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रवींद्र नाथ अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे। बचपन में उन्हें प्यार से रबी बुलाया जाता था। आठ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी, सोलह साल की उम्र में उन्होंने कहानियां और नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था।
दुनिया के संभवत: एकमात्र ऐसे कवि हैं, जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया।
बचपन से कुशाग्र बुद्धि के रवींद्र नाथ ने देश और विदेशी साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि को अपने अंदर समाहित कर लिया था।
रवीन्द्रनाथ टैगोर के काव्य पक्ष के साथ ही उनका कहानीकार पक्ष भी बहुत प्रभावित करता है, इसीलिए मैंने स्त्री विमर्श की अपनी पुस्तक ‘औरत तीन तस्वीरेंÓ में ‘टैगोर, स्त्री और प्रेमÓ शीर्षक से एक विस्तृत लेख लिखा। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर मानवीय भावनाओं के चितेरे कवि ही नहीं वरन् एक संवेदनशील कथाकार भी थे। टैगोर की कहानियों में तत्कालीन समाज, मानव प्रकृति व प्रवृत्ति, एवं मानव मनोविज्ञान अपने समग्र रूप में उभर कर आया है। जैसे ‘माल्यदानÓ कहानी की ‘बिन्नीÓ को लें, जिसके द्वारा रवीन्द्रनाथ ने प्रेम के प्रति स्त्री की मौन साधना को वर्णित किया। या फिर कहानी ‘प्रेम का मूल्यÓ को लें, जिसमें महाभारतकालीन पात्र ‘देवयानीÓ के माध्यम से उन्होंनें स्त्री गरिमा को स्थापित किया।
डॉ. शरद सिंह, लेखिका एवं समाजसेवी