धार्मिक तथ्य

Hindu Calendar: अमावस्यांत और पूर्णिमांत कैलेंडर में क्या होता है अंतर, आपको भी जानना चाहिए

Hindu Calendar: दुनिया के कई देशों की तरह भारत में भी विभिन्न कैलेंडर प्रचलित हैं। आज हम बताएंगे भारत में प्रचलित अमावस्यांत और पूर्णिमांत कैलेंडर का अंतर। साथ में हिंदू पंचांग काल गणना के कुछ तथ्य और साल में दो बार क्यों मनते हैं वट सावित्री जैसे कई हिंदू व्रत त्योहार (Panchang Kal Ganana Fact) ..

जयपुरNov 12, 2024 / 08:06 am

Pravin Pandey

Hindu Calendar: हिंदू कैलेंडर

Hindu Calendar: भारत में ट्रैवल करते समय अलग-अलग इलाकों और समुदायों में अलग-अलग कैलेंडर देखें होंगे। इनमें महीनों और तिथियों के नाम तो एक होंगे, लेकिन त्योहार की तारीख और मुहूर्त दो तरह के।
इसके पीछे की वजह है माह की शुरुआत की डेट को लेकर मान्यता। इसी कारण देश में दो कैलेंडर अमावस्यांत और पूर्णिमांत प्रचलित हैं। आइये जानते हैं कि क्या है अमावस्यांत और पूर्णिमांत कैलेंडर की मान्यता और किस क्षेत्र में कौन सा कैलेंडर प्रचलित है..

अमावस्यांत कैलेंडर (Amavasyant Calendar)

हिंदू पंचांग प्रणाली चंद्रमा के चक्र पर आधारित है, यह प्रायः दो तरह के हैं। दोनों में ही दो पक्ष और दिनों की संख्या समान होती है। इसमें महीने का नाम, तिथि का नाम और मुहूर्त का नाम भी एक है। महीने की शुरुआत की डेट अलग होने से बस ग्रेगोरियन कैलेंडर के लिहाज से त्योहारों की डेट में अंतर हो जाता है। दरअसल एक कैलेंडर में महीने की शुरुआत अमावस्या के बाद से और दूसरे में पूर्णिमा के बाद से होता है।

एक कैलेंडर दिनों की गिनती की शुरुआत अमावस्या के अगले दिन से (नए चांद के दिन यानी शुक्ल पक्ष) करता है और चंद्रमा के बढ़ते हुए चरण से घटते हुए चरण के अंत तक को एक महीना मानता है यानी अमावस्या के अगले दिन से अमावस्या तक। इसी को अमावस्यांत कैलेंडर या अमांत चंद्र हिंदू कैलेंडर या अमंता चंद्र हिंदू कैलेंडर कहते हैं। इसके पहले 15 दिन को शुक्ल पक्ष और दूसरे 15 दिन को कृष्ण पक्ष कहते हैं।
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यहां अमंता या अमावस्यांत कैलेंडर का प्रचलन

एक अन्य रूप में कहें तो जो हिंदू कैलेंडर अमावस्या के दिन चंद्र महीने को समाप्त करता है, उसे अमंता या अमंता चंद्र-सौर कैलेंडर कहते हैं। इस कैलेंडर का पालन मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, असम, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा राज्यों में किया जाता है।

पूर्णिमांत कैलेंडर (Purnimant Calendar)

दूसरा कैलेंडर महीने की पहली डेट पूर्णिमा की रात के अगले दिन से गिनना शुरू करता है यानी चंद्रमा के घटने के क्रम से बढ़ने के क्रम के अंतिम दिन तक यानी पूर्णिमा के बाद की पहली तिथि से पूर्णिमा तक। इस कैलेंडर को पूर्णिमांत कैलेंडर के नाम से जानते हैं। इसके पहले पखवाड़े को कृष्ण पक्ष (अंधेरा करने वाला पखवाड़ा) और दूसरे पखवाडे को शुक्ल पक्ष कहते हैं। चूंकि महीना पूर्णिमा के साथ समाप्त होता है, इसलिए इसे पूर्णिमांत चंद्र हिंदू कैलेंडर नाम से जानते हैं।

यहां है पूर्णिमांत कैलेंडर का प्रचलन

जो हिंदू कैलेंडर पूर्णिमा के दिन चंद्र महीने को समाप्त करता है, पूर्णिमांत या पूर्णिमांत चंद्र-सौर कैलेंडर के रूप में जाना जाता है। यह कैलेंडर मुख्य रूप से बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश राज्यों में प्रचलित है।

हिंदू कैलेंडर और ग्रेगोरियन कैलेंडर में अंतर

हिंदू कैलेंडर प्रणाली चंद्रमा के चक्र पर आधारित है, यानी चंद्रमा के पृथ्वी की परिक्रमा पर बेस्ड है, जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर पृथ्वी के घूमने और सूर्य के संपर्क में आने और हमारे सौर मंडल के तारे के चारों ओर पृथ्वी की परिक्रमा के अनुसार दिनों की गणना करता है।


दोनों कैलेंडर में यह होती है भिन्नता

इस तरह प्रत्येक महीने के लगभग 15 दिनों के लिए अमावस्यांत और पूर्णिमांत कैलेंडर में ओवरलैपिंग वाले होते हैं और लगभग एक पखवाड़ा अलग-अलग महीने के नाम से होता है। इसी कारण वट सावित्री जैसे व्रत साल में दो बार ज्येष्ठ अमावस्या और ज्येष्ठ पूर्णिमा पर मनाए जाते हैं।

भारत में प्रचलित हैं कई कैलेंडर

भारत सरकार ने सिविल कामकाज के लिए ग्रेगोरियन के साथ-साथ 22 मार्च 1957 (भारांग: 1 चैत्र 1879, शक संवत आधारित) को भारतीय राष्ट्रीय पंचांग को कैलेंडर के रूप में अपनाया था। इसमें चंद्रमा की कला (घटने और बढ़ने) के अनुसार महीने के दिनों की संख्या निर्धारित होती है। इसके अलावा भी देश में अलग-अलग समुदाय जैसे मुस्लिम समुदाय इस्लामी हिजरी कैलेंडर और पारसी समुदाय शेनशाई कैलेंडर या जोराष्ट्रियन कैलेंडर इस्तेमाल करता है।

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