लोगों के सेहत पर भी पड़ रहा प्रभाव, किसान नहीं हो रहे जागरूक
सागर•Dec 18, 2019 / 09:05 pm•
sachendra tiwari
pesticide
बीना. दिनों-दिन फसलों में कीटनाशक दवाओं और खाद का प्रयोग बढ़ रहा है, इससे मिट्टी तो खराब हो ही रही है साथ ही लोगों के सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इसके बाद भी किसान जागरूक न होकर उत्पादन बढ़ाने और फसलों को सुरक्षित रखने कीटनाश दवाओं का बड़ी मात्रा में उपयोग कर रहे हैं।
क्षेत्र में रबि सीजन का रकबा 54 हजार हेक्टेयर और खरीफ का करीब 50 हजार हेक्टेयर रकबा है। एक हेक्टेयर में 1 लीटर कीटनाशक दवा, एक लीटर फूल की दवा का छिड़काव किया जाता है और कीटनाशक दवा का छिड़काव फसल में दो बार तक किसान करते हैं। रबि सीजन में गेहूं को छोड़कर करीब 30 हजार हेक्टेयर में कीटनाशक दवाओं का छिड़काव होता है, जिससे एक बार में साठ हजार लीटर कीटनाशक दवा डाल दी जाती है। इसी प्रकार खरीफ सीजन में भी करीब 80 हजार लीटर दवा का छिड़काव कर दिया जाता है। किसान दोनों सीजन में करोड़ों की दवाओं का छिड़काव कर देते हैं, जिससे किसान को आर्थिक क्षति तो पहुंच ही रही है साथ ही मिट्टी भी खराब हो रही है। इसका फायदा बाजार में खुली कीटनाशक दुकानों के संचालक भी उठा रहे हैं और अच्छी दवाओं के नाम पर महंगी दवाएं किसानों को बेच देते हैं। जरूरत न होने पर भी कई किसान दवाओं का छिड़काव कर रहे हैं।
ज्यादा यूरिया डालने से बढ़ रही इल्ली
खादों का उपयोग भी फसलों का हानिकारण हो रहा है। गेहूं की फसल में यूरिया का उपयोग किसान कर रहे हैं, लेकिन अधिक यूरिया जमीन और फसलों के लिए हानिकार हो रहा है। खाद के कारण फसलों की इल्ली का प्रकोप बढ़ रहा है। यूरिया से फसल हरी दिखने लगती है, जिससे किसान इसका उपयोग एक से ज्यादा बार कर रहे हैं। जबकि एक एकड़ में पूरी फसल तैयार होने तक एक बोरी यूरिया पर्याप्त होता है।
खाद, कीटनाशक से यह हो रही हानि
जानकारों के अनुसार कीटनाशक दवाओं, खाद के छिड़काव के कारण फसल मित्र जीव-जंतुओं की संख्या साल दर साल घट रही है। खाद की प्रयोग के जमीन हार्ड हो रही है। यदि इसी मात्रा में खाद, कीटनाशक डलता रहा तो भविष्य में जमीन बंजर होने की कगार पर पहुंच जाएगी। साथ ही दवाओं के ज्यादा छिड़काव के कारण अब इल्ली पर दवाओं का असर भी नहीं होता है।
इल्ली के लिए लगाए खेत में खूंटी
कृषि विभाग के आरएइओ राकेश परिहार ने बताया कि कीटनाशक के बढ़ते उपयोग से जमीन, स्वास्थ्य, पर्यावरण को हानि पहुंच रही है। किसानों को अब जैविक खेती शुरू करनी होगी, जिसमें फसलों में मठ्ठा, गौमूत्र, नीम के पानी का छिड़काव करने से उत्पादन भी अच्छा होगा और किसी प्रकार की हानि भी नहीं होगी। इल्ली को मारने के लिए खेत में जगह-जगह लकड़ी की खूूंटी लगा दें, जिससे पक्षी बैठेंगे और इल्ली को खाते हैं। कृषि वैज्ञानिक फूल की दवा डालने के लिए पूरी तरह से मना करते हैं। इस दवा से उत्पादन क्षमता नहीं बढ़ती है।
हो सकती हैं गंभीर बीमारियां
डॉ. आरके जैन ने बताया कि खाद, कीटनाशक दवाओं के छिड़काव वाली फसलों का सेवन करने से पेट में छाले, एलर्जी, ब्रेन संबंधी समस्या सहित लीवर, किडनी पर अर पड़ सकता है। कुछ दिनों से लीवर और किडनी की बीमारियों में इजाफा भी हुआ है। साथ ही कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी हो सकती है।
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