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धर्म

भगवान शिव : जानें रुद्र के 19 अवतारों का रहस्य

शिव अनादि व सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत…

Feb 08, 2021 / 01:27 pm

दीपेश तिवारी

Lord Shiv and his secrets

Lord Shiv and his secrets

सनातन धर्म में शंकर जी को संहार का देवता कहा जाता है। शंंकर जी सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। शंकर या महादेव आरण्य संस्कृति जो आगे चल कर सनातन में शिव धर्म (शैव धर्म) नाम से जाने जाती है में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं।

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त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। इन्हें शिव,भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधर आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। शिव अनादि व सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय और प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं।

हिन्दू धर्म में शिव प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं, रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते हैं, इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। शिव के कुछ प्रचलित नाम, महाकाल, आदिदेव, किरात, शंकर, चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय (मृत्यु पर विजयी), त्रयम्बक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, विषधर, नीलकण्ठ, महाशिव, उमापति (पार्वती के पति), काल भैरव, भूतनाथ, ईवान्यन (तीसरे नयन वाले), शशिभूषण आदि। भगवान शिव को रूद्र नाम से जाता है रुद्र का अर्थ है रुत दूर करने वाला अर्थात दुखों को हरने वाला अतः भगवान शिव का स्वरूप कल्याण कारक है।

आज सोमवार का भगवान शंकर का ही दिन माना जाता है , ऐसे में आज हम आपको भगवान शिव के 19 अवतारों के नाम उनसे जुड़ी कुछ बातें व उनके रहस्यों के बारे में बता रहे हैं…

1. शरभ अवतार
भगवान शंकर का पहला अवतार है शरभ। इस अवतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में बताया गया आठ पैरों वाला प्राणी, जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था। इस अवतार में भगवान शंकर ने नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था। लिंगपुराण में शिव के शरभावतार की कथा है, उसके अनुसार- हिरण्यकाश्यपु का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंहावतार लिया था। हिरण्यकाश्यपु के वध के पश्चात भी जब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवता शिवजी के पास पहुंचे। तब भगवान शिव ने शरभावतार लिया और वे इसी रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे तथा उनकी स्तुति की, लेकिन नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ। यह देख शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े। तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई।

2. पिप्पलाद अवतार
मानव जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बड़ा महत्व है। शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका। कथा है कि पिप्पलाद मुनि ने देवताओं से पूछा- क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि2 जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए? देवताओं ने बताया कि शनि ग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना। पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया।

श्राप के प्रभाव से शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे। तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है। शिवपुराण के अनुसार, स्वयं ब्रह्मा ने ही शिव के इस अवतार का नामकरण किया था।

पिप्पलादेति तन्नाम चक्रे ब्रह्मा प्रसन्नधी:।
-शिवपुराण शतरुद्रसंहिता 24/61

3. नंदी अवतार
भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान शंकर का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का 3अनुसरण करते हुए सभी जीवों से प्रेम का संदेश देता है। नंदी (बैल) कर्म का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है। इस अवतार की कथा इस प्रकार है-

शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद ने अयोनिज और मृत्युहीन संतान की कामना से भगवान शिव की तपस्या की। तब भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। भगवान शंकर ने नंदी को अपना गणाध्यक्ष बनाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए। मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ।

4. भैरव अवतार
शिवपुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। एक बार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा व विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे। तभी वहां तेजपुंज के मध्य एक पुरुषाकृति4 दिखलाई पड़ी। उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा- चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो। अत: मेरी शरण में आओ। ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया।

उन्होंने उस पुरुषाकृति से कहा- काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात कालराज हैं। भीषण होने से भैरव हैं। भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवे सिर को काट दिया। ब्रह्मा का पांचवां सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्महत्या के पाप से दोषी हो गए। काशी में भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली।

5. अश्वत्थामा
महाभारत के अनुसार, पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के 5अंशावतार थे। आचार्य द्रोण ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने की लिए घोर तपस्या की और भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि वे उनके पुत्र के रूप में अवतीर्ण होंगे। समय आने पर सवन्तिक रुद्र ने अपने अंश से द्रोण के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया। ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं तथा वह आज भी धरती पर ही निवास करते हैं। इस विषय में एक श्लोक प्रचलित है-

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

अर्थात- अश्वत्थामा, राजा बलि, व्यासजी, हनुमानजी, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम व ऋषि मार्कण्डेय ये आठों अमर हैं।
शिवमहापुराण (शतरुद्रसंहिता-37) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया है।

