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रीवा

इको पार्क का 11 वर्ष से अधर में लटका निर्माण, अब स्वरूप में बदलाव

– नगर निगम और वन विभाग की भूमि पीपीपी मॉडल के प्रोजेक्ट को दी गई- अब बारातघर और बीयर बार बनाने की शुरुआत

रीवाJan 11, 2022 / 11:44 am

Mrigendra Singh

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रीवा। शहर में बीहर नदी के किनारे और टापू में प्रस्तावित इको पार्क का प्रोजेक्ट लगातार विवादों में रहा है। करीब 11 वर्ष का समय पूरा हो चुका है लेकिन अब तक इस प्रोजेक्ट की दिशा तय नहीं हो पाई है। समय-समय पर इसमें कार्य शुरू किए जाते हैं और बीच में रोक भी दिए जाते हैं।
लंबे समय के बाद अब एक बार फिर से कार्य प्रारंभ किए जा रहे हैं। इस बार दावा है कि पूर्व की तरह नहीं बल्कि नए स्वरूप में कार्य किया जाएगा। इसको लेकर लगातार विरोध भी शुरू हो चुके हैं, कई शिकायतें शासन तक तक पहुंची हैं।
इस प्रोजेक्ट को तैयार करने की शुरुआत वर्ष 2009-10 से शुरू कर दी गई थी। नगर निगम की भूमि जिस हिस्से में आरटीओ को किराए पर भवन दिया गया था, उसे भी प्रोजेक्ट में शामिल किया गया। साथ ही बीहर नदी के टापू का हिस्सा जो वन विभाग और निजी भूमि का था उसे भी शामिल करते हुए प्रोजेक्ट तैयार कराया गया।
पीपीपी मॉडल पर सरकार ने इस प्रोजेक्ट को स्वीकृति दी और कार्य शुरू कराया गया था। बाद में कुछ तकनीकी खामियों की वजह से प्रोजेक्ट को ही निरस्त कर दिया गया। अब एक बार फिर से यहां पर कार्य प्रारंभ कराया जा रहा है। इस पर निगरानी करने वाले वन विभाग और नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि शासन के स्तर पर ही निर्णय हुआ है, उन्हें किसी तरह की जानकारी इसको लेकर नहीं दी गई है। नगर निगम की भूमि प्रोजेक्ट को लेकर दी गई है लेकिन अधिकारियों की अनभिज्ञता भी सवाल पैदा कर रही है।

30 वर्ष के प्रोजेक्ट में 11 साल अधर में
बीहर नदी के टापू पर बनाए जा रहे इको पार्क का प्रोजेक्ट 30 वर्ष के लिए है। पहले 90 वर्ष के लिए नगर निगम ने प्रस्ताव तैयार किया था लेकिन नगर निगम परिषद में पार्षदों ने पहले कहा कि इसे निगम स्वयं लागू करे, बाद में सर्वसम्मति से तय हुआ कि 30 वर्ष के लिए ही लीज पर दिया जाए। दो वर्ष में इसका निर्माण पूरा किया जाना था, बाद में एक वर्ष के लिए अवधि और बढ़ाई गई थी। अब तक करीब 11 वर्ष पूरे हो चुके हैं लेकिन प्रोजेक्ट पर निर्माण कब पूरे होंगे अब तक अधर में लटका हुआ है। नगर निगम को इसके बदले जो राजस्व की प्राप्ति होनी थी वह अब तक शून्य है। इसके पहले भवन से किराया आ रहा था, वह भी बंद है।

ये सुविधाएं इको पार्क में होंगी
राजस्व और वन भूमि के साथ ही निजी स्वत्व की 5.783 हेक्टेयर भूमि पर इको पार्क का निर्माण किया जाना है। इसमें नगर निगम की भूमि का 18152 वर्गमीटर खुला क्षेत्र और 455.60 वर्गमीटर में बने भवन का हिस्सा शामिल है। प्रोजेक्ट में शुरुआती दौर में कहा गया था कि इको पार्क में कैफेटेरिया, एडवेंचर गेम स्पाट, वाटर स्पोर्ट, नेचर इंटरप्रेटेशन सेंटर, मोटल, हर्बल प्लांट बिक्री केन्द्र, पंचकर्म, किड्स जोन, रेस्टोरेंट, मनोरंजन स्थल आदि की व्यवस्थाएं देने की योजना है।

सुपरवीजन को लेकर कंफ्यूजन
पीपीपी मॉडल पर बनाए जा रहे इस प्रोजेक्ट के निर्माण का सुपरवीजन करने के लिए कंफ्यूजन की स्थिति है। नगर निगम एवं वन विभाग ने यह कहते पल्ला झाड़ लिया है कि यह कार्य इको टूरिज्म बोर्ड को सौंपा गया है। इको टूरिज्म बोर्ड के इंजीनियरों की ड्यूटी लगाई गई है लेकिन भोपाल से वे इसकी रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। शहर के भीतर चल रहे इतने बड़़े प्रोजेक्ट से नगर निगम को दूर किया गया है। वन विभाग की भूमि है, प्राइवेट कंपनी इंवेस्टमेंट कर रही है।
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नए निर्माण में बारातघर, बीयरबार पर फोकस, झूला पुल का उल्लेख नहीं
बीहर नदी के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में लगाए जा रहे इस प्रोजेक्ट पर पहले झूला पुल, रेस्टोरेंट और मोटल पर विशेष फोकस था। निर्माणाधीन प्रोजेक्ट में झूला पुल का आकर्षण भी था। 19 अगस्त 2016 को शहर में आई बाढ़ के चलते झूला पुल पानी के तेज बहाव में बह गया था। इस पर प्रोजेक्ट का निर्माण करा रही इंदौर की रुची रियलिटी होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी को नुकसान भी हुआ था। इसलिए अब जो निर्माण नए सिरे से प्रारंभ हो रहा है, उसमें बारातघर, बीयरबार, रेस्टोरेंट पर ही अधिक फोकस है। यह इको पार्क कम, कामर्शियल जोन अधिक नजर आएगा। इस स्थान पर बाढ़ का खतरा अभी टला नहीं है, जिसकी वजह से लगातार स्थाई निर्माण पर रोक लगाने की मांग भी उठाई जा रही है।

दो साल पहले शासन ने मांगी थी रिपोर्ट, अब तक नहीं भेजी
इको वाटर प्रोजेक्ट में लगातार बढ़ती उलझनों और कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं होने की वजह से नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष अजय मिश्रा बाबा ने प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन विभाग से शिकायत की थी और कहा था कि इसमें कई कार्य ऐसे हुए हैं जो नियमों के विपरीत हैं। इस कारण पूरी जांच कराई जाए और बेशकीमती भूमि के बंदरबांट के चल रहे प्रयासों को रोकते हुए नगर निगम को भूमि वापस दिलाई जाए। शासन ने दो वर्ष नगर निगम आयुक्त को पत्र भेजकर इसकी जांच कराने का निर्देश दिया था। यह रिपोर्ट १५ दिन में मांगी गई थी लेकिन अब तक पूरी नहीं हुई है। उसी दौरान प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ और मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।

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