तमिल परंपरा के अनुसार बोम्मई गोलू या कोलू का अर्थ दिव्य उपस्थिति है। समारोह के दौरान घरों को ‘बोम्मई गोलू’ की गुड़िया से सजाया गया है। वहीं नवरात्रि के त्योहार में कर्नाटक, तमिलनाडु, और आंध्र प्रदेश में विभिन्न देवी-देवताओं, बच्चों, जानवरों तथा पुरुषों की गुड़ियाओं को सीढ़ीनुमा जगह पर एक के ऊपर एक रखा जाता है। तेलुगु में इसे बोम्माला कोलुवु के नाम से जानते हैं जिसका मतलब होता है खिलौने का दरबार।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सीढ़ीनुमा जगह के पहले चरण को कलश से सजाया जाता है। इस पानी से भरे कलश के मुख पर आम के पत्ते लगाए जाते हैं और उसके ऊपर एक नारियल रखा जाता है। मान्यता है कि ये कलश मां दुर्गा का प्रतिनिधित्व करने वाला होता है। इसके बाद इस पूजनीय कलश के दोनों तरफ देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित करते हैं। धार्मिक परंपरा के अनुसार, देवी दुर्गा, माता लक्ष्मी, मां सरस्वती की गुड़िया के साथ मारापाची बोम्मई नामक लकड़ी की गुड़िया इस परंपरा का खास हिस्सा होती हैं। फिर अगले कुछ चरणों में देश के संतों और नायकों की मूर्तियां स्थापित होती हैं।
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