कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी मनाई गई। भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूरे विधि विधान से पूजा मंदिरों में हुई। मान्यता है कि, जो भी व्यक्ति बैकुंठ चतुर्दशी को भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसे जीवन के अंत समय में स्वर्ग की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु के बैकुंठ धाम में स्थान मिलता है। मकरोनिया स्थित श्रीराम दरबार में हरि और हर का मिलन हुआ। सुबह भगवान शिव का पांच नदियों के जल से जलाभिषेक कर तुलसी पत्र, मंजरी एवं बेलपत्र से श्रृंगार किया गया। बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व बताते हुए हुए पं. केशव गिरी महाराज ने कहा कि बैकुंठ चतुर्दशी को हरि-हर यानी श्रीहरि और महादेव की पूजा करने का विधान है, जो भी व्यक्ति बैकुंठ चतुर्दशी को भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसे बैकुंठ की प्राप्ति होती है।
बैकुंठ चतुर्दशी पर चंपाबाग मंदिर में कार्तिक माह का उद्यापन हुआ। प. रघु शास्त्री ने बताया कि सुबह मंगला आरती के बाद हरि और हर को एक आसन पर विराजमान कर अभिषेक पूजन किया। अभिषेक के बाद भगवान शिव का बेलपत्र, मंजरी एवं तुलसी पत्र से श्रृंगार कर आरती के बाद प्रसादी का वितरण हुआ। सामूहिक रूप से भगवान सत्यनारायण की कथा सुनाई गई।
बैकुंठ चतुर्दशी पर चंपाबाग मंदिर में कार्तिक माह का उद्यापन हुआ। प. रघु शास्त्री ने बताया कि सुबह मंगला आरती के बाद हरि और हर को एक आसन पर विराजमान कर अभिषेक पूजन किया। अभिषेक के बाद भगवान शिव का बेलपत्र, मंजरी एवं तुलसी पत्र से श्रृंगार कर आरती के बाद प्रसादी का वितरण हुआ। सामूहिक रूप से भगवान सत्यनारायण की कथा सुनाई गई।