इतिहास की जानकारी सामने आएगी।
चौथी शताब्दी के अवशेष
सुधासागर मार्ग पर स्थित प्राचीन मठ, कार्तिकेय की प्रतिमा के साथ ही अन्य प्रतिमाएं चौथी से छठवीं शताब्दी की हैं। ग्राम कोटरा और देरी में पत्थरों का शैव मठ सन 940 से 990 के मध्य का बताया जाता है। जिले में 10वीं से 11वीशदी के बीच की कई प्रतिमाएं और मंदिर के अवशेष भी हैं। मांडूमर गांव में इतनी अधिक मात्रा में मूर्तियां मिलती हैं कि इनसे नींव भरकर मंदिर का निर्माण किया गया है। सुरक्षित मूर्तियों को मंदिर की दीवारों में चुना गया है।
इन स्थानों को किया जाएगा सुरक्षित
इतिहास के लिए महत्वपूर्ण इन स्थलों को अब संरक्षित करने के लिए प्रशासन ने पुरातत्व विभाग को प्रस्ताव भेजा है। इसमें कोटरा, देरी, सरकनपुर, बड़ागांव के शैव मठ, नारायणपुर का सूर्य मंदिर, आमोद मंडप, अहार का मदनेश्वर मंदिर, पपावनी की गौड़ कालीन बस्ती, लार बंजरया की गढ़ी, सुधासागर के गुप्तकालीन मंदिर को संरक्षित कर वैज्ञानिक ढंग से खुदाई कराने की जरूरत बताई है।
कहते हैं अधिकारी
जिले की पुरासंपदा को संरक्षित कर इसे पर्यटन के नक्शे पर लाने के लिए प्रयास किया जा रहा है। ऐसे 28 स्मारकों एवं प्रतिमाओं का प्रस्ताव पुरातत्व विभाग को भेजा गया है। इन स्थानों के अध्ययन से पुरातत्व महत्व की हर चीज सामने आ जाएगी।
– अवधेश शर्मा, कलेक्टर, टीकमगढ़।