इसमें भी देश में दो तरह के कैलेंडर प्रचलित हैं अमांत या अमावस्यांत और पूर्णिमांत। पूर्णिमांत कैलेंडर में महीना पूर्णिमा या पूर्ण चंद्र दिवस के ठीक अगले दिन से शुरू होकर अगली पूर्णिमा तक चलता है, जबकि अमावस्यांत कैलेंडर में ये अमावस्या के अगले दिन से शुरू होकर अमावस्या तक चलता है। हालांकि तिथियां, मुहूर्त और महीनों के नाम सभी कैलेंडर में एक ही है। खास बात ये है कि दोनों में दिन का निर्धारण चंद्रमा के चरणों के आधार पर ही होता है।
3 साल में आता है अधिक मास
Tithi Nirdharan Ke Tarike: चंद्र कैलेंडर और सूर्य कैलेंडर की गणनाओं के चलते हर तीन साल में एक महीने का अंतर आ जाता है। इसके साम्य को बिठाने के लिए अधिक मास की व्यवस्था की गई है। लेकिन इन सबके बाद भी तिथियों के निर्धारण में अक्सर उलझन बनी रहती है। इसको सुलझाया गया है दो धर्म ग्रंथों में, इन्हीं के आधार पर तिथियों का निर्धारण होता है।धार्मिक ग्रंथ धर्म सिंधु और निर्णय सिंधु में तिथि निर्धारण गाइडलाइन के अनुसार आइये जानते गूगल सर्च के बड़े टॉपिक दिवाली 2024 की सही डेट और अमावस्या के उदाहरण के हिसाब से जानते हैं कैसे करते हैं तिथियों का निर्धारण
धर्म सिंधु की गाइडलाइन
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास के अनुसार धार्मिक ग्रंथ धर्म सिंधु के पुरुषार्थ चिंतामणि में तिथि निर्धारण के लिए गाइड लाइन बनाई गई है। इसके अनुसार अलग-अलग परिस्थितियों में अमावस्या के निर्धारण के लिए इन नियमों का ध्यान देना चाहिए। 1. पहले दिन प्रदोष की व्याप्ति हो और दूसरे दिन तीन प्रहर से अधिक समय तक अमावस्या हो (चाहे दूसरे दिन प्रदोष व्याप्त न हो) तो पूर्व दिन की अमावस्या (प्रदोष व्यापिनी और निशिथ व्यापिनी अमावस्या) की अपेक्षा से प्रतिपदा की वृद्धि हो तो लक्ष्मी पूजन आदि दूसरे दिन करना चाहिए।
इस निर्णय के अनुसार चूंकि अधिकतर पंचांग में 1 नवंबर को अमावस्या 03 प्रहर से अधिक समय तक है और अन्य दृश्य पंचांगों में भी इस तिथि की प्रदोष में व्याप्ति है। इसलिए इसी दिन लक्ष्मी पूजन और दीपावली शास्त्र सम्मत है।
2. इसे और स्पष्ट करते हुए धर्म सिन्धु में कहा गया है कि दूसरे दिन अमावस्या भले ही प्रदोष में न हो लेकिन अमावस्या साढ़े तीन प्रहर से अधिक हो तो दूसरे दिन ही लक्ष्मी पूजन सही है अर्थात् गौण प्रदोष काल में भी दूसरे दिन अमावस्या हो तो दीपावली दूसरे दिन ही शास्त्र सम्मत है ।
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ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास के अनुसार निर्णय सिंधु प्रथम परिच्छेद के पृष्ठ संख्या 26 पर भी तिथि निर्धारण की गाइडलाइन बताई गई है।
निर्णय सिंधु की गाइडलाइन
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास के अनुसार निर्णय सिंधु प्रथम परिच्छेद के पृष्ठ संख्या 26 पर भी तिथि निर्धारण की गाइडलाइन बताई गई है।
निर्णय सिंधु के अनुसार जब तिथि दो दिन कर्मकाल में विद्यमान हो तो निर्णय युग्मानुसार करना चाहिए। अमावस्या प्रतिपदा का योग शुभ माना जाता है अर्थात अमावस्या को प्रतिपदा युक्त ग्रहण करना महाफलदायी होता है।
निर्णय सिंधु के तृतीय परिच्छेद के पृष्ठ संख्या 300 पर लेख है कि यदि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श न करे तो दूसरे दिन लक्ष्मी पूजन करना चाहिए। इसमें यह अर्थ भी अंतर निहित है कि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श करें तो लक्ष्मी पूजन दूसरे दिन करना चाहिए।
उदयातिथि का ध्यान रखना भी जरूरी
इसके अलावा अधिकांश तिथि की शुरुआत सूर्योदय से मानी जाती है। सूर्योदय के समय जो तिथि रहती है, उस दिन वही तिथि मानी जाती है। खास बात यह है कि जिन देवताओं की पूजा सुबह होती है, दान, स्नान आदि काम के लिए उदयातिथि का ध्यान देना तिथि निर्धारण में अहम होता है।अमावस्या दो दिन तक, लेकिन 1 नवंबर को दीपावली
पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर -जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास के अनुसार, ऊपर के नियमों को देखें तो इस बार अमावस्या 31 अक्टूबर को दोपहर 3:53 बजे से शुरू होकर 1 नवंबर की शाम 6:17 तक रहेगी। ऐसे में अमावस्या की तिथि के दौरान दो दिन प्रदोष काल रहेगा।सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के बाद एक घड़ी से अधिक अमावस्या होने पर यह पर्व मनाया जा सकता है। 1 नवंबर को सूर्यास्त शाम 5:40 बजे होगा। इसके बाद 37 मिनट तक अमावस्या रहेगी। ग्रंथों में इस बात का जिक्र है कि जिस दिन प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के वक्त अमावस्या हो तब लक्ष्मी पूजन किया जाना चाहिए। इस बात का ध्यान रखते हुए दीपावली 1 नवंबर को ही मनाएं।