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सुप्रीम कोर्ट की अनुमति का इंतजार और समाप्त हो जाएगा नौरादेही में अफ्रीकन चीतों का इंतजार

राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण मप्र ने सुप्रीम कोर्ट से की है चीतों का लाने की अपील, नौरादेही अभयारण्य में करीब 12 गांव हो चुके हैं विस्थापित
 

सागरApr 28, 2019 / 09:29 pm

मदन गोपाल तिवारी

Preparing to set up 30 panthers in Nairadehi Sanctuary

मधुर तिवारी@सागर. प्रदेश के सबसे बड़े नौरादेही अभयारण्य में अफ्रीकन चीतों को लाने का मसौदा अब साकार होता नजर आ रहा है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आइयूसीएन) की मंजूरी के बाद अब उम्मीदें और ज्यादा बढ़ गई है। सेंचुरी के अधिकारियों का कहना है कि जैसे ही सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण मप्र (एनटीसीए) की अपील पर चीतों को लाने की अनुमति देता है और यहां कुछ ही समय में सालों का इंतजार समाप्त हो जाएगा। नौरादेही अभयारण्य में 30 चीतों को बसाने की तैयारी की जा रही है। ये चीते दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से लाए जाएंगे। चूंकि चीतों का बसेरा घास के मैदानों में होता है इसके लिए अभयारण्य में करीब 400 वर्ग किलोमीटर में फैला घास का वन भी गांव के विस्थापन के बाद खाली हो चुका है। यानी लगभग पन्ना टाइगर रिजर्व (450 वर्ग किमी) के बराबर का घांस का मैदान चीतों के लिए खाली कराया गया है।

करीब आठ साल पहले तैयार हुआ था मसौदा
जानकारी के अनुसार नौरादेही अभयारण्य में अफ्रीकन चीतों को लाने का मसौदा करीब आठ साल पहले तैयार किया गया था। इसके लिए करीब तीन हजार करोड़ रुपए का प्रस्ताव तैयार किया गया था, जिसमें अभयारण्य के बीच बसे गांवों को विस्थापन करने पर व्यय सहित अन्य व्यवस्थाएं बनाने के बिंदु शामिल थे। प्रस्ताव तैयार करते समय तो 23 गांव को विस्थापित करने का प्लान किया था, लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या 38 पर पहुंच गई है और अब तक १२ गांवों का पूरी तरह से विस्थापन भी हो चुका है।

विशेषज्ञों की टीम कर रही अध्ययन
वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार नौरादेही में बाघ, चीतों का बसेरा बनाने को लेकर नौरादेही अभयारण्य की 15 से 18 सदस्यीय समिति इसके लिए काम कर रही है। इसमें स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट, जबलपुर वेटनरी मेडिकल कॉलेज और वाइल्ड लाइफ वैज्ञानिक शामिल हैं। विशेषज्ञ अभयारण्य में जलवायु परिवर्तन के असर, बायोडायवर्सिटी को लेकर समय-समय पर फीडबैक देते रहते हैं।

हजारों की संख्या में हैं वन्यप्राणी

वर्ष 1975 में स्थापित हुए नौरादेही अभयारण्य में हजारों की तदात में वन्यप्राणी हैं। अभयारण्य क्षेत्रफल करीब 1197 वर्ग किलो मीटर के दायरे में फैला हुआ है, जो तीन जिलों सागर, नरसिंहपुर और दमोह को अपनी सीमा में समेटे हुए है। वायो डायवर्सिटी के कारण नौरादेही वन्य जीव सेंचुरी का स्थान सबसे अलग है। जानवरों की प्यास बुझाने के लिए कई बड़े तालाबों के अलावा क्षेत्र की जीवनदायनी नदी ब्यारमा व बमनेर एक बड़े हिस्से में पानी की कमी को पूरा करती है।

यह वन्यप्राणी हैं अभयारण्य में

अभयारण्य में बाघा, तेंदुआ, भेडिया, गीदड़, सोनकुत्ता, लकड़बग्घा, लोमड़ी, भालू, चिंकारा, हिरण, नीलगाय, सियार, जंगली कुत्ता, रीछ, मगर, सांभर, चीतल तथा कई अन्य वन्य जीव इस क्षेत्र में पाए जाते हैं। विभागीय जानकारी के अनुसार बीते एक साल से अभयारण्य में तेंदुए भी जहां-तहां नजर आने लगे हैं, जबकि चीतल, हिरण, चिंकारा की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है।

12 गांव पूरी तरह से हो चुके हैं विस्थापित

भौगालिक व प्राकृतिक दृष्टि से नौरादेही अभयारण्य बाघों व चीतों के अलावा हर तरह के वन्यजीवों के लिए उपयुक्त स्थान है। यही कारण है कि अभयारण्य के दायरे में बसे करीब 37 गावों को विस्थापित किया जा रहा है। इसमें अभी तक यहां से 12 गांव को पूर्ण रूप से विस्थापित भी किया जा चुका है, जबकि दो और गांव वालों के बैंक खातों में विस्थापन की राशि पहुंच चुकी है।। 25 गांव को विस्थापन करने व्यय होने वाली राशि तीनों जिलों सागर, दमोह व नरसिंहपुर कलेक्टर्स के खातों में पहुंच चुकी है। यह राशि किश्तों में आई है, बताया जा रहा है कि वर्तमान में कलेक्टर्स के खातों में करीब 433 करोड़ रुपए की राशि है।

यह की हैं व्यवस्थाएं

– नाइट विजन कैमरे अभयारण्य में लगाए गए हैं।

– ड्रोन से मॉनिटरिंग की जा रही है।

– बाघों के आने के बाद टीमें लगातार सक्रिय हैं।

– घांस के मैदान विकसित किए गए हैं।

– बेल्जियम मेलोनाइज डॉग को लाए सुरक्षा के लिए।

सेंचुरी पूरी तरह तैयार हैं
अफ्रीकन चीतों के लिए वन विभाग की टीम और सेंचुरी पूरी तरह तैयार हैं। सुरक्षा से लेकर चीतों के रहने के लिए करीब 400 वर्ग किमी घांस का मैदान भी खाली हो चुका है। जैसे ही सुप्रीम कोर्ट की अनुमति मिलेगी हम चीतों को लाने की प्रक्रिया शुरू कर देंगे।

डॉ. अंकुर अवधिया, डीएफओ, नौरादेही अभयारण्य

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