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सर्वार्थ सिद्धि योग में सावन का पहला मंगला गौरी व्रत, पूजन के बाद अवश्य पढ़ें ये कथा, हर मनोकामना पूर्ण होने की है मान्यता

Mangla Gauri Vrat 2022 Katha: सावन मास में पड़ने वाले प्रत्येक मंगलवार को माता मंगला गौरी की पूजा और व्रत किया जाता है। माता पार्वती के साथ इस दिन भगवान भोलेनाथ, गणेश जी और नंदी की पूजा भी की जाती है। मान्यता है कि पूजन के बाद मंगला गौरी व्रत कथा अवश्य पढ़नी चाहिए।

Jul 18, 2022 / 11:17 am

Tanya Paliwal

सर्वार्थ सिद्धि योग में सावन का पहला मंगला गौरी व्रत, पूजन के बाद अवश्य पढ़ें ये कथा, हर मनोकामना पूर्ण होने की है मान्यता

सनातन धर्म में सावन मास का बहुत खास महत्व बताया गया है। सावन के महीने में हर मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखा जाता है। इस साल चार मंगला गौरी व्रत रखे जाएंगे। सावन का पहला मंगला गौरी व्रत 19 जुलाई 2022 को पड़ रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार संतान सुख प्राप्ति, सुखी वैवाहिक जीवन की मनोकामना के लिए सुहागिन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं इस व्रत को रखती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पूजा का संपूर्ण फल प्राप्त करने के लिए मंगला गौरी व्रत पूजन के बाद व्रत कथा अवश्य पढ़नी चाहिए। तो आइए जानते हैं मंगला गौरी व्रत कथा…

मंगला गौरी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में धर्मपाल नामक एक धनवान सेठ था। उसके घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी केवल वह और उसकी पत्नी इस बात से दुखी थे कि उनके कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति की इच्छा से धर्मपाल सेठ ने कई यज्ञ और अनुष्ठान किए। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर देवी मां ने कोई मन की इच्छा पूरी करने का वरदान दिया। यह सुनकर सेठ में देवी मां से कहा कि, ‘हे माता! मेरे पास सब कुछ है, केवल मैं संतान सुख से वंचित हूं।इसलिए आप मुझे पुत्र प्राप्ति का वरदान दें।’

सेठ की मनोकामना सुनकर देवी ने कहा कि, ‘धर्मपाल तुम्हारी पूजा से प्रसन्न होकर मैं तुम्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान तो दे देती हूं लेकिन तुम्हारा पुत्र केवल 16 साल तक जीवित रह सकेगा।’ यह सुनकर सेठ और उसकी पत्नी निराश तो हुए लेकिन उन्होंने फिर भी पुत्र प्राप्ति का वरदान स्वीकार कर लिया।

माता रानी के वरदान के फलस्वरुप सेठानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। सेठ ने अपने पुत्र का नाम चिरायु रखा। समय बीतने के साथ ही सेठ सेठानी को चिरायु की मृत्यु का भय सताने लगा। तब एक विद्वान पंडित ने धर्मपाल को यह सलाह दी कि वह अपने पुत्र चिरायु का विवाह एक ऐसी कन्या से करे जो मंगला गौरी का व्रत करती हो क्योंकि कन्या के व्रत के फलस्वरूप उसके पुत्र को दीर्घायु प्राप्त होगी।

तत्पश्चात धर्मपाल ने विद्वान की बात सुनकर अपने बेटे की शादी ऐसी कन्या से कर दी जो मंगला गौरी व्रत रखती थी। तब कन्या के व्रत के फलस्वरुप सेठ के पुत्र चिरायु का अकाल मृत्यु दोष भी खत्म हो गया। मान्यता है कि तभी से सुखी वैवाहिक जीवन और संतान सुख के लिए मंगला गौरी व्रत रखा जाता है।

(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)

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