कैसे करें रंभा पूजन
रंभा तृतीया के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अब पूर्व की ओर मुख करके बैठें और सूर्य देव की खातिर एक दीपक जलाएं। इस दिन विवाहित महिलाएं माता लक्ष्मी और माता सती की पूरे विधि-विधान द्वारा पूजा करती हैं। साथ ही सौभाग्य और सुंदरता की प्रतीक मानी जाने वाली अप्सरा रंभा का भी पूजा किया जाता है। इसके लिए कई स्थानों पर चूड़ियों के जोड़े को रंभा अप्सरा के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। आप रंभोत्कीलन यंत्र की पूजा भी कर सकते हैं। अब चंदन, फूल, फल, आदि अर्पित करके माता लक्ष्मी के समक्ष दीपक जलाएं। फिर अपने बाएं हाथ में गुलाबी रंग से रंगे अक्षत लेकर यंत्र पर इन मंत्रों को बोलते हुए अर्पित करें…
ॐ दिव्यायै नमः।
ॐ वागीश्चरायै नमः।
ॐ सौंदर्या प्रियायै नमः।
ॐ योवन प्रियायै नमः।
ॐ सौभाग्दायै नमः।
ॐ आरोग्यप्रदायै नमः।
ॐ प्राणप्रियायै नमः।
ॐ उर्जश्चलायै नमः।
ॐ देवाप्रियायै नमः।
ॐ ऐश्वर्याप्रदायै नमः।
ॐ धनदायै धनदा रम्भायै नमः।
रंभा तृतीया का महत्व: माना जाता है कि रंभा तृतीया के दिन विधिपूर्वक पूजन और मंत्रोच्चारण से व्यक्ति को जीवन में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और सौंदर्य की प्राप्ति होती है। साथ ही जहां एक तरफ यह व्रत शादीशुदा महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं तो कुंवारी कन्याएं अपने मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)