मां चंद्रघंटा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में जब देवगणों और दैत्यों के बीच युद्ध चल रहा था, तब देवताओं के प्रतिनिधि देवराज इन्द्र थे और महिषासुर दैत्यों की ओर से लड़ रहा था। युद्ध के अंत में महिषासुर की विजय हुई और उसने देवलोक पर आधिपत्य प्राप्त कर लिया। इसके बाद महिषासुर ने देवलोक में सभी पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। महिषासुर के इस अत्याचार से त्रस्त होकर सभी देवतागण त्रिदेव भगवान ब्रह्मा, श्रीविष्णु और शिवजी के पास पहुंचे।
देवताओं ने त्रिदेवों के सामने बताया कि सूर्य, चंद्रमा, वायु और देवराज इंद्र के साथ अन्य देवताओं के अधिकार दैत्य महिषासुर द्वारा छीन लिए गए हैं। उसके इन अत्याचारों से परेशान देवताओं को पृथ्वीलोक की भी चिंता सता रही थी। देवताओं की परेशानी के बारे में जानकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देव बहुत क्रोधित हुए। इस भयंकर क्रोध के कारण उनके मुख से काफी ऊर्जा निकली। साथ ही सभी देवताओं के शरीर से भी ऊर्जा उत्पन्न हुई। ये सारी ऊर्जा मिलकर एक ज्योति के रूप में बनी जिससे मां भगवती का अवतरण हुआ।
इस प्रकार अवतरित मां भगवती के को शिवजी ने अपना त्रिशूल और श्री विष्णु ने अपना चक्र दिया। इसके बाद सभी देवतागणों ने भी विभिन्न अस्त्र-शस्त्र मां भगवती को दिए। जैसे इंद्रदेव से मां भगवती को वज्र एवं ऐरावत हाथी मिला तो भगवान सूर्यदेव ने उन्हें अपना तेज, तलवार तथा सवारी के लिए शेर भेंट किया। इसके बाद यह देवी चंद्रघंटा कहलाईं। फिर इन्हीं चंद्रघंटा मां ने महिषासुर का वध किया।
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