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Saphala Ekadashi Puja 2022: जानिए कब है सफला एकादशी, क्यों रखते हैं इस दिन व्रत

सफला एकादशी व्रत सोमवार को है। इस एकादशी का मुहूर्त क्या है और इस व्रत का क्या महात्म्य है, जानने के लिए पढ़ें पूरी रिपोर्ट।

Dec 14, 2022 / 03:33 pm

shailendra tiwari

Saphala Ekadashi Puja 2022 Know when Saphala Ekadashi vrat and significance of vrat

सफला एकादशी व्रत सोमवार को है।

भोपाल. जैसे त्रयोदशी के दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है, वैसे ही एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। लेकिन कुछ महीनों की एकादशी तिथि विशेष के नाम से जानी जाती हैं, जैसे देवशयनी एकादशी, देवउठनी एकादशी और सफला एकदशी। इन तिथियों पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन सफला एकादशी सोमवार को पड़ रही है। आइये जानते है प्रयागराज के आचार्य प्रदीप पाण्डेय से कब है सफला एकादशी और इस दिन क्यों रखते हैं व्रत।
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सफला एकादशी महात्म्यः आचार्य प्रदीप पाण्डेय के मुताबिक पौष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी का व्रत रखा जाता है। यह व्रत कर भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को सौभाग्यशाली होता है। उनके मुताबिक जो व्यक्ति श्रद्धा से सफला एकादशी व्रत कर भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसे मृत्यु के बाद बैकुंठ की प्राप्ति होती है।

आचार्य प्रदीप ने बताया कि इस साल पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 19 दिसंबर 2022 को पड़ रही है। यह तिथि 19 दिसंबर को सुबह 03 बजकर 32 मिनट पर शुरू होकर 20 दिसंबर 2022 सुबह 02 बजकर 32 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के मद्देनजर इस साल सफला एकादशी का व्रत सोमवार 19 दिसंबर 2022 को रखा जाएगा।
सफला एकादशी व्रत के पारण का समय : पंचांग के अनुसार सफला एकादशी का व्रत रखने वाले लोगों को 20 दिसंबर 2022 को सुबह 08 बजकर 05 मिनट से सुबह 09 बजकर 13 मिनट के बीच पारण कर लेना चाहिए।
संक्षेप में सफला एकादशी व्रत की कथाः सफला एकादशी व्रत को लेकर एक पौराणिक कथा है। प्रयागराज के आचार्य प्रदीप पाण्डेय सफला एकादशी प्रचलन के बारे में एक कथा बताते हैं। कथा के मुताबिक प्राचीनकाल में चंपावती नगर था, इसमें राजा महिष्मत राज्य करते थे। राजा महिष्मत के चार बेटे थे, जिसमें एक बेटे का आचरण ठीक नहीं था। वह पिता के धन को खराब कामों में नष्ट कर रहा था। इससे नाराज होकर राजा ने उसे राज्य से निकाल दिया। इससे भी उसकी आदत नहीं बदली, वह लूटपाट में लिप्त हो गया।

कथा के मुताबिक, लेकिन एक दिन ऐसा वक्त आया कि 3 दिन तक उसे भोजन नहीं मिला। इससे भटकता हुआ वह एक साधु की कुटिया तक जा पहुंच गया। उस दिन सफला एकादशी थी। साधु ने उसका आदर किया और भोजन कराया। इसके बाद राजा के लड़के का हृदय परिवर्तन हो गया। वह साधु का शिष्य बन गया और एकादशी व्रत रखने लगा। बाद में साधु अपने असली वेश में सामने आया तो राजा का बेटा चौंक गया। साधु के वेश में उसके पिता ही थे। इसके बाद समझाने पर राजा का बेटा राजकाज संभालने लगा।

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