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नदी में इको पार्क का निर्माण, जानिए पार्क से आपके लिए क्या फायदा और नुकसान होगा

– वन भूमि में तैयार हो रहा प्रोजेक्ट, नदी के बहाव वाले स्थान तक बना दी बाउंड्रीवाल- बाढ़ आई तो फिर तबाही जैसे हालात होंगे निर्मित, दो वर्ष पहले बाढ़ से बह गया था झूला पुल
 

रीवाFeb 05, 2019 / 04:59 pm

Mrigendra Singh

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eco park beehar river bank in rewa, mp tourism bord

रीवा। शहर में बाढ़ की प्रमुख वजह बनने वाले नदी और नालों में अतिक्रमण की अब तक अनदेखी की जा रही थी लेकिन अब सरकारी निर्माण में भी बाढ़ के खतरों को नजरंदाज करने का प्रयास शुरू हो गया है। शहर के मध्य से निकलने वाली बीहर नदी का पानी बाढ़ के समय कई करीब दो दर्जन से अधिक मोहल्लों में घुसता है।
नदी के किनारे लगातार हो रहे निर्माण के चलते फिर बाढ़ के खतरों की आशंका बढ़ती जा रही है। इनदिनों कबाड़ी मोहल्ले के पास उस क्षेत्र में निर्माण शुरू कर दिया गया है, जहां से नदी का पानी बहता है। बीहर नदी के टापू पर करीब छह वर्ष पहले इको पार्क बनाने की योजना तैयार की गई थी। जिस पर १९ करोड़ रुपए की लागत से निर्माण भी प्रारंभ किया गया था।
टापू पर पर्यटकों के भ्रमण के लिए सड़कें और पगडंडी बनाई जा रही थी, नदी पर झूला पुल बनाया गया था जो १९ अगस्त २०१६ को नदी में आई बाढ़ के चलते टूटकर गिर गया था। इसका निर्माण करा रही इंदौर की रुची रियलिटी होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी को हुए नुकसान की भरपाई के लिए वह लगातार प्रयास करती रही। कई बार सरकार से बाढ़ से नुकसान का मुआवजा भी मांगा। करीब ढाई वर्षों के अंतराल के बाद अब एक बार फिर निर्माण शुरू किया गया है। जिस पर कंपनी का दावा है कि इस बार इको पार्क में पुल ऐसा बनाया जाएगा जो बाढ़ के झटके को सह सके।
सुलभ काम्पलेक्स के पास बढ़ा दी बाउंड्री
बरसात के दिनों में बीहर नदी का पानी उन्नत बीहर पुल के पास बन सुलभ काम्पलेक्स तक पहुंच जाता है। अधिक पानी होने पर यह काम्पलेक्स भी डूब जाता है। इस बार जो निर्माण प्रारंभ किया गया है, उसमें सुलभ काम्पलेक्स के पास तक बाउंड्रीवाल बना दी गई है। इसलिए माना जा रहा है कि नदी का जल स्तर बढऩे पर आसपास के मोहल्लों में जलभराव की समस्या बढ़ेगी।
30 वर्ष के लिए है प्रोजेक्ट
बीहर नदी के टापू पर बनाए जा रहे इको पार्क का प्रोजेक्ट ३० वर्ष के लिए है। इसका भूमि पूजन वर्ष २०१३ में हुआ था। दो वर्ष में इसका निर्माण पूरा किया जाना था, बाद में एक वर्ष के लिए अवधि और बढ़ाई गई थी। कंपनी को राजनीतिक प्रभाव के चलते बाढ़ में हुई नुकसानी का मुआवजा देने की भी तैयारी की जा रही थी। कुछ तकनीकी पेंच की वजह से मुआवजा देने का मामला अटक गया था। करीब छह वर्ष से अधिक का समय प्रोजेक्ट का निर्माण पूरा होने में बिता दिया गया है। अभी करीब डेढ़ से दो वर्ष का और समय लगने की संभावना है।
ये सुविधाएं इको पार्क में होंगी
राजस्व और वन भूमि के साथ ही निजी स्वत्व की ५.७८३ हेक्टेयर भूमि पर इको पार्क का निर्माण किया जाना है। इसमें उन्नत विक्रम पुल के पास स्थित पुराना आरटीओ भवन का हिस्सा भी शामिल होगा। पार्क में कैफेटेरिया, एडवेंचर गेम स्पाट, वाटर स्पोर्ट, नेचर इंटरप्रेटेशन सेंटर, मोटल, हर्बल प्लांट बिक्री केन्द्र, पंचकर्म, किड्स जोन, रेस्टोरेंट, मनोरंजन स्थल आदि की व्यवस्थाएं देने की योजना है।
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पीपीपी प्रोजेक्ट में सुपरवीजन के इंतजाम नहीं
पीपीपी मॉडल पर बनाए जा रहे इस प्रोजेक्ट के निर्माण का सुपरवीजन करने के लिए कोई विशेष इंतजाम नहीं किए गए हैं। इको टूरिज्म बोर्ड के इंजीनियरों की ड्यूटी लगाई गई है लेकिन भोपाल से वे इसकी रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। शहर के भीतर चल रहे इतने बड़़े प्रोजेक्ट से नगर निगम को दूर किया गया है। वन विभाग की भूमि है, प्राइवेट कंपनी इंवेस्टमेंट कर रही है। इको टूरिज्म बोर्ड की भी जवाबदेही तय की गई थी कि तकनीकी तौर पर इसकी निगरानी करेगा। इनदिनों बाढ़ जैसे बड़े खतरों को नजरंदाज किया जा रहा है, जिसके चलते आने वाले दिनों में नुकसानी का खतरा बना रहेगा।
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इको पार्क से जुड़ी जानकारी हाल ही में शासन ने मांगी थी, जिसे भेज दिया गया है। कंपनी फिर से निर्माण शुरू कर रही है, अभी पुल का कार्य प्रारंभ नहीं हुआ है। निर्माण के तकनीकी पहलुओं का सुपरवीजन इको टूरिज्म बोर्ड का है। हमारी भूमि है, इसलिए समय-समय पर हमसे भी रिपोर्ट मांगी जाती है। बाढ़ के खतरे की यदि आशंका है तो इसकी जानकारी बोर्ड को देंगे, क्योंकि पहले बाढ़ से ही नुकसान हो चुका है।
विपिन पटेल, डीएफओ रीवा

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