बीएनएस लागू होने के बाद आरोपियों तक पहुंचने में हो रहे कारगार साबित, कई मामलों का हो चुका है खुलासा
बीना. भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को मान्यता मिलने के बाद से इलेक्ट्रॉनिक 'मुखबिर' घटनाओं के खुलासे में कारगर साबित हो रहे हैं। अधिकांश वारदातों में सीसीटीवी फुटेज के आधार पर ही पुलिस आरोपियों तक पहुंच सकी है। बीना थाना में कुछ प्रमुख वारदात हैं, जिनमें सीसीटीवी से अपराधी पहचान लिए गए। हालांकि, व्यक्तिगत मुखबरी तंत्र कमजोर होने के कारण उनकी धरपकड़ में पुलिस को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ जाता है। ऐसे में सवाल है कि अगर घटनास्थल पर सीसीटीवी न हों तो अपराधियों की पहचान में भी कितनी मुश्किल हो।
पहले मुखबिर और सीसीटीवी कैमरे टटोलती है पुलिस
एक समय था जब किसी वारदात के बाद पुलिस सबसे पहले अपना मुखबिर तंत्र टटोलती थी, लेकिन अब चाहे लूट-डकैती की वारदात हो या हत्या की पुलिस की टीमें सीधे दो काम पर लगाई जाती हैं। पहले इलाके में सीसीटीवी खंगालने जाते हैं और फिर मोबाइल सर्विलांस की मदद से तथ्य जुटाने में, इसमें दो-तीन दिन का समय भले लगता है, लेकिन अब वही सफलता का आधार बनता है। बहुत जल्द पुलिस यह साफ कर देती है कि वारदात में यह अपराधी शामिल हैं। अब वो पकड़ा कब जाएगा, यह पुलिस के व्यक्तिगत मुखबिर तंत्र पर काम करता है।
यह हैं नए दौर में इलेक्ट्रॉनिक मुखबिर
सीसीटीवी फुटेज, मोबाइल सर्विलांस, मोबाइल वायस रिकॉर्ड, सोशल मीडिया चैट्स।
तकनीकी साक्ष्य आरोपियों के लिए बनते हैं मुसीबत
विवेचक सीसीटीवी फुटेज, मोबाइल कॉल डिटेल, वायस रिकॉर्ड, फिंगर प्रिंट, घटनास्थल पर मिलने वाले बाल आदि केस डायरी में साक्ष्य के रूप में पेश करती है। आगे चलकर यह साक्ष्य आरोपियों के लिए मुसीबत बनते हैं। अक्सर स्वतंत्र गवाह को लेकर न्यायालय में मुकरने की बात सामने आती है, लेकिन यह तकनीकी साक्ष्य कभी मुकर नहीं सकते।
कई घटनाओं का किया जा चुका है खुलासा
इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य अपराध के खुलासे व पुलिस की जांच में बेहद कारगर होते हैं। यह अदालत में भी मजबूती से कहानी पेश करते हैं। अगर व्यक्तिगत मुखबिर तंत्र की बात करें तो उसपर भी टीमें काम करती हैं, उनके सहयोग से घटनाओं का समय-समय पर खुलासा होते हैं।
अनूप यादव, थाना प्रभारी, बीना