जी हां पौराणिक कथाओं में इनका जिक्र मिलता है। ऐसी ही एक कथा हिमालय और विंध्य की भी मिलती है। जहां विशालता की लड़ाई में दोनों पर्वतों की बात इतनी बढ़ गई कि धरती पर सूर्य का प्रकाश तक आना बंद हो गया। आइए जानते हैं कथा के अनुसार क्या हुआ जब दो विशाल पर्वतों के बीच प्रतिस्पर्धा हुई और फिर क्यों एक पर्वत को झुकना पड़ा साथ ही ये सदियों का लंबा इंतजार कौन सा पर्वत आज तक कर रहा है और आखिर क्यों?
मान्यता है कि एक बार हिमालय और विंध्य में प्रतिस्पर्धा शुरू हो गयी कि दोनों में से विशाल कौन है। इसके बाद दोनों ही अपना आकार बढ़ाने लगे। तब विंध्य पर्वत का आकार बढ़ते-बढ़ते अत्यंत विशाल हो गया। इतना कि इससे पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश आना अवरुद्ध हो गया और त्राहि-त्राहि मच गई।
तब मनुष्यों और देवताओं ने अगस्त्य मुनि से प्रार्थना की कि वो विंध्य पर्वत को अपना आकार कम कर ले ताकि पृथ्वी तक सूर्य का प्रकाश पहुंच सके। सभी ने प्रार्थना की विंध्य पर्वत आपका शिष्य है, आपका आदर व सम्मान करता है। अगर आप उससे अपना आकार घटाने को कहेंगे, तो वह आपकी बात नहीं टालेगा।
सबने अगस्त्य मुनि से निवेदन किया कि वह अतिशीघ्र ही वह विंध्य पर्वत को अपना आकार घटाने को कहें। अन्यथा सूर्य का प्रकाश न पहुंच पाने की स्थिति में विंध्याचल पर्वत के पार बसे मानवों पर भारी संकट आ जाएगा। सबकी पुकार पर अगस्त्य मुनि विंध्याचल पर्वत के पास गए। उन्हें देखते ही विंध्याचल पर्वत ने झुककर उन्हें प्रणाम किया और पूजा कि गुरुवर मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं? तब उन्होंने कहा कि मुझे दक्षिण की ओर जाना है लेकिन वत्स तुम्हारे इस बढ़े हुए आकार के कारण मैं पार नहीं जा सकूंगा।
गुरु की दक्षिण दिशा में जाने की बात सुनते ही विंध्य पर्वत ने कहा कि गुरुदेव यदि आप दक्षिण में जाना चाहते हैं तो अवश्य ही जाएंगे। इतना कहकर विंध्य पर्वत गुरु के चरणों में झुक गया। तब अगस्त्य मुनि ने कहा कि विंध्य जब तक मैं दक्षिण देश से वापस न आऊं तब तक तुम ऐसे ही झुके रहना। यह कहकर अगस्त्य चले गए, लेकिन वे आज तक नहीं लौटे। ऐसे में कहा जाता है कि आज तक विंध्य पर्वत अपने गुरु के आदेश पर झुके हुए उनके लौटने की राह ताक रहा है।
माना जाता है गुरु के चरणों में शीश रखने व गुरु के इस आदेश पर कि मैं जब तक वापस न आउं तब तक ऐसे ही रहना के चलते तब से विंध्य उपर की ओर न बढ़ पाया, लेकिन यह नीचे ही नीचे बढ़ता रहा, और अब तक बढ़ता जा रहा है। जानकारों का मानना है इसी के चलते विंध्य की पहाड़ियों लगातार अपना क्षेत्र बढ़ती जा रही हैं।
विंध्य पर्वत प्राचीन भारत के सप्तकुल पर्वतों में से एक है। विंध्य’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘विध्’ धातु से कही जाती है। भूमि को बेध कर यह पर्वतमाला भारत के मध्य में स्थित है। विंध्य पर्वत श्रंखला का वेद, महाभारत, रामायण और पुराणों में कई जगह उल्लेख किया गया है। विंध्य पहाड़ों की रानी विंध्यवासिनी माता है। मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर (मिरजापुर, उ.प्र.) श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है।