सागर

तीन दशक में विधानसभाओं में बदलता रहा पॉवर पॉइंट, अब अधिकांश भाजपा में, इसलिए टशन

सागर. सरकारें किसी भी दल की रहीं हों, लेकिन बुंदेलखंड खास तौर पर सागर जिले का रुतबा बरकरार रहा है। पिछले तीन दशकों में रहली विधानसभा को छोड़ दिया जाए, तो विधानसभाओं में पॉवर पॉइंट वक्त के हिसाब से बदलता रहा। कभी भाजपा के नेताओं का वर्चस्व देखने को मिला तो कभी कांग्रेस के हाथ […]

सागरNov 15, 2024 / 05:33 pm

अभिलाष तिवारी

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  • भाजपा में कांग्रेसियों का हुआ ज्यादा पलायन
  • नए भाजपाई पार्टी की मानसिकता से जुड़ रहे, लेकिन पुराने एडजस्ट नहीं कर पा रहे
सागर. सरकारें किसी भी दल की रहीं हों, लेकिन बुंदेलखंड खास तौर पर सागर जिले का रुतबा बरकरार रहा है। पिछले तीन दशकों में रहली विधानसभा को छोड़ दिया जाए, तो विधानसभाओं में पॉवर पॉइंट वक्त के हिसाब से बदलता रहा। कभी भाजपा के नेताओं का वर्चस्व देखने को मिला तो कभी कांग्रेस के हाथ विधायक की कुर्सी आ गई। पिछले 21 में से डेढ़ साल की कमलनाथ सरकार को छोड़ दिया जाए, तो प्रदेश में भाजपा की सरकार काबिज रही। यही वजह है कि कांग्रेसियों का भाजपा में पलायन समय-समय पर ज्यादा देखने को मिला। सबसे बड़ा पलायन कमलनाथ सरकार गिरने पर हुआ। इसी वजह से विधानसभाओं में नए और पुराने भाजपा कार्यकर्ताओं में टकराव की स्थिति देखने को मिल रही है।

