इनका नाम है रामसिंह अहिरवार। इन्हें सागर संसदीय सीट से 1967 में जनसंघ ने टिकट दिया था। चुनाव भी जीते थे, लेकिन इसके बाद वह रूतबा और हैसियत हासिल नहीं कर सके जो आमतौर पर किसी सांसद जैसे नेताओं के साथ जुड़ी रहती है।
82 वर्षीय रामसिंह पुरव्याऊ टौरी में गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। बकौल रामसिंह- उनके सांसद बनने के कुछ साल बाद न तो जनसंघ और अब न ही भाजपा के लोगों ने कभी पूछा। कोई मशविरा या सलाह भी नहीं ली। उन्हें सांसद के रूप में मिलने वाली पेंशन लेने के लिए 38 साल तक संघर्ष करना पड़ा। 1967 में वह सांसद बने थे, लेकिन 2005 में उन्हें पेंशन मिली। इससे पहले तक उन्होंने व उनकी पत्नी राजरानी ने बीड़ी बनाकर गुजर-बसर किया। एक बेटी व बेटे की पढ़ाई इसी बीड़ी से मिलने वाले पैसों से कराई। बेटी के हाथ पीले किए और बेटा को अपने पैरों पर खड़ा किया।
छिप-छिपकर बनाते थे बीड़ी
राजरानी कहती हैं कि वे (रामसिंह) छिप-छिपकर बीड़ी बनाते थे। उस जमाने में पति का सांसद होना मेरे लिए बड़ी बात थी। आजकल के नेता तो बंगला-गाड़ी वाले होते हैं, लेकिन पति के सांसद होने के बाद भी उन्हें यह कमी नहीं खली, क्योंकि वे अपने पति के विचारों व उनकी सादगी के साथ हमेशा खड़ी रहीं।
फैशन से दूर रहें, अपनी संतुष्टि के लिए काम करें युवा
रामसिंह अपनी पत्नी के साथ पुरव्याऊ टौरी स्थित पुराने मकान में निवास करते हैं। घर में ट्यूबलाइट या सीएफएल नहीं है, वे कई दशकों से 40-60 वाट के बल्व का ही उपयोग कर रहे हैं। वे कहते हैं, कभी ट्यूटबलाइट या सीएफएल लगाने की तरफ ध्यान नहीं गया। कुर्ता-पायजामा पहनने का शौक अभी भी है, जो सांसद बनते समय था। वे फैशन से दूर रहे, क्योंकि इसमें दिखावा ज्यादा और स्वयं की संतुष्टि कम है। वे युवाओं को भी संदेश देते हैं कि फैशन नहीं, जो स्वयं को अच्छा लगे वो करें। दिखावे में न पड़ें। अपनी संतुष्टि के लिए काम करें।
दर्शन शास्त्र की पढ़ाई और अंग्रेजी से एमए
रामसिंह अभावों के बीच पढ़े-लिखे हैं। वे बताते हैं कि परिवार में बीड़ी बनाकर ही गुजर-बसर होता था। उन्होंने भी बचपन से बीड़ी बनाई और पढ़ाई-लिखाई की। प्राथमिक शिक्षा के बाद 1966 में सागर यूनिवर्सिटी से दर्शन शास्त्र से स्नातक और फिर अंग्रेजी से एमए किया। वह बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के विचारों व सिद्धांतों से प्रभावित रहे। लिहाजा रामसिंह जिस कमरे में रहते हैं वहां एक दीवार पर बाबा साहेब की फोटो दशकों से लगा रखी है। रामसिंह ओशो से भी प्रभावित हैं और गीता जैसे ग्रंथों को पढ़ते रहते हंै।