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Sawan Som Pradosh Vrat 2022: दो शुभ योगों में पड़ेगा सावन का पहला प्रदोष व्रत, पूजन के बाद अवश्य पढ़ें ये कथा

प्रदोष व्रत भगवान शिव की पूजा के लिए बहुत खास माना जाता है। इस साल सावन का पहला प्रदोष व्रत 25 जुलाई 2022, सोमवार को पड़ रहा है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत के दिन भोलेनाथ और माता पार्वती की आराधना से जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।

Jul 24, 2022 / 10:48 am

Tanya Paliwal

Sawan Som Pradosh Vrat 2022: दो शुभ योगों में पड़ेगा सावन का पहला प्रदोष व्रत, पूजन के बाद अवश्य पढ़ें ये कथा

सावन महीने का प्रारंभ 14 जुलाई 2022 से हो चुका है और सावन का पहला प्रदोष व्रत कल यानी 25 जुलाई 2022 को सोमवार के दिन पड़ रहा है। सोमवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष व्रत कहते हैं। वहीं यह सावन का दूसरा सोमवार व्रत भी है। सावन में पड़ने वाले सोमवार और प्रदोष व्रत दोनों ही भगवान शिव की पूजा के लिए बहुत शुभ माने जाते हैं।

वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योगों के बनने के कारण यह दिन शिव पूजन के लिए और भी महत्वपूर्ण हो गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मान्यता है कि प्रदोष व्रत में पूजन के बाद ये कथा पढ़ने से ही पूजा का संपूर्ण फल प्राप्त होता है और भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। तो आइए जानते हैं सोम प्रदोष व्रत कथा…

सोम प्रदोष व्रत 2022 कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक निर्धन ब्राह्मणी जिसके पति की मृत्यु हो चुकी थी, जीवन निर्वाह करने के लिए भीख मांगती थी। उसका एक बेटा भी था जिसे वह भीख मांगने के दौरान अपने साथ ही लेकर जाती और सूर्यास्त तक वापस आ जाती थी। एक दिन उसकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई। राजकुमार के पिता की मृत्यु हो चुकी थी और उसके राज्य पर शत्रुओं ने कब्जा कर लिया था। जिस कारण वह इधर-उधर भटक रहा था। राजकुमार की ऐसी हालत देखकर ब्राह्मणी उस पर दया करके अपने घर ले गई।

फिर एक दिन में ब्राह्मणी अपने पुत्र और राजकुमार के साथ शांडिल्य ऋषि के आश्रम में गई जहां उसे भगवान शंकर के प्रदोष व्रत की पूजन और व्रत विधि पता चली। यह जानकर ब्राह्मणी ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू कर दिया।

थोड़े दिनों के बाद ब्राह्मणी का पुत्र और राजकुमार दोनों जंगल में घूम रहे थे। जहां उन्होंने कुछ कन्याओं को भी खेलते देखा। ब्राह्मणी का पुत्र तो घर लौट आया लेकिन राजकुमार वहां अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या से बात करने लग गया और घर देरी से पहुंचा। अगले दिन राजकुमार फिर से वहीं पहुंच गया जहां अंशुमति अपने माता पिता के साथ बातें कर रही थी। जब अंशुमति के पिता ने राजकुमार को देखा तो उन्होंने पहचान लिया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार था और उसका नाम धर्मगुप्त था।

तब अंशुमति के पिता ने राजकुमार से कहा कि भोलेनाथ की कृपा से हम अपनी बेटी का विवाह तुम्हारे साथ करेंगे। राजकुमार ने यह प्रस्ताव स्वीकार लिया और उसकी शादी अंशुमति से हो गई। इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व के राजा विद्रविक की बड़ी सेना के साथ विधर्भ देश पर चढ़ाई कर दी। घमासान युद्ध के बाद धर्मगुप्त जीत गया और अपनी पत्नी के साथ वहां राज्य करने लगा।

फिर धर्मगुप्त ने महल में अपने साथ ब्राह्मणी और उसके बेटे को भी साथ रख लिया। जिससे उन्हें भी अपनी निर्धनता से छुटकारा मिल गया। फिर एक दिन जब अंशुमति ने धर्मगुप्त से पूछा कि यह सब कैसे संभव हुआ, तो राजकुमार ने बताया कि यह सब प्रदोष व्रत के ही पुण्य का फल है। तभी से यह व्रत बहुत फलदायी माना जाता है।

(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)

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