कहा जाता है कि महाभारत काल में अर्जुन ने इसकी स्थापना की थी। पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय विराट नगर और सरिस्का में गुजारा था। उसी समय ताल वृक्ष में पांडवों ने अपने अस्त्र-शस्त्र छिपाए थे। यहीं अर्जुन ने अपने आराध्य शिव भगवान की पूजा की थी, उस समय अर्जुन ने 7 फीट ऊंचे शिवलिंग की स्थापना की थी।
इस स्थान पर ताल (अर्जुन) व खजूर के वृक्ष बहुतायत में होने के कारण इसे तालवृक्ष कहा जाता है। तालवृक्ष में गंगा मंदिर भी है जो की अपने आप में अनूठा है। गंगा मां की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा यहां आमेर नरेश रामसिंह के शासन काल में बाबा पूर्ण दास ने कराई थी।
शिवरात्रि पर होता है विशेष जलाभिषेक
स्थानीय लोगों ने बताया कि तालवृक्ष में सात फीट ऊंची शिवलिंग है। यहां शनिवार, मंगलवार, पूर्णिमा, अमावस्या के दौरान बडी संख्या में लोग दर्शन व जलाभिषेक को पहुंचते है। शिवरात्रि व श्रावण मास में विशेष जलाभिषेक किया जाता है। यहां स्थापित शिवलिंग के पीछे अण्ड ज्योति जलती है। तालवृक्ष में भगवान विष्णु के वराह अवतार की मूर्ति भी थी जो की अष्टधातु से बनी हुई थी। चोर उस मूर्ति को चोरी कर ले गए। बाद में मूर्ति को कोलकाता के हवाई अड्डे से बरामद कर लिया गया। अब यह प्राचीन मूर्ति अलवर के पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में विराजित है। वहां प्रतिदिन उस मूर्ति की पूजा होती है।