भारतीय वायुसेना ने पीओके समेत पाकिस्तान के बालाकोट में हवाई हमले किए हैं। जिस बालाकोट को भारतीय वायुसेना ने निशाना बनाया है, वह पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत के मानसेहरा जिले में है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, मानसेहरा 1990 से आतंकी संगठनों का गढ़ बना है। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से यह इलाका काफी सटा हुआ है। इस्लामाबाद से वहां जाने में मुश्किल से चार घंटे लगते हैं। मानसेहरा इलाके में आतंक के पनपने में सरकारी मशीनरी का हाथ रहा है। यह इलाका पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) और हमारे कश्मीर से सटा हुआ है। पीओके से इसकी दूरी करीब 25 मील और कश्मीर से 45 किलोमीटर है। कश्मीर से नजदीकी को देखते हुए इसे आतंकियों के लिए ट्रेनिंग कैंप बनाया गया।
एक ओर हमारी सेना हमें गर्व करने का अवसर दे रही है, वहीं दूसरी ओर देश के भीतर बैठे अपराधी मानवता को शर्मसार करने पर तुले हुए हैं। हमारी एक आंख में उस गर्व की चमक है जो पुलवामा का बदला लेने से मिली है, वहीं दूसरी आंख से आंसू छलक रहे हैं सतना के उन दो मासूम जुड़वा बच्चों को याद कर के जो नृशंसतापूर्वक मौत के घाट उतार दिए गए। पिछले कुछ वर्ष से देश में जिस तरह अपराधों की बाढ़ आई हुई है वह चिंतित करने वाली है। विशेष रूप से बुंदेलखंड जैसे पिछले इलाके, जहां आर्थिक और शैक्षिक कमी है, अपराध के लिए उर्वर जमीन का काम कर रहे हैं। बारिश की कमी, सूखे के मार, उचित जलप्रबंधन का अभाव, प्राशासनिक कमियां, भुखमरी, गरीबी, किसानों द्वारा आत्महत्याएं आदि ये सभी वे कारक हैं जो अपराधों को खाद-पानी मुहैया कराते हैं। वहीं पीडि़त जनता को मिलते हैं सिर्फ आश्वासन।
मध्य प्रदेश के चित्रकूट में पांच वर्षीय दो जुड़वा भाइयों की हत्या से हर कोई सदमे में है। यूं तो सतना बघेलखंड में है, लेकिन बुंदेलखंड से लगा हुआ है। उस पर जिन अपराधियों ने इस घटना को अंजाम दिया उनमें से मुख्य आरोपी बुंदेलखंड के हैं और जिस स्थान यानी चित्रकूट में घटना घटित हुई वह भी बुंदेलखंड में है। इस हृदयविदारक घटना के लिए कोई पुलिस व्यवस्था को जिम्मेदार ठहरा रहा है तो कोई उस सीमारेखा को जिससे बुंदेलखंड बंटा हुआ है और दशकों से वही चूहा-बिल्ली का खेल खेला जा रहा है जो प्रत्येक दो राज्यों की सीमा पर स्थित इलाकों में खेला जाता रहा है। अपराधी एक राज्य में अपराध कर के दूसरे राज्य में जा छिपते हैं और पुलिस कानूनी मसलों में उलझी रह जाती है। इस नृशंस घटना में कहां चूक हुई यह तो जांच पूरी होने पर ही पता चलेगा, लेकिन इतना तो स्पष्ट दिख रहा है कि बुंदेलखंड में अपराधों का ग्राफ बढ़ता जा रही है।
जुड़वां बच्चों की हत्या का घाव अभी आंखों के सामने आया ही था कि छतरपुर जिले में एक किशोरी पर एक युवक ने सिर्फ इसलिए जानलेवा हमला कर दिया कि उसने उस युवक का प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया था। लगता यही है कि शासन किसी भी दल का रहे, अपराधियों को कोई फर्क नहीं पड़ता। अपराधों के बहीखातों के पिछले कुछ पन्ने पलटें तो देख सकते हैं कि वर्ष 2010 के मार्च में 18 वर्षीया नाबालिग को उनके पड़ोस में रहने वाले चार लड़कों ने बलात्कार के प्रयास के बाद मिट्टी का तेल डालकर जला दिया था। सागर जिले के छिरारी में साढ़े सात साल की बच्ची की दसम्बर 2012 को बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई। दिसम्बर 2017 में सागर के भानगढ़ थाना क्षेत्र की 14 वर्षीय नाबालिग को हवस का शिकार बनाया गया। लड़की पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी। नाबालिग की अस्पताल में सात दिन बाद मौत हो गई। बुंदेलखंड में अपराध इतना बढ़ता जा रहा है की चोरी और हत्या आम बात हो गई है।
