सागर. चार दिवसीय छठ पर्व के तीसरे दिन उत्तर भारतीय समाज के व्रतधारियों ने डूबते भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया। चकराघाट पर विधि-विधान से पूजन किया। वहीं सुभाषनगर और सदर में रहने वाले व्रतधारियों ने सुभाषनगर में तैयार किए गए कुंड में पूजन किया। भगवान सूर्य को अर्घ्य में दूध, गेहूं के आटे से निर्मित ठेकुआ, चावल के लड्डू, नारियल, पकवान के अलावा कार्तिक मास में खेतों में उपजे सभी नए कन्द-मूल, फल-सब्जी, मसाले व अन्नादि, गन्ना, ओल, हल्दी, नारियल, नीबू, केले आदि चढ़ाए और सुख-समृद्धि की कामना की।
इससे पहले दिन भर व्रतधारी और परिजन मिलकर पूजा की तैयारियों में जुटे रहे। एक बांस की टोकरी में पूजा के प्रसाद, फल व अन्य सामग्री के साथ रखा गया। दोपहर में पूजा-अर्चना के बाद शाम को एक सूप में नारियल, पांच प्रकार के फल, और पूजा का अन्य सामान टोकरी में अपने सिर पर रखकर व्रतधारी छठ घाट पर पहुंचे। उनके साथ महिलाएं छठी मैया के गीत गाते हुए चल रही थीं। घाट पर नारियल चढ़ाया गया और दीप जलाया गया। सूर्यास्त से कुछ समय पहले सूर्य देव की पूजा का सारा सामान लेकर व्रतधारी घुटने भर पानी में खड़े हो गए और डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा की।
विधि-विधान से हुई पूजा व्रतधारी महिलाओं ने सुहागिनों की रस्मानुसार मांग भरकर अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दिया। सुभाष नगर में अस्थाई कुंड बनाकर छठ पूजा की गई। व्रतधारियों ने बताया कि सूर्य देव और छठी मैया भाई- बहन हैं। छठ व्रत नियम व निष्ठा से किया जाता है। भक्ति-भाव से किए गए इस व्रत से धन-धान्य की प्राप्ति होती है और जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है।
महापर्व का समापन शुक्रवार को उदय होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। व्रती महिलाएं पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को प्रणाम कर परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करेंगी। लोगों को ठेकुआ और फल प्रसाद के रूप में बांटे जाएंगे। इसी के साथ महापर्व का समापन होगा।