6. वीरभद्र अवतार
भगवान शिव का विवाह ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की पुत्री सती से हुआ था। एक बार दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उन्होंने शिव व सती को निमंत्रित नहीं किया। भगवान शिव के मना करने के बाद भी shiva-06_1456990242सती इस यज्ञ में आईं और जब उन्होंने यज्ञ में अपने पति शिव का अपमान होते देखा तो यज्ञवेदी में कूदकर उन्होंने अपनी देह का त्याग कर दिया।

जब भगवान शिव को यह मालूम हुआ तो उन्होंने अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे क्रोध में आकर पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए। शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है-

क्रुद्ध: सुदष्टपुट: स धूर्जटिर्जटां तडिद्वह्लिसटोग्ररोचिषम्।
उत्कृत्य रुद्र: सहसोत्थितो हसन् गम्भीरनादो विससर्ज तां भुवि॥
ततोऽतिकायस्तनुवा स्पृशन्दिवं। श्रीमद् भागवत – 4/5/1

शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया। बाद में देवताओं के अनुरोध करने पर भगवान शिव ने दक्ष के सिर पर बकरे का मुंह लगाकर उसे पुन: जीवित कर दिया।

7. गृहपति अवतार
भगवान शंकर का सातवां अवतार है गृहपति। इसकी कथा इस प्रकार है-

नर्मदा के तट पर धर्मपुर नाम का एक नगर था। वहां विश्वानर नाम के एक मुनि तथा उनकी पत्नी शुचिष्मती रहती थीं। शुचिष्मती ने बहुत समय तक नि:संतान रहने पर एक दिन अपने पति से शिव के समान पुत्र प्राप्ति की इच्छा की। पत्नी की अभिलाषा पूरी करने के लिए मुनि विश्वनार काशी आ गए। यहां उन्होंने घोर तप द्वारा भगवान शिव के वीरेश-लिंग की आराधना की।

एक दिन मुनि को वीरेश ***** के मध्य एक बालक दिखाई दिया। मुनि ने बालरूपधारी शिव की पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शुचिष्मति के गर्भ से अवतार लेने का वरदान दिया। कालांतर में शुचिष्मति गर्भवती हुई और भगवान शंकर शुचिष्मती के गर्भ से पुत्ररूप में प्रकट हुए। कहते हैं, पितामह ब्रह्मा ने ही उस बालक का नाम गृहपति रखा था।

8. ऋषि दुर्वासा अवतार
भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुर्वासा का अवतार भी प्रमुख है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, सती अनुसूइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा के निर्देशानुसार पत्नी सहित ऋक्षकुल पर्वत पर पुत्र कामना से घोर 8तप किया। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों उनके आश्रम पर आए। उन्होंने कहा- हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र होंगे, जो त्रिलोकी में विख्यात तथा माता-पिता का यश बढ़ाने वाले होंगे।

समय आने पर ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा उत्पन्न हुए। विष्णु के अंश से श्रेष्ठ संन्यास पद्धति को प्रचलित करने वाले दत्तात्रेय उत्पन्न हुए और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया। शास्त्रों में इसका उल्लेख है-

अत्रे: पत्न्यनसूया त्रीञ्जज्ञे सुयशस: सुतान्।
दत्तं दुर्वाससं सोममात्मेशब्रह्मïसम्भवान्॥
श्रीमद्भागवत- 4/1/15

अर्थात- अत्रि की पत्नी अनुसूइया से दत्तात्रेय, दुर्वासा और चंद्रमा नाम के तीन परम यशस्वी पुत्र हुए। ये क्रमश: भगवान विष्णु, शंकर और ब्रह्मा के अंश से उत्पन्न हुए थे।

9. हनुमान अवतार
भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धरा था। शिवपुराण के अनुसार, देवताओं और दानवों को अमृत बांटते हुए विष्णुजी के मोहिनी 9रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीर्यपात कर दिया।

सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर लिया। समय आने पर सप्तऋषियों ने भगवान शिव के वीर्य को वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में स्थापित कर दिया, जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमानजी उत्पन्न हुए।

हनुमानजी को भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम का परम सेवक माना जाता है। वाल्मीकि रामायण के एक प्रसंग में श्रीराम ने यह भी कहा है कि यदि हनुमान न होते वे सीता को रावण की कैद से मुक्त न करा पाते। हनुमानजी भी अमर हैं, उन्हें अमरता का वरदान माता सीता ने दिया था।

10. वृषभ अवतार
भगवान शंकर ने विशेष परिस्थितियों में वृषभ अवतार लिया था। इस अवतार में भगवान शंकर ने विष्णु पुत्रों का संहार किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब भगवान विष्णु दैत्यों को मारने पाताल लोक गए तो उन्हें वहां10 बहुत सी चंद्रमुखी स्त्रियां दिखाई पड़ी।