छतरपुर-दमोह में जहां देशी कट्टे और पिस्टल से जानलेवा हमले का चलन बढ़ा है तो सागर पिछले एक साल में चाकू-कटरबाजी की दर्जनों वारदातें हुईं। विगत वर्ष किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार शस्त्र संबंधी अपराधों में टीकमगढ़ और पन्ना संभाग में सबसे निचले पायदान पर रहे हैं। सबसे ज्यादा 236 प्रतिशत शस्त्र संबंधी अपराध छतरपुर और दूसरे क्रम पर 203 प्रतिशत अपराध दमोह जिले के पुलिस थानों में दर्ज किए गए। सागर संभाग के पांच जिलों में 75 प्रतिशत वृद्धि के साथ शस्त्र संबंधी प्रकरणों में तीसरे नंबर पर और पन्ना जिले में पिछले तीन सालों में सबसे कम केवल 17 प्रतिशत वृद्धि देखी गई।
उत्तरप्रदेश के हिस्से में फैले बुंदेलखंड के बांदा, कर्वी जैसे जिलों में मामूली बात में हथियारों का प्रयोग किया जाना आम बात है। लड़कियों, महिलाओं और बच्चों की तस्करी के भी आंकड़े बुंदेलखंड के माथे पर जब तब दाग लगाते रहते हैं। देह व्यापार का बोलबाला भी कम नहीं है। बुंदेलखंड से तो लड़कियां महानगरों में भेजी ही जा रही हैं, वहीं महानगरों से लड़कियां देहव्यापार के लिए बुलाई भी जाती हैं। बुंदेलखंड में विवाह के नाम पर भी महिलाओं को खरीदा और बेचा जाता है। बुंदेलखण्ड के झांसी, ललितपुर, जालोन, टीकमगढ़, छतरपुर, और पन्ना की बात करें, तो यहां एक हजार पुरुषों पर 825 महिलाएं हैं। ऐसे में अपने वंश को चलाने के लिये बुंदेलखण्ड के युवा ओडिशा जैसे राज्य की लड़कियों की खरीद-फरोख्त करते हैं। दलालों के माध्यम से ओडिशा से बुन्देलखण्ड पहुंची इन महिलाओं की शादी 100 रुपए के स्टाम्प पर करा दी जाती है। यह इकरारनामा कानूनी रूप से वैध नहीं होता है।
बुंदेलखंड का ग्रामीण अंचल आज भी अशिक्षा और असुरक्षा के जाल में इस तरह जकड़ा हुआ हैकि वह अपने विरुद्ध होने वाले अपराधों के लिए आवाज भी बुलंद नहीं कर पाता है। उस पर अवैध हथियारों का दबाव उन्हें मुंह बंद रखने को विवश करता रहता है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में सिर्फ राजनीतिक हल्ला बोल कर दशा नहीं सुधारी जा सकती है। बुंदेलखंड में अपराधों के आंकड़े हमेशा स्थिति की गंभीरता की ओर संकेत करते रहे हैं, लेकिन उन लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा, जो इस दशा के लिए जिम्मेदार हैं। राजनीतिक शोर और चुनावी मुद्दों के बीच रह जाने वाली अपराधों की बढ़त की समस्या आज भी जस के तस है। यदि बढ़ते अपराधों पर प्रशासन अब भी अंकुश न लगा सका तो कल सीमा पर बैठे सिपाही कहीं ये न पूछने लगें कि क्या इन्हीं अपराधियों के लिए हम अपनी जान दे रहे हैं? देश की सीमा पर पहरा दे रहे सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए भी जरूरी है कि आंतरिक शांति और सुरक्षा बरकरार रहे।
लेखिका साहित्यकार और समाजसेविका हैं।
एम-111, शांतिविहार, रजाखेड़ी, मकरोनिया, सागर (मप्र)