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धर्म

जब सीता लंका नहीं गईं तो फिर रावण ने किस स्त्री का किया था हरण?

रामचरित मानस में सीता को लक्ष्मी का रूप बताया गया है और रावण को परम योद्धा

Feb 02, 2020 / 11:18 am

Devendra Kashyap

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महान ज्ञानी और योद्धा लंकापति रावण के सिर्फ एक दुर्गण की वजह से उन्हें काल का ग्रास बनना पड़ा था। हम सब जानते हैं कि देवी सीता ही रावण के मृत्यु का कारण बनी थीं लेकिन क्या आप यह जानते है कि जिस सीता को हरण कर रावण लंका ले गया था वह सीता थी ही नहीं!

ऐसे में अब सवाल उठता है कि अगर वह सीता नहीं थी तो कौन थी? रावण किसको हरण कर लंका ले गया था? राम की पत्नी सीता कहां थी? ऐसे कई सवाल मन में उठ रहे हैं, आपके भी मन में उठ रहें होंगे। आइये इन सवालों का जवाब ढूंढते हैं और जानने की कोशिश करते हैं।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि रावण महाज्ञानी था। उसे ये भी पता था उसका अंत श्रीराम के हाथों ही होना है। तब तो उसे ये भी पता होगा कि जिस सीता को वह हरण कर के लंका ले जा रहा है वह सीता नहीं है! शायद ऐसा हो सकता है। लेकिन अब सवाल उठ रहा है कि जब सीता थीं ही नहीं, तो वह कौन थी?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए सबसे पहले रामचरितमानस में लिखा है ‘… कुछ दिन करहु अग्नि वसा, ता हम करी निसाचर नासा…’ अर्थात भगवान राम सीता से कहते हैं, ‘हे सीते… आप कुछ दिन अग्नि में वास करो ताकि हम निसाचर यानि राक्षसों का नास कर सकूं’

दूसरा तर्क ये भी है कि…रामचरित मानस में सीता को लक्ष्मी का रूप बताया गया है…रावण को परम योद्धा बताया गया है। जब परम योद्धा शेषनाग (लक्ष्मण) की खींची एक रेखा का नहीं लांघ पाया तो फिर वो साक्षात लक्ष्मी रूपी सीता का हरण कैसे कर सकता था?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए हम लोगों को सीता हरण से पीछे जाना होगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार वेदवती नामक एक युवती वन में अपने ध्यान में लीन थी। वेदवती ब्रह्मऋषि कुशध्वज की पुत्री थी। कुशध्वज को बृहस्पति का पुत्र कहा जाता है।

बताया जाता है कि अपने जन्म के कुछ समय बाद ही वेदवती को वेदों का ज्ञान हो गया था इसलिए इनका नाम वेदवती रखा गया। वेदवती एक बहुत ही सुन्दर कन्या थी, जो भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्त थी। जैसे-जैसे वह बड़ी हुई उसकी भक्ति के साथ भगवान के लिए उसका प्रेम भी बढ़ता गया।

वेदवती विष्णु जी से विवाह करना चाहती थी, इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए उसने कठोर तपस्या करने का निर्णय लिया। वेदवती अपने इरादों की पक्की थी वह निर्णय कर चुकी थी कि उसे विष्णु जी से ही विवाह करना है। तप में लीन रहने के बाद भी इनके रूप-रंग में तनिक भी अंतर नहीं आया और वह नवयौवन संपन्न बनी रही। एक दिन आकाशवाणी हुई कि उन्हें अगले जन्म में सृष्टि के पालनहार भगवान नारायण को पति रूप में वरण करने का सौभाग्य प्राप्त होगा।

इस पर भी वेदवती ने तप करना नहीं छोड़ा और पहले से और अधिक कठिन तप करने के लिए गंधमादन पर्वत चली गईं। एक दिन लंकापति रावण वहां से गुजर रहा था तो वेदवती को देखकर ठहर गया। वेदवती ने अतिथि धर्म का पालन करते हुए रावण का सत्कार किया। रावण वेदवती की सुंदरता को देख सम्मोहित हो गया। इसके बाद रावण ने वेदवती से विवाह की इच्छा जताई।

इस पर वेदवती ने शादी के लिए मना कर दिया और उसने कहा कि मैं नारायण ( विष्णु ) की पत्नी हूं। तब रावण अपना अपमान मानकर वेदवती के केश पकड़ कर घसीटता हुआ ले जाने लगा। इस बात से क्रोधित होकर वेदवती ने अपने केश काट दिए, साथ ही उसकी पवित्रता को भंग करने की कोशिश करने पर उसने रावण को श्राप दिया कि एक दिन वह उसकी मृत्यु के कारण बनेगी। इसके बाद में स्वयं को रावण से बचाने के लिए वह अग्नि में कूद कर खुद को भस्म कर लिया।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब रावण सीता का हरण करने के लिए पहुंचा तो उसे भी ज्ञात हो गया था, जिस सीता को वह लंका ले जा रहा है, वह माता लक्ष्मी स्वरूपा सीता हैं ही नहीं। तब ही उसे ज्ञात हुआ कि जिस सीता को मैं लंका ले जा रहा है सीता के रूप में वेदवती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब माता सीता ने अग्नि में प्रवेश किया था, तब वेदवती सीता के रूप में बाहर आईं थीं। यही कारण है कि रावण को मारकर जब श्री राम ने सीता ( वेदवती ) को छुड़ाया था, तब भगवान राम ने अग्निपरीक्षा की बात कही थी। क्योंकि भगवान राम को पता था कि मेरी सीता तो अभी अग्नि में वास कर रही है। जब तक वेदवती अग्नि में प्रवेश नहीं करेगी तब तक लक्ष्मी रूपी सीता अग्नि से बाहर नहीं आएंगी।

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