विष्णु ने उनके साथ रमण करके बहुत से पुत्र उत्पन्न किए। विष्णु के इन पुत्रों ने पाताल से पृथ्वी तक बड़ा उपद्रव किया। उनसे घबराकर ब्रह्माजी ऋषि मुनियों को लेकर शिवजी के पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शंकर ने वृषभ रूप धारण कर विष्णु पुत्रों का संहार किया।

11. यतिनाथ अवतार
भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व का प्रतिपादन किया था। उन्होंने इस अवतार में 11अतिथि बनकर भील दंपत्ति की परीक्षा ली थी, जिसके कारण भील दंपत्ति को अपने प्राण गंवाने पड़े। धर्म ग्रंथों के अनुसार, अर्बुदाचल पर्वत के समीप शिवभक्त आहुक-आहुका भील दंपत्ति रहते थे। एक बार भगवान शंकर यतिनाथ के वेष में उनके घर आए। उन्होंने भील दंपत्ति के घर रात बिताने की इच्छा प्रकट की। आहुका ने अपने पति को गृहस्थ की मर्यादा का स्मरण कराते हुए स्वयं धनुष बाण लेकर बाहर रात बिताने और यति को घर में विश्राम करने देने का प्रस्ताव रखा।

इस तरह आहुक धनुष-बाण लेकर बाहर चला गया। सुबह आहुका और यति ने देखा कि वन्य प्राणियों ने आहुक को मार डाला है। इस पर यतिनाथ बहुत दु:खी हुए। तब आहुका ने उन्हें शांत करते हुए कहा कि आप शोक न करें। अतिथि सेवा में प्राण विसर्जन धर्म है और उसका पालन कर हम धन्य हुए हैं। जब आहुका अपने पति की चिताग्नि में जलने लगी तो शिवजी ने उसे दर्शन देकर अगले जन्म में पुन: अपने पति से मिलने का वरदान दिया।

12. कृष्णदर्शन अवतार
भगवान शिव ने इस अवतार में यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों के महत्व को बताया है। इस प्रकार यह अवतार पूर्णत: धर्म का प्रतीक है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इक्ष्वाकु वंशीय श्राद्ध देव की नवमी पीढ़ी में राजा नभग का12 जन्म हुआ। विद्या-अध्ययन को गुरुकुल गए नभग जब बहुत दिनों तक न लौटे तो उनके भाइयों ने राज्य का विभाजन आपस में कर लिया। नभग को जब यह पता चला तो वह अपने पिता के पास गए। पिता ने नभग से कहा कि वह यज्ञ परायण ब्राह्मणों के मोह को दूर करते हुए उनके यज्ञ को सम्पन्न करके, उनके धन को प्राप्त करे।

तब नभग ने यज्ञभूमि में पहुंचकर वैश्य देव सूक्त के स्पष्ट उच्चारण द्वारा यज्ञ संपन्न कराया। अंगारिक ब्राह्मण यज्ञ का अवशिष्ट धन नभग को देकर स्वर्ग को चले गए। उसी समय शिवजी कृष्ण दर्शन रूप में प्रकट होकर बोले कि यज्ञ के अवशिष्ट धन पर तो उनका अधिकार है। विवाद होने पर कृष्ण दर्शन रूपधारी शिवजी ने उसे अपने पिता से ही निर्णय कराने को कहा। नभग के पूछने पर श्राद्ध देव ने कहा-वह पुरुष शंकर भगवान हैं। यज्ञ में अवशिष्ट वस्तु उन्हीं की है। पिता की बातों को मानकर नभग ने शिवजी की स्तुति की।

13. अवधूत अवतार
भगवान शंकर ने अवधूत अवतार लेकर इंद्र के अंहकार को चूर किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक समय बृहस्पति और अन्य देवताओं को साथ लेकर इंद्र शंकरजी के दर्शनों के लिए कैलाश पर्वत पर गए। इंद्र की परीक्षा लेने के लिए शंकरजी ने अवधूत रूप धारण कर उनका मार्ग रोक लिया। इंद्र ने उस पुरुष से अवज्ञापूर्वक बार-बार उसका परिचय पूछा तो भी वह मौन रहा।

क्रोधित होकर इंद्र ने जैसे ही अवधूत पर प्रहार करने के लिए वज्र छोड़ना चाहा, वैसे ही उनका हाथ जड़ हो गया। यह देखकर बृहस्पति ने शिवजी को पहचान कर अवधूत की बहुविधि स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने इंद्र को क्षमा कर दिया।

