ग्रीन कार्ड प्रभारी बताती हैं कि इंजेक्शन का चलन महिलाओं में तेजी से बढ़ रहा है। डॉक्टरों की सलाह से महिलाएं इसे लगवा रही हैं। एक जनवरी से अभी तक 30 इंजेक्शनों की खपत हो चुकी है। अब तक 150 से अधिक महिलाओं ने इंजेक्शन लगवाए थे। दो मामले ऐसे थे, जिसमें प्रसूताओं ने शिशु तो जन्मे, लेकिन उनकी मौत हो गई। इसके बाद जल्द मां न बने इसके लिए अंतरा इंजेक्शन का उपयोग किया है। योजना के तहत महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए राशि भी दी जा रही है। महिलाओं के खातों में हर डोज के लिए सौ रुपए जमा कर रही है। प्रेरित करने वाली आशाओं को भी इतनी राशि सरकार दे रही है। मार्केट में इस तरह के इंजेक्शन की कीमत दो से ढाई सौ रुपए है।
छाया नहीं आ रही रास,यहां विभाग ने दिखा दी थी बेसब्री
अंतरा के साथ छाया टेबलेट भी सरकार ने लॉंच की थी। इस दवा का सप्ताह में एक बार उपयोग करना है, लेकिन इस गर्भनिरोधक दवा का उपयोग महिलाएं नहीं कर रही हैं। चिकित्सक महिलाओं को इसका उपयोग करने की भी सलाह देती हैं। बताया जाता है कि अभी तक एक भी महिला ने इस दवा का उपयोग नहीं किया है। मप्र सरकार के नेशनल हेल्थ मिशन बुलेटिन में भ्रामक आंकड़े दिए जा रहे हैं। इसका खुलासा अंतरा योजना में दर्ज जानकारी से हुआ है। दरअसल, केंद्र सरकार द्वारा बच्चों में अंतर रखने के लिए 30 अगस्त 2018 से अंतरा योजना की शुरुआत की गई है। इसके तहत महिलाओं को हर तीन महीने में यह इंजेक्शन लगाया जाना है। पहला डोज लगने के बाद दूसरा डोज तीन महीने बाद ही लगेगा। योजना को शुरू हुए सिर्फ छह महीने हुए थे तब दो डोज से ज्यादा किसी महिला को नहीं लगाए जा सकते थे, लेकिन सागर संभाग के जिलों से भेजी गई जानकारी के आधार पर हेल्थ बुलेटिन में तीसरा और चौथा डोज तक लगाए जाने की जानकारी दर्शाई गई थी। इसके बाद एक बड़ा खुलासा सागर में हुई थी।
केंद्र को भेजी जाती है यही जानकारी,बुलेटिन के दूसरे आंकड़ों में भी संदेह
नेशलन हेल्थ बुलेटिन केवल प्रदेश सरकार तक ही सीमित नहीं है। इसकी जानकारी केंद्र सरकार को भी देनी पड़ती है। पिछले साल की यह रिपोर्ट केंद्र को भेजी जा चुकी है। हैरानी की बात यह है कि अभी तक जिम्मेदारों की नजर इस गलती पर नहीं पड़ी है। स्टेट एचएमआईएस की वेबसाइट पर यह भ्रामक जानकारी शो हो रही है। इस बुलेटिन में अंतरा प्रोग्राम के अलावा फैमिली वेलफेयर, मेटरनल एंड चाइल्ड केयर प्रोग्राम, इनफेंट एंड चाइल्ड इमुनाइजेशन और चाइल्ड एंड अदर प्रोग्राम की जानकारियां भी भेजी जाती हैं। इसमें प्रदेशभर के आंकड़े होते हैं। ऐसे में अन्य प्रोग्राम के आंकड़े भी भ्रामक होने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
…क्या बीएमओ नहीं ले रहे गंभीरता से
जिलों में सरकारी रिपोर्ट मांगने पर कोई भी कॉलम खाली नहीं जाना चाहिए। शायद इसी तर्ज पर स्वास्थ्य विभाग में कर्मचारी-अधिकारी काम कर रहे हैं। देखा जाए तो रिपोर्ट सही या गलत भरी जा रही है, इसकी मॉनीटरिंग की पूरी जिम्मेदारी बीएमओ की होती है, लेकिन यह काम डाटा एंट्री ऑपरेटरों के भरोसे छोड़ा जा रहा है। मामले की जांच प्रदेशस्तर जारी है।