जिले की विधानसभाओं की स्थिति

सागर विस- संभागीय मुख्यालय की सागर विधानसभा पर बीते तीन दशकों से भाजपा का कब्जा है। यहां पर भाजपा को कांग्रेस की तुलना में अपने ही पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं से चुनौती रहती है। एक से अधिक दावेदार होने के कारण सभी की इस पर नजरें रहती हैं। 1993 से 2008 तक सुधा जैन का इस विस से दबदबा रहा, लेकिन उन्हें चौथी बार टिकट नहीं मिला। यहां पर भाजपा ने 2008 में प्रत्याशी के रूप में शैलेंद्र जैन को मैदान में उतारा, जो अब तक चार बार जीत चुके हैं। शैलेंद्र जैन के विरुद्ध कांग्रेस से 2003 और 2013 में चुनाव लडऩे वाले डॉ. सुशील तिवारी और 2018 में चुनाव लडऩे वाले नैवी जैन भाजपा में आ गए। इस वजह से यहां भी हमेशा टकराव की स्थिति देखने को मिलती रहती है। बीते दिनों भाजपा के प्रदेश नेतृत्व तक विवाद का मामला पहुंच गया था।
सुरखी विस- सुरखी विस सागर की ऐसी इकलौता विधानसभा है, जिसने जिले को कई बड़े नेता दिए। लक्ष्मीनारायण यादव, विट्ठलभाई पटेल, भूपेंद्र सिंह, गोविंद सिंह राजपूत समेत अन्य नाम शामिल रहे। वर्ष-1993 में भूपेंद्र सिंह ने उस समय के प्रदेश स्तर के बड़े नेता विट्ठलभाई पटेल को हराकर मप्र की राजनीति में हलचल पैदा कर दी थी। इसके बाद भूपेंद्र सिंह का 10 सालों तक इस विस में दबदबा रहा, लेकिन 2003 में उमा भारती की लहर के बावजूद भूपेंद्र सिंह कांग्रेस के गोविंद सिंह राजपूत से चुनाव हार गए। गोविंद सिंह अगले 10 साल तक कांग्रेस का झंडा ऊंचे किए रहे, लेकिन 2013 के चुनाव में भाजपा के पारुल साहू से चुनाव हार गए। गोविंद ने 2018 में वापसी की, फिर 2020 उपचुनाव और 2023 के आम चुनाव में जीत हासिल की। गोविंद इस विस से सबसे ज्यादा चुनाव जीतने वाले विधायक भी बन गए हैं। इस विस से एक-दूसरे के विरुद्ध भाजपा-कांग्रेस से चुनाव लडऩे वाले पिछले तीन दशक के अधिकांश प्रत्याशी भाजपा में ही हैं, इस वजह से मनमुटाव देखने को मिल रहा है।
रहली विस- सागर जिले समेत पूरे बुंदेलखंड की एक मात्र ऐसी विधानसभा है, जहां पर 39 साल से सिर्फ एक ही नेता का दबदबा कायम है। पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव 2023 के चुनाव में लगातार 9वीं बार विधानसभा चुनाव जीते। यहां पर भाजपा संगठन के लिए वर्ष-2018 के चुनाव में ही थोड़ी चिंता हुई थी, जब भाजपा से बगावत कर कमलेश साहू ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन भार्गव बड़े अंतर से चुनाव जीत गए। 2023 के चुनाव में उनके जीत का अंतर 2018 की तुलना में ढाई गुना तक बढ़ गया। हालांकि पूर्व मंत्री भार्गव भी समय-समय पर कुछ भाजपा नेताओं पर अपनी विधानसभा में दखल देने के आरोप लगाते रहे हैं। कई बार उन्होंने मुखर होकर अपनी बात मंचों से भी रखी।
नरयावली विस- नरयावली विधानसभा में 1990 के दशक तक खटीक बंधुओं का दबदबा रहा। 1977 से 1998 तक भाजपा मात्र एक बार ही चुनाव जीत सकी। 1998 में कांग्रेस के सुरेंद्र चौधरी चुनाव जीते और दिग्विजय सरकार में मंत्री बने, लेकिन 2003 की उमा भारती की लहर में वे चुनाव हार गए। नारायण कबीरपंथी विधायक बने और उन्हें उमा भारती सरकार में मंत्री का दर्जा मिला। 2008 में भाजपा ने टिकट में बदलाव किया और तब से लेकर आज तक चार बार प्रदीप लारिया विधायक का चुनाव जीत चुके हैं। लारिया भाजपा के अन्य नेताओं पर नरयावली विस क्षेत्र में दखल देने के लगातार आरोप लगा रहे हैं। कुछ मामलों में तो उन्होंने नाम लिए बिना ही विस क्षेत्र में जुआ, अवैध शराब के कारोबार को लेकर भी संगठन से लेकर प्रशासन तक शिकायतें कीं और कार्रवाई की मांग की। पिछले दो दशक से इस विस में भाजपाइयों के बीच ही टकरार की स्थिति देखने को मिल रही है।
खुरई विस- खुरई विस में आरक्षित सीट पर 1990 से लेकर 2003 तक धरमू राय लगातार चार बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते। 2008 में यह सीट अनारक्षित हो गई और कांग्रेस के अरुणोदय चौबे ने भाजपा के भूपेंद्र सिंह को हरा दिया। 2013 में एक बार फिर यही दोनों प्रत्याशी मैदान में आए, लेकिन इस बार भूपेंद्र सिंह चुनाव जीत गए। तब से लेकर 2023 तक भूपेंद्र सिंह की पकड़ विस क्षेत्र में बढ़ती जा रही है। यहां पर 2023 के चुनाव में उनके चिर-परिचित प्रतिद्वंद्वी रहे चौबे को भाजपा में शामिल कर लिया गया, जिसके बाद से खुरई समेत पूरे जिले की राजनीति में हलचल हो रही है। इधर सागर जिले की आठों विधानसभाओं में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व सबसे ज्यादा खुरई में ही सक्रिय रहता है, जिसके कारण भूपेंद्र सिंह को दो-तरफा मोर्चा संभालना पड़ता है।
बंडा विस- बंडा विस का नाम आए और राठौर परिवार का जिक्र न हो, यह संभव ही नहीं। सागर में भाजपा को जिंदा करने और स्थापित करने का श्रेय पूर्व मंत्री स्व. हरनाम सिंह राठौर को जाता है। वे यहां से चार बार विधायक रहे। 1993 का विस चुनाव वे संतोष साहू से हार जरूर गए लेकिन 1985 से आज तक इस विस में राठौर परिवार का दबदबा रहा। 2013 के चुनाव में हरवंश सिंह राठौर ने चुनाव जीतकर परिवार की क्षेत्र पर पकड़ साबित कर दी, लेकिन 2018 में वे बड़े अंतर से हार गए। अभी भी राठौर परिवार की क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। वर्तमान में वीरेंद्र सिंह विधायक हैं।
देवरी विस- देवरी विस में कभी भी किसी भी विधायक का लंबे समय तक प्रभाव नहीं रहा। हालांकि इस क्षेत्र की सबसे बड़ी शख्सियत वर्तमान विधायक बृजबिहारी पटैरिया और उनका परिवार ही है, जिसके कारण उनका हमेशा ही दबदबा रहा। 1998 में कांग्रेस की टिकट पर पहली बार पटैरिया विधायक बने थे लेकिन 2003 में उनका टिकट काट दिया गया। इसके बाद उन्हें 2008 में दोबारा कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया लेकिन वे हार गए। यहां पर हर्ष यादव ने 2013 से 2023 तक 10 साल विधायक रहे और पटैरिया की पॉवर थोड़ी कम हुई लेकिन 2023 में उन्हें भाजपा ने टिकट दे दिया और वे यहां से जीत गए। इस विस में भाजपा की अंतर्कलह अन्य विस क्षेत्रों की तुलना में हमेशा ही कम रहीं हैं।
बीना विस- बीना विस में राजनीति उठापटक बीते पांच सालों में ही ज्यादा देखने को मिली है। इस विस में भाजपा-कांग्रेस दोनों ही नेताओं का अलग-अलग समय पर दबदबा रहा। 1998 से भाजपा यहां पर 2018 तक के चुनाव में लगातार जीतती रही, लेकिन वह एक चुनाव छोड़ दिया जाए तो बार-बार प्रत्याशियों के चेहरे भी बदलती रही। 2023 में कांग्रेस की निर्मला सप्रे ने दो बार के भाजपा विधायक महेश राय को हराया था। हार के बाद राय ने सीधे तौर पर भाजपा जिलाध्यक्ष गौरव सिरोठिया पर आरोप लगाए थे, लेकिन बाद में यह मामला शांत हो गया। निर्मला सप्रे कुछ माह पहले कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा में शामिल हो गई थीं, तब से यह विस क्षेत्र भाजपा और कांग्रेस के बीच अखाड़ा बना हुआ है।

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