इससे इस दौरान किए गए कार्यों में स्थायित्व की कमी आती है। इसी कारण खरमास के दौरान विवाह, गृह प्रवेश, नए व्यापार या किसी प्रकार की नई शुरुआत नहीं की जाती, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि खरमास में किए कार्यों में सफलता की संभावना कम होती है।
विशेष रूप से जब सूर्य पौष माह में धनु राशि में भ्रमण करते हैं तो इनके प्रभाव में और गिरावट आ जाती है। इस समय कभी कभार ही सूर्य की तेजोमय रोशनी उत्तरी गोलार्ध में पड़ती है। इसके पीछे कि मान्यता है कि इस समय सूर्य नारायण घोड़े की जगह गर्दभ की सवारी करते हैं, इसी कारण इनकी रोशनी में तेज कम होता है। इसी कारण इस महीने को खरमास या मलमास कहते हैं।
खरमास में भीष्म ने क्यों नहीं त्यागे प्राण, जानें उत्तर
ब्रह्म पुराण के अनुसार खरमास में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति नर्क का भागी होता है, अर्थात् चाहे व्यक्ति अल्पायु हो या दीर्घायु अगर वह पौष के खरमास यानी मल मास की अवधि में अपने प्राण त्याग रहा है तो निश्चित रूप से उसका इहलोक और परलोक नर्क के द्वार की तरफ खुलता है।इसी के अनुसार महाभारत युद्ध के दौरान खरमास में ही करुक्षेत्र में अर्जुन और भीष्म पितामह का आमना-सामना हुआ। इस दौरान अर्जुन ने पितामह भीष्म को बाणों से वेध दिया। लेकिन भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान था और खरमास में वो प्राण नहीं त्यागना चाहते थे।
इसलिए उन्होंने अर्जुन से उनके लिए बाणों की शैया और सिर के लिए बाण का तकिया तैयार करने के लिए कहा। सैकड़ों बाणों से विधे होने के बाद भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण नहीं त्यागे और उन्होंने मकर संक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया और माघ शुक्ल पक्ष में प्राण त्यागा।
प्राण नहीं त्यागने के पीछे की वजह यही थी कि मान्यता के अनुसार खर मास में प्राण त्याग करने पर उनका अगला जन्म नर्क की ओर जाएगा। इस प्रकार भीष्म पितामह पूरे खरमास में अर्द्ध मृत अवस्था में बाणों की शैया पर लेटे रहे और जब माघ मास की मकर संक्रांति आई, उसके बाद शुक्ल पक्ष की एकादशी को उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया। इसलिए कहा गया है कि माघ मास की देह त्याग से व्यक्ति सीधा स्वर्ग का भागी होता है।