सागर. भगवान सूर्य के उत्तरायण होने के पर्व मकर संक्रांति को भारत देश में अलग-अलग परंपराओं और तरीके से मनाया जाता है। शहर में विभिन्न समाज के लोग भी सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक परंपराओं के साथ संक्रांति के पर्व को मनाते हैं। बुंदेलखंड में मकर संक्रांति के पर्व पर तिल को हल्दी के साथ पीसकर शरीर पर लगाने के बाद स्नान करते हैं और फिर भगवान शिव का पूजन करते हैं। भगवान शिव के पूजन में खिचड़ी के साथ बुंदेलखंड में गढिया गुल्ला चढ़ाने की परंपरा है। यह बुंदेलखंड का ऐसा व्यंजन है, जो सिर्फ मकर संक्रांति के अवसर पर बताशा बनाने वाले हलवाई बनाते हैं। वहीं इस मौके पर गुजराती समाज के लोग पतंग उत्सव मनाते हैं। शहर के बच्चों में भी पतंगबाजी करने का उत्साह रहता है। संक्रांति के पहले पतंग की दुकानों पर भी भीड़ नजर आने लगी है।
शुभ माना जाता है पतंग उड़ाना समाज मकर संक्रांति को उत्तरायण और पतंग महोत्सव के रूप में मनाता है। समाज के जितेंद्र भाई पटेल ने बताया कि इस दिन तिल-गुड़ के लड्डू, तुअर फाफड़ी और चूड़ा जैसे व्यंजन बनाए जाते हैं। पतंग उड़ाने को शुभ माना जाता है। उन्होंने बताया कि गुजरात में पूरा परिवार पतंग और डोर लिए घर की छत पर जा पहुंचता है और जब वापस नीचे उतरता है तो रात हो चुकी होती है। हालांकि रात में भी कैंडल पतंग संक्रांति की रात का संदेश देती तारों के बीच झिलमिलाती है। गुजरात की हर सोसायटी (कॉलोनी) घर की छत पर भरी नजर आती है।तमिल समाज मनाएगा पोंगल महोत्सवतमिल समाज इसे पोंगल के रूप में मनाता है। चार दिवसीय इस उत्सव में सूर्यदेव को अर्घ्य देंगे। वहीं भगवान को विशेष खीर (वेन पोंगल) का भोग लगाया जाता है। पोंगल पर्व को दक्षिण भारत में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार के दिन लोग मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाकर खाते हैं। यह उनकी परंपरा से जुड़ा हुआ है, जो की धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।
सिंधी समाज की अनोखी परंपरा मकर संक्रांति पर सिंधी समाज में अनोखी परंपरा है। राजेश मनवानी ने बताया कि हटड़ी की पूजा महिलाएं एकजुट होकर करती है और नव वर्ष में देश भर में सुख शांति बनी रहे यह दुआ मांगती है। इस दिन मेथी, मटर और गोभी से पुलाव बनता है।
बंगाली समाज में होती है कुलदेवी की पूजा बंगाली में इसे पौष पर्वन के कहते हैं। इस दिन घरों में कुलदेवी-देवताओं की पूजा की जाती है। बंगाली समाज में हजारों साल पहले से कुलदेवता की पूजा की जाती है। प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए समाज के लोग देवताओं की शरण में जाते थे।