रीवा

कट गई थी हाथ की नस, रक्त संंचार हो गया था बंद, डॉक्टरों ने सर्जरी कर बचाई जान

एसजीएमएच मेें पहली बार की नस जोडऩे की सर्जरी, आम के पेड़ से गिरने से घायल हुई थी 9 वर्षीय बालिका, बेहोश बालिका को देख परिजनों ने छोड़ दी थी उम्मीद

रीवाJul 10, 2018 / 10:06 pm

Dilip Patel

sanjay gandhi hospital s doctor done a surgery in rewa

रीवा। प्लास्टिक सर्जन की मौजूदगी मेें पहली बार संजय गांधी अस्पताल के अस्थि रोग विभाग में नस जोडऩे की सर्जरी की गई। डॉक्टरों के इस प्रयास से न केवल गंभीर रूप से घायल बालिका की जान बच गई बल्कि आने वाले समय में और भी जटिल सर्जरी होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं।

जानकारी के अनुसार बहुरीबांध निवासी मथुरा प्रसाद मिश्र की नौ वर्षीय बेटी श्रेया मिश्रा बगीचे में आम तोडऩे के लिए पेड़ पर चढ़ी थी। इसी दौरान संतुलन खो दिया और वह दांये हाथ के बल जमीन पर आ गिरी। गिरने से दांये हाथ की ह्यूमरस हड्डी बाहर आ गई थी और हाथ में रक्त ले जाने वाली ब्रैकियल आट्री एवं मिडियन नर्व नामक नस कट गई थी। जिससे हाथ का रक्त संचार रुक गया था। बालिका के हाथ का खून निकल चुका था। जिससे वह बेहोश हो गई थी।
सुबह 8.30 बजे घटी घटना के बाद फौरन परिजनों ने एंबुलेंस बुलाई। संजय गांधी अस्पताल लेकर पहुंचे। स्थिति को गंभीर देखते हुए अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. बीबी सिंह ने फौरन सर्जरी विभाग के प्लास्टिक सर्जन डॉ. सौरभ सक्सेना से बात की। वह मौके पर पहुंचे। जिसके बाद हड्डी और नस जोडऩे के लिए परिजनों से सर्जरी की सहमति ली गई। एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डॉ. सुधाकर द्विवेदी के साथ सर्जरी को डॉक्टरों ने अंजाम दिया। अस्थि रोग विशेषज्ञ ने हड्डी का तार विधि से सर्जरी की तो प्लास्टिक सर्जन ने नस जोडऩे का कार्य किया। करीब डेढ़ घंटे की सर्जरी के बाद जब डॉक्टर ऑपरेशन थियेटर से बाहर निकले तब परिजनों ने चैन की सांस ली।
क्यों है यह विशेष सर्जरी
अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. बीबी सिंह ने बताया कि अभी तक नस कटे फै्र क्चर के केस प्लास्टिक सर्जन न होने के कारण रेफर कर दिए जाते थे। रीवा में नस जोडऩे का पहला ऑपरेशन है। जिसमें पूरी तरह से कट गई खून की नस को समय रहते जोड़ा गया है। यह घायल अगर समय पर न आती और रेफर करनी पड़ती तो हाथ काटने की नौबत आ सकती थी। नस कटने से खून काफी बह जाने से जान जाने के खतरे से भी इंकार नहीं किया जा सकता था।
परिजनों ने जताई खुशी
सर्जरी के बाद बालिका पूरी तरह से स्वस्थ है। परिजनों ने खुशी जताते हुए कहा कि हालत देखकर वह डर गए थे। उम्मीद छोड़ दी थी लेकिन डॉक्टरों ने बचा लिया। परिजनों ने कहा कि इस सर्जरी के लिए उन्हें कोई शुल्क नहीं देना पड़ा। जबकि डॉक्टरों की माने तो निजी अस्पताल में इस सर्जरी पर एक से डेढ़ लाख खर्च हो जाते।

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