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रीवा

सतपाल महाराज के सत्संग में भाव विभोर हुए श्रद्धालु, देखिए कुछ झलकियां

रीवा. रेलवे ग्राउंड में आयोजित दो दिवसीय सद्भावना सम्मेलन के पहले दिन जनसमूह को संबोधित करते हुए सतपाल महाराज

रीवाMay 20, 2018 / 06:43 pm

Balmukund Dwivedi

Satpal Maharaj
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रीवा. रेलवे ग्राउंड में आयोजित दो दिवसीय सद्भावना सम्मेलन के पहले दिन जनसमूह को संबोधित करते हुए सतपाल महाराज ने कहा कि भारत ऋषि, मुनियों, साधु-संतों, ज्ञानियों, पीर-पैगम्बरों और रहनुमाओं का देश है। अध्यात्म ज्ञान गंगा के साथ-साथ स्वच्छ व निर्मल गंगा का भी देश है।

Satpal Maharaj
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उन्होंने कहा कि ज्ञान गंगा में जो गोता लगा रहे हैं वे सभी पवित्र मन, वचन और कर्म से प्रभु का ध्यान करेंगे तो मन में शांति अवश्य मिलेगी। जैसे हिमालय से गंगा का प्रादुर्भाव हुआ। गंगा अनवरत बह रही है, जो बिना भेदभाव के सबकी प्यास को मिटा रही है। वह किसी की जाति व धर्म को नहीं पूछती है। ऐसे ही ज्ञानी संत बिना किसी भेद भाव के जिज्ञासु साधक को परमात्मा के ज्ञान का व्यावहारिक बोध कराते हैं।

Satpal Maharaj
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उन्होंने कहा कि जब हम सब में सद्भावना होगी तभी भारत विश्व का सिरमौर बन पाएगा। पूरे विश्व को सद्भावना की, आपसी भाइचारे की, सहिष्णुता की अत्यंत आवश्यकता है। मौके पर अमृता ने कहा कि गुरु महाराज की आज्ञा में रहना ही एक सच्चे कर्तव्यनिष्ट शिष्य का धर्म होता है। विभुजी ने कहा कि जहां प्रकाश होता है वहां अंधकार नहीं होता है। ऐसे में जहां सत्य है वहां असत्य नहीं रह सकता है।

Satpal Maharaj
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सद्भावना सम्मेलन में भजन गायक कलाकारों ने भक्ति ज्ञान और वैराग्य से ओत-प्रोत सुमधुर भजनों की प्रस्तुति दी। जिन्हें सुनकर श्रद्धालु भाव विभारे हो गए। बालक-बालिकाओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए।

Satpal Maharaj
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सद्भावना सम्मेलन में करीब 40 हजार श्रद्धालु जुटे हैं। जो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों से आए हैं। परिवार सहित आकर सत्संग सुन रहे हैं। श्रद्धालुओं के रुकने, भोजन और स्नान की व्यवस्था मानव उत्थान सेवा समिति की ओर से की गई है।

Satpal Maharaj
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उन्होंने कहा कि ज्ञान गंगा में जो गोता लगा रहे हैं वे सभी पवित्र मन, वचन और कर्म से प्रभु का ध्यान करेंगे तो मन में शांति अवश्य मिलेगी। जैसे हिमालय से गंगा का प्रादुर्भाव हुआ। गंगा अनवरत बह रही है, जो बिना भेदभाव के सबकी प्यास को मिटा रही है। वह किसी की जाति व धर्म को नहीं पूछती है। ऐसे ही ज्ञानी संत बिना किसी भेद भाव के जिज्ञासु साधक को परमात्मा के ज्ञान का व्यावहारिक बोध कराते हैं।

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