14. भिक्षुवर्य अवतार
भगवान शंकर देवों के देव हैं। संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी के जीवन के रक्षक भी हैं। भगवान शंकर का भिक्षुवर्य अवतार यही संदेश देता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, विदर्भ नरेश सत्यरथ को शत्रुओं ने मार डाला।14 उसकी गर्भवती पत्नी ने शत्रुओं से छिपकर अपने प्राण बचाए। समय आने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया। रानी जब जल पीने के लिए सरोवर गई तो उसे घड़ियाल ने अपना आहार बना लिया। तब वह बालक भूख-प्यास से तड़पने लगा। इतने में ही शिवजी की प्रेरणा से एक भिखारिन वहां पहुंची।

शिवजी ने भिक्षुक का रूप धर उस भिखारिन को बालक का परिचय दिया और उसके पालन-पोषण का निर्देश दिया तथा यह भी कहा कि यह बालक विदर्भ नरेश सत्यरथ का पुत्र है। यह सब कह कर भिक्षुक रूप धारी शिव ने उस भिखारिन को अपना वास्तविक रूप दिखाया। शिव के आदेश अनुसार भिखारिन ने उस बालक का पालन-पोषण किया। बड़ा होकर उस बालक ने शिवजी की कृपा से अपने दुश्मनों को हराकर पुन: अपना राज्य प्राप्त किया।

15. किरात अवतार
किरात अवतार में भगवान शंकर ने पांडु पुत्र अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी। महाभारत के अनुसार, कौरवों 15ने छल-कपट से पांडवों का राज्य हड़प लिया, जिसके कारण उन्हें वनवास पर जाना पड़ा। वनवास के दौरान जब अर्जुन भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर रहे थे, तभी दुर्योधन द्वारा भेजा हुआ मूड नामक दैत्य अर्जुन को मारने के लिए शूकर (सुअर) का रूप धारण कर वहां पहुंचा।

अर्जुन ने शूकर पर अपने बाण से प्रहार किया, उसी समय भगवान शंकर ने भी किरात वेष धारण कर उसी शूकर पर बाण चलाया। शिव की माया के कारण अर्जुन उन्हें पहचान न पाए और शूकर का वध उसके बाण से हुआ है, यह कहने लगे। इस पर दोनों में विवाद हो गया। अर्जुन ने किरात वेषधारी शिव से युद्ध किया। अर्जुन की वीरता देख भगवान शिव प्रसन्न हो गए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर अपना पाशुपात अस्त्र प्रदान किया।

16. सुनटनर्तक अवतार
पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मांगने के लिए शिवजी ने सुनटनर्तक वेष धारण किया था। हाथ में डमरू लेकर शिवजी नट के रूप में हिमाचल के घर पहुंचे और नृत्य करने लगे। नटराज शिवजी ने इतना सुंदर और मनोहर नृत्य किया कि सभी प्रसन्न हो गए। जब हिमाचल ने नटराज को भिक्षा मांगने को कहा तो नटराज शिव ने भिक्षा में पार्वती को मांग लिया। इस पर हिमाचलराज अति क्रोधित हुए। कुछ देर बाद नटराज वेषधारी शिवजी पार्वती को अपना रूप दिखाकर स्वयं चले गए। उनके जाने पर मैना और हिमाचल को दिव्य ज्ञान हुआ और उन्होंने पार्वती को शिवजी को देने का निश्चय किया।

17. ब्रह्मचारी अवतार
दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने हिमालय के घर जन्म लिया तो शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया। पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे। पार्वती ने ब्रह्मचारी को देख उनकी विधिवत पूजा की। जब ब्रह्मचारी ने पार्वती से उसके तप का उद्देश्य पूछा और जानने पर शिव की निंदा करने लगे तथा उन्हें श्मशानवासी व कापालिक भी कहा। यह सुन पार्वती को बहुत क्रोध हुआ। पार्वती की भक्ति व प्रेम को देखकर शिव ने उन्हें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाया। यह देख पार्वती अति प्रसन्न हुईं।

18. अर्धनारीश्वर अवतार
भगवान शंकर का यह अवतार हमें बताता है कि समाज, परिवार व सृष्टि के संचालन में पुरुष की भूमिका18 जितनी महत्वपूर्ण है, उतनी ही स्त्री की भी है। अर्धनारीश्वर अवतार लेकर भगवान ने यह संदेश दिया है कि समाज तथा परिवार में महिलाओं को भी पुरुषों के समान ही आदर व प्रतिष्ठा मिले। शिवपुराण के अनुसार, सृष्टि में प्रजा की वृद्धि न होने पर ब्रह्मा चिंतित हो उठे। तभी आकाशवाणी हुई- ब्रह्म! मैथुनी सृष्टि उत्पन्न कीजिए।

