सागर. कार्तिक माह भारतीय संस्कृति के साथ ही बुंदेलखंड अंचल के लिए महत्वपूर्ण है। इस माह दीवाली के साथ ही अन्य परंपराएं हैं, जिन पर लोगों की अपनी मान्यताएं हैं। बुंदेलखंड में दिवारी (बरेदी नृत्य व गायन) दीपावली के त्योहार के साथ आरंभ होता है और देव उठनी एकादशी पर मेले के साथ समापन। यह नृत्य मुख्य रूप से पशु पालकों द्वारा किया जाता है। कहा जाता है कि द्वापर युग में गोकुल में जब भगवान श्री कृष्ण ने उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया तब भगवान कृष्ण के साथियों ने पशु पालकों को बचाने के लिए गए इस महान कार्य की खुशी में यह नृत्य किया था।
नर्तक बहुरंगी वेशभूषा के साथ हाथ में मोर पंख, कौडि़यों की माला, स्वाफा आदि पहनते हैं। नृत्य में ढोलक, मजीरा, बांसुरी आदि वाद्य यंत्रों का उपयोग होता है। बरेदी नृत्य फसल कटाई के बाद धन्यवाद देने के रूप में भी किया जाता है।
इस नृत्य में डंडा लेकर नाचते कलाकारों की फुर्ती और तेजी देखने को मिलती है। नर्तक टोली उन घरों में जाती है जिस घर के पशु को वे दुहते हैं। यहां दीवारी गाकर उस परिवार को आशीष देते हैं। देव-उठनी ग्यारस को बरेदी नृत्य का समापन सागर-भोपाल स्थित भापेल में फुलेर के मेले में होती है।
दिवारी: कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का पर्व मनाया जाता है इसे बुंदेली में दिवारी भी कहते हैं। उत्साह, उल्लास, पवित्रता एवं श्रद्धा के साथ यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन लक्ष्मी-गणेश का पूजन व सभी स्थानों पर दिए में तेल भरकर का उजाला किया जाता है। घर में नए वस्त्र, अन्न, फल मिठाई, मेवा का भोग लगाया जाता है। कार्तिक माह में विशेष तौर पर महिलाएं अल सुबह तालाब या नदी में नहाती हैं और कार्तिक गीत गाकर भगवान कृष्ण की भक्ति करतीं हैं। लौटने पर किसी घर में तुलसी पूजा की जाती है।
गोधन पूजा: गोवर्धन पूजा को बुंदेलखंड में गोधन नाम से जाना जाता है। यह कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत बना कर उसी पर अन्य प्रतीकों को बनाया जाता है। भूमि अलंकरण के इस रूप में सारा चित्रांकन गोबर से ही किया जाता है।
अघोई आठें: कार्तिक अष्टमी को मनाए जाने वाले इस पर्व में भी कलात्मक चित्रांकन किया जाता है। भित्ति-अलंकरणों के रूप में आठ पात्रों, आठ मानवाकृतियों की रचना की जाती है। दीवार पर अंकित अलंकरण के सामने आठ पात्रों में मिष्ठान रख कर पूजा की जाती है।