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Sri Shiv Ramashtak Stotram: हर सोमवार पढ़ें श्री शिव रामाष्टक स्तोत्र, प्रतियोगी परीक्षा हो या कोई और चुनौती सब पर मिलती है विजय

Sri Shiv Ramashtak Stotram Path : धर्म ग्रंथों के अनुसार जो मनुष्य हर सोमवार को श्री शिव रामाष्टक स्तोत्रम् का पाठ करता है उसे जीवन में अपार सफलता मिलती है। इसके साथ ही भगवान शिव की कृपा से वह व्यक्ति पाप मुक्त हो जाता है। छात्रों के लिए प्रतियोगी परीक्षा हो या कोई और चुनौती, सब पर उन्हें विजय मिलती है।

Feb 25, 2024 / 10:37 pm

Pravin Pandey

हर सोमवार पढ़ें श्री शिव रामाष्टक स्तोत्र, प्रतियोगी परीक्षा हो या कोई और चुनौती सब पर मिलती है विजय

Sri Shiv Ramashtak Stotram Path: श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम् श्री रामानंद स्वामी ने लिखा है, यह जगत के संहारक भगवान शिव की स्तुति (प्रार्थना) है। भगवान शिव की साप्ताहिक पूजा के लिए सोमवार का दिन समर्पित है और भगवान शिव के आराध्य विष्णु जी हैं, जिनके मानव अवतार श्री राम हैं। इसलिए भोलेनाथ को श्री शिवरामाष्टकस्तोत्रम् अति प्रिय हैं। इसलिए मान्यता है कि हर सोमवार को जो भी व्यक्ति श्री शिवरामाष्टकस्तोत्रम् का पाठ करता है उसे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। इस स्तुति के पाठ से व्यक्ति का जीवन आसान हो जाता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है। साथ ही उसे जीवन में अपार सफलता, सुख और समृद्धि मिलती है। वह हर संकट से दूर हो जाता है, सभी बाधाओं चुनौतियों पर उसे विजय मिलती है। साथ ही दैहिक, दैविक भौतिक तापों से भी मुक्त हो जाता है।

शिवहरे शिवराम सखे प्रभो,त्रिविधताप-निवारण हे विभो।

अज जनेश्वर यादव पाहि मां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥1॥

कमल लोचन राम दयानिधे,हर गुरो गजरक्षक गोपते।

शिवतनो भव शङ्कर पाहिमां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥2॥
स्वजनरञ्जन मङ्गलमन्दिर,भजति तं पुरुषं परं पदम्।

भवति तस्य सुखं परमाद्भुतं,शिवहरे विजयं कुरू मे वरम्॥3॥

जय युधिष्ठिर-वल्लभ भूपते,जय जयार्जित-पुण्यपयोनिधे।

जय कृपामय कृष्ण नमोऽस्तुते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥4॥

भवविमोचन माधव मापते,सुकवि-मानस हंस शिवारते।
जनक जारत माधव रक्षमां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥5॥

अवनि-मण्डल-मङ्गल मापते,जलद सुन्दर राम रमापते।

निगम-कीर्ति-गुणार्णव गोपते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥6॥

पतित-पावन-नाममयी लता,तव यशो विमलं परिगीयते।

तदपि माधव मां किमुपेक्षसे,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥7॥
अमर तापर देव रमापते,विनयतस्तव नाम धनोपमम्।

मयि कथं करुणार्णव जायते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥8॥

हनुमतः प्रिय चाप कर प्रभो,सुरसरिद्-धृतशेखर हे गुरो।

मम विभो किमु विस्मरणं कृतं,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥9॥
नर हरेति परम् जन सुन्दरं,पठति यः शिवरामकृतस्तवम्।

विशति राम-रमा चरणाम्बुजे,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥10॥

प्रातरूथाय यो भक्त्या पठदेकाग्रमानसः।

विजयो जायते तस्य विष्णु सान्निध्यमाप्नुयात्॥11॥

॥ इति श्रीरामानन्दस्वामिना विरचितं श्रीशिवरामाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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