हम बात कर रहे हैं बुंदेलखंड और देश के प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र बांदकपुर में विराजमान जागेश्वर नाथ भगवान की। दमोह जिले में स्थित है। भगवान जागेश्वर नाथ को देश के १३वें ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता हैं। यहां फिल्म अभिनेताओं से लेकर अनेक वीआईपी का हमेशा जमावड़ा लगा रहता है। मान्यता है कि चारों धाम की यात्रा करने के बाद यदि आपने भगवान जागेश्वर नाथ का नर्मदा जल से अभिषेक नहीं किया है तो यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती है। इसीलिए जागेश्वरनाथ को १३वें ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाने लगा है।
चमत्कार एक
अठारहवीं शताब्दी के अंत में एक दिन सुबह से इंदिरा नाम की कन्या जो बालक बालिकाओं के साथ मकर संक्रांति के समय देव पूजन के लिए आई थी। भक्तों की भीड़ के धक्कों के लगने या फिसलने के कारण वह बावली में डूबकर मर गई। कथानुसार व भैरव प्रसाद बाजपेयी द्वारा लिखित श्री बांदकपुरी जागेश्वर रहस्य के अनुसार मंदिर के पुजारियों ने उस मृत बालिका के शरीर को भगवान जागेश्वर नाथ महादेव जी की मूर्ति के समक्ष रखकर महादेव की स्तुति करते हुए कन्या को जीवन दान देने की प्रार्थना की गई। प्रार्थना के फलस्वरूप कन्या जीवित हो उठी।
चमत्कार दो
दिनांका 15 जनवरी 1938 दिन सोमवार की दोपहर 2 बजे भूकंप के धक्के निकल जाने के अनंतर ही महादेव जी के मंदिर में विशाल स्वर्ण कलश के त्रिशूल भाग के ऊपरी कोण से आधी इंच मोटी जल धारा लगभग १५ मिनट तक अनवरत रूपेण निकलती रही। मकर संक्रांति और सोमवती अमावस्या को मेला काल में उपस्थित जनसमूह ने इस चमत्कारिक घटना को प्रत्यक्ष रूप से देखा। गुलाबरानी नामदेव ने अपने बच्चों को इस चमत्कारिक घटना के बारे में बताया था।
चमत्कार तीन
15 अगस्त 1944 को सुबह 11 बजे श्रीमंदिर धर्मशाला की दूसरी मंजिल का ऊपरी भाग अकस्मात गिर गया। मंजिल के नीचे १२ वर्षीय बाल मूलचंद चढ़ार खड़ा था। अत: यह बालक बिल्डिंग के हजारों मन वजनी मलमे के नीचे दब गया।विशेष सावधानी और परिश्रम से बालक के ऊपर का मलमा दूर किया गया। इस दौरान बालक के लिए जीवन दान की कामना जागेश्वरनाथ से मौजूद जनों द्वारा की गई। चमत्कार यह हुआ कि बालक सकुशल और जीवित निकला।उसके शरीर में कुछ साधारण चोट आई थीं।
चमत्कार चार
1945 के जून माह में सांयकाल करीब 6 बजे फतेहपुर सीकरी से जबलपुर दक्षिण में जाती हुई मालगाड़ी जिसमें विषाक्त बंबो की बोरियां भरी हुई थीं। इसके मध्यवर्ती डिब्बे में से बांदकपुर रेलवे स्टेशन के कर्मचारी वर्ग ने धुआं निकलता देखकर सिग्नल और झंडियों के आकस्मिक संकेतों से पूर्वी पॉइंट पर गाड़ी को रोक दिया। डिब्बा काटा गया और कटनी की तरफ तीन मील की दूरी पर ले जाया गया। इसके अंतर ही बमों का जलकर फूटना प्रारंभ हो गया। लगातार तीन घंटों तक अनवरत बम फूटते रहे। घटना से भयभीत ग्रामीण जीवन रक्षा के लिए भगवान जागेश्वर नाथ के मंदिर पहुंचे और प्रार्थना शुरू की।भगवान जागेश्वर नाथ की अनुकंपा से समीपस्थ दूरस्थ घटना के दर्शनार्थी आगत दर्शकों या किसी भी प्राणी की प्राण हानि नहीं हुई।
चमत्कार पांच
कहा जाता है कि भक्तों के द्वारा विशेष पर्वकाल में सवा लाख कॉवरों के पुनीत नर्मदा जल से श्री जागेश्वर नाथ महादेव का विधिवत पूजन करने पर महादेव और माता पार्वती के मंदिरों के स्वर्ण कलशों पर लगाई जाने वाली ध्वजाएं जो दूसरे से सौ फुट की दूरी पर रहती है, झुककर मिल जाती है। ध्वजाओं के मिल जाने की घटना का उल्लेख दमोह गजेटियर और दमोह दीपक में है।
चमत्कार छह
सौभाग्यवती इंद्राबाई भालचंद्र ने अपने लेख 12 अगस्त 1970 में लिखा है कि मेरी छोटी उम्र में जब वह सात वर्ष की थी। पार्वती जी के मंदिर के पीछे की तरफ उनके पिता सदाशिवराव बेलापुर के साथ रहा करते थे। वे पुजारी थे। उस समय एक दिन दोपहर के समय अपनी बाल सहेलियों सहित खेलते समय किसी का धक्का लगने पर बावली में गिर गई। सब सहेलियां भग गई लेकिन एक मित्र शंकर जी के मंदिर में गया और श्री चरणें में मस्तक रखकर अपने मित्र को बचाने के लिए उसने प्रभु के चरणों में अनेक बार माथा टेककर प्रार्थना की और वह प्रदक्षिणा लगाने लगा। थोड़ी देर में उसकी मां उसको भोजन करने के लिए बुलाने आई, उसने मुझे बावली में से निकालने के लिए कहा। इस कार्य में कम से कम आधा घंटा लग गया। उन्होंने लिखा कि उन्हें याद है कि बावली में कोई एक अच्छा उज्जवल और बलवान साधु जिसकी जटा लंबी थी, वह नीचे से मुझे ऊपर की ओर ढकेल रहा था। मैं स्वत: अपनी आंखों से सब देख रही थी। पश्चात सब नजदीक लोग आ गए और मुझे ऊपर निकाला गया। उसके बाद मेरे घर मां और पिता को यह वार्ता मालूम हुई और वे आए। उनका कहना है कि उन्हें शंभर प्रभू ही पानी के ऊपर ही झेल रहे थे।