यह सुनकर ब्रह्माजी ने मैथुनी सृष्टि उत्पन्न करने का संकल्प किया। परंतु तब तक शिव से नारियों का कुल उत्पन्न नहीं हुआ था। तब ब्रह्मा ने शक्ति के साथ शिव को संतुष्ट करने के लिए तपस्या की । ब्रह्मा की तपस्या से परमात्मा शिव संतुष्ट हो ‘अर्धनारीश्वर का रूप धारण कर उनके समीप गए और अपने शरीर में स्थित देवी शिवा/शक्ति के अंश को पृथक कर दिया। इसी के बाद सृष्टि का विस्तार हुआ।

19. सुरेश्वर अवतार
भगवान शंकर का सुरेश्वर (इंद्र) अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेम भावना को प्रदर्शित करता है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपनी परम भक्ति और अमर पद का वरदान दिया। धर्म ग्रंथों के अनुसार, व्याघ्रपाद का पुत्र उपमन्यु अपने मामा के घर पलता था। वह सदा दूध की इच्छा से व्याकुल रहता था। उसकी मां ने उसे अपनी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए शिवजी की शरण में जाने को कहा।

इस पर उपमन्यु वन में जाकर ऊं नम: शिवाय का जाप करने लगा। शिवजी ने सुरेश्वर (इंद्र) का रूप धारण कर उसे दर्शन दिए और शिवजी की अनेक प्रकार से निंदा करने लगे। इस पर उपमन्यु क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए खड़ा हुआ। उपमन्यु की भक्ति और अटल विश्वास देखकर शिवजी ने उसे अपने वास्तविक रूप के दर्शन कराए तथा क्षीरसागर के समान एक अनश्वर सागर उसे प्रदान किया। उसकी प्रार्थना पर कृपालु शिवजी ने उसे परम भक्ति का पद भी दिया।

भगवान शिव के 108 नाम…

: शिव- कल्याण स्वरूप
: महेश्वर- माया के अधीश्वर
: शम्भू- आनंद स्स्वरूप वाले
: पिनाकी- पिनाक धनुष धारण करने वाले
: चंद्रशेखर- सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले
: वामदेव- अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले
: विरूपाक्ष- भौंडी आंख वाले
: कपर्दी- जटाजूट धारण करने वाले
: नीललोहित- नीले और लाल रंग वाले
: शंकर- सबका कल्याण करने वाले
: शूलपाणी- हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले
: खटवांगी- खटिया का एक पाया रखने वाले
: विष्णुवल्लभ- भगवान विष्णु के अतिप्रेमी
: शिपिविष्ट- सितुहा में प्रवेश करने वाले
: अंबिकानाथ- भगवति के पति
: श्रीकण्ठ – सुंदर कण्ठ वाले
: भक्तवत्सल- भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले
: भव- संसार के रूप में प्रकट होने वाले
: शर्व – कष्टों को नष्ट करने वाले
: त्रिलोकेश- तीनों लोकों के स्वामी
: शितिकण्ठ – सफेद कण्ठ वाले
: शिवाप्रिय- पार्वती के प्रिय
: उग्र- अत्यंत उग्र रूप वाले
: कपाली- कपाल धारण करने वाले
: कामारी – कामदेव के शत्रु
: अंधकारसुरसूदन – अंधक दैत्य को मारने वाले
: गंगाधर – गंगा जी को धारण करने वाले
: ललाटाक्ष – ललाट में आँख वाले
: कालकाल- काल के भी काल
: कृपानिधि – करूणा की खान
: भीम – भयंकर रूप वाले
: परशुहस्त – हाथ में फरसा धारण करने वाले
: मृगपाणी – हाथ में हिरण धारण करने वाले
: जटाधर – जटा रखने वाले
: कैलाशवासी – कैलाश के निवासी
: कवची- कवच धारण करने वाले
: कठोर- अत्यन्त मजबूत देह वाले
: त्रिपुरांतक – त्रिपुरासुर को मारने वाले
: वृषांक – बैल के चिह्न वाली झंडा वाले
: वृषभारूढ़- बैल की सवारी वाले
: भस्मोद्धूलितविग्रह – सारे शरीर में भस्म लगाने वाले
: सामप्रिय – सामगान से प्रेम करने वाले
: स्वरमयी – सातों स्वरों में निवास करने वाले
: त्रयीमूर्ति – वेदरूपी विग्रह करने वाले
: अनीश्वर – जिसका और