शनि के गुरु हैं शिव पौराणिक कथाओं के अनुसार, शनिदेव दंडाधिकारी है। माना जाता है कि न्याय करते वक्त शनिदेव किसी से न तो प्रभावित होते हैं और न ही किसी से डरते हैं। शनिदेव निष्पक्ष होकर न्याय करते हैं। वो सभी को कर्मों के आधार पर न्याय करते हैं और दंड देते हैं। पौराणिक कथाओं में शिव को ही शनि का गुरु बताया गया है। कहा जाता है कि शिव के कृपा से ही यम के भाई शनि को दंडाधिकरी चुना गया।
ये भी पढ़ें- शनि जयंती 3 जून 2019 : ये है शनि देव की पूजा विधि एवं पूजन का सटीक शुभ मुहूर्त डर से हाथी बने थे महादेव पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब भगवान शिव कैलाश पर विरजमान थे, तब शनिदेव उनका दर्शन करने आ गए। कथा के अनुसार, प्रणाम करने के बाद शनिदेव ने अपने गुरु शिव से क्षमा के साथ कहा कि मैं आपकी राशि में प्रवेश करने वाला हूं। मेरी वक्र दृष्टि से आप नहीं बच पाएंगे। इसके के बाद शिवजी ने पूछा कहा कि कब तक वक्र दृष्टि रहेगा। तो शनिदेव ने कहा कि कल सवा पहर तक। इसके बाद भगवान शिव शनि से बचने के लिए अगले दिन हाथी बन गए और पृथ्वी लोक पर भ्रमण करने लगे।
ये भी पढ़ें- शनि के डर से हाथी बने थे महादेव, शिव के प्रिय सोमवती अमावस्या पर जन्म लेंगे शनिदेव शनिदेव का जवाब सुन खुश हुए महादेव पृथ्वी लोक से लौटने के बाद भगवान शिव ने शनिदेव से कहा कि मैं तो अपके वक्र दृष्टि से बच गया। भगवान शिव की बात सुनकर शनिदेव मुस्कुराये और कहा कि आप मेरी दृष्टि के कारण ही पूरे दिन पृथ्वी लोक पर हाथी बन भ्रमण कर रहे थे। शनिदेव ने कहा कि आपका पशु योनि मेरे ही राशि भ्रमण का ही परिणाम था कि आप पृथ्वी लोक पर हाथी बनकर भ्रमण करने चले गए थे। शनिदेव की बात सुनकर महादेव खुश हुए। कहा जाता है कि उसके बाद से शिव को शनिदेव और प्यारे लगने लगे।