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Sawan Month 2022: सावन में शिवभक्त क्यों करते हैं कांवड़ यात्रा, जानें कब और कैसे हुई थी इसकी शुरुआत

Kanwar Yatra 2022: सनातन धर्म में सावन को बहुत पावन महीना माना जाता है। शिवभक्तों के लिए ये पूरा महीना भगवान भोलेनाथ की पूजा और आराधना के लिए शुभ होता है। इस साल सावन मास की शुरुआत 14 जुलाई से हो चुकी है। सावन में कांवड़ यात्रा को भी धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व दिया गया है।

Jul 19, 2022 / 11:56 am

Tanya Paliwal

Sawan Month 2022: सावन में शिवभक्त क्यों करते हैं कांवड़ यात्रा, जानें कब और कैसे हुई थी इसकी शुरुआत

सावन मास भोलेनाथ को समर्पित माना गया है। सावन के महीने में शिवालयों में भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। पूरे दिन मंदिरों में हर हर महादेव के जयकारे गूंजते हैं। सावन मास की शुरुआत 14 जुलाई 2022 से हो चुकी है जो 12 अगस्त 2022 तक रहेगा। सावन मास में शिवभक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ यात्रा भी करते हैं। इस साल कांवड यात्रा 14 जुलाई से प्रारंभ होकर 26 जुलाई तक चलेगी। इस दौरान कांवड़ को एक क्षण के लिए भी धरती पर नहीं रखा जाता। तो आइए जानते हैं क्यों की जाती है कांवड़ यात्रा और अब हुई इसकी शुरुआत…

क्यों की जाती है कांवड़ यात्रा?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान भोलेनाथ के भक्त हरिद्वार से पवित्र नदी गंगा का जल लेकर शिवजी का अभिषेक करने के लिए अपने स्थानीय शिव मंदिर तक कांवड़ को कंधे पर उठाकर लाते हैं। ये संपूर्ण यात्रा पैदल ही की जाती है। कावड़ यात्रा करने वाले भक्तों को कांवड़िया कहा जाता है। कांवड़ के जल से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक श्रावण मास की चतुर्दशी के दिन किया जाता है। मान्यता है कि इस कठिन यात्रा को करके कांवड़ के पवित्र जल से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करने वाले व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है और शिव जी की कृपा उस पर बनी रहती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस कांवड़ यात्रा द्वारा यह संदेश मिलता है कि भगवान भोलेनाथ केवल अपने भक्तों की श्रद्धा और एक लौटे जल के अभिषेक से भी प्रसन्न हो जाते हैं।

कब हुई कांवड़ यात्रा की शुरुआत?
कावड़ यात्रा की शुरुआत को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार सबसे पहले कांवड़ यात्री श्रवण कुमार को माना जाता है जिन्होंने अपने नेत्रहीन माता-पिता को कांवड़ में बिठाकर संपूर्ण यात्रा पैदल की थी। श्रवण कुमार अपने माता-पिता को हरिद्वार लाए थे और यहां से गंगा का जल लेकर शिवजी का अभिषेक करवाया था।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने सर्वप्रथम गड़मुक्तेश्वर से नंगे पैर कांवड़ यात्रा करके बागपत के निकट स्थित पुरा महादेव मंदिर में भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक किया।

(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)

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