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vikat sankashti chaturthi: इस वजह से गणेशजी की पूजा में भद्राकाल बेअसर, नौ अप्रैल को ही विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत

हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी भगवान गणेश की पूजा (Ganesh Puja) के लिए समर्पित है। इस दिन व्रत और पूजा पाठ से गणेशजी प्रसन्न होकर भक्त के संकट का नाश करते हैं। इस दिन भक्त दिन भर व्रत करते हैं और सुबह शाम पूजा कर चंद्र को अर्घ्य देकर व्रत खोलते हैं। यहां जानिए वैसाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी यानी विकट संकष्टी चतुर्थी (vikat sankashti chaturthi 2023) को किस मुहूर्त में होगी पूजा अर्चना, क्यों बेअसर रहेगा भद्राकाल और किस समय होगा चंद्रोदय …

Apr 07, 2023 / 04:06 pm

Pravin Pandey

vikat sankashti chaturthi

विकट संकष्टी चतुर्थी 2023: वैसाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि की शुरुआत रविवार को सुबह 9.35 बजे से हो रही है, और यह तिथि दस अप्रैल को 8.37 बजे संपन्न होगी। चतुर्थी तिथि में चंद्र को अर्घ्य देने के मद्देनजर नौ अप्रैल को ही विकट संकष्टी चतुर्थी मनाई जाएगी। इस दिन चंद्रोदय का समय रात 10.02 के आसपास है।

विकट संकष्टी चतुर्थी पर गणेशजी की पूजा का समयः सुबह 9.13 से 10.48 तक
विकट संकष्टी चतुर्थी पर शाम को गणेशजी की पूजा का समयः शाम 6.43 से 9.33 के बीच

विकट संकष्टी चतुर्थी पर भद्रा का साया
इस साल विकट संकष्टी चतुर्थी पर भद्रा काल का साया है। मान्यता है कि भद्रा के समय शुभ कार्य करने से काम पूरा नहीं होता है। भले ही भद्राकाल में मांगलिक कार्य करने पर रोक रहती है, लेकिन पूजा पाठ में कोई अवरोध नहीं होता। भद्रा काल की शुरुआत 8 अप्रैल रात 9. 56 से हो रही है और भद्रा काल का समापन 9 अप्रैल को सुबह 9.35 बजे हो रहा है।
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विकट संकष्टी चतुर्थी पूजा का महत्व

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार विकट संकष्टी चतुर्थी पर व्रत रखकर भगवान गणेश और चौथ माता की पूजा से संतान का सारा संकट दूर हो जाता है। वैवाहिक जीवन की उथल पुथल खत्म हो जाती है, बुध ग्रह अनुकूल होता है। कमजोर बुद्धि वालों को लाभ मिलता है, कारोबार की समस्या दूर होती है। घर के मांगलिक कार्यों की अड़चन दूर होती है। इसके अलावा चंद्रमा को अर्घ्य देने के प्रभाव से मानसिक समस्याएं खत्म होती है और घर में खुशहाली आती है।
संकष्टी चतुर्थी और विनायक चतुर्थी में अंतर

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार चतुर्थी तिथि भगवान गणेश की पूजा के लिए समर्पित है। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जानते हैं। दोनों ही दिन गणों के स्वामी गणेश जी की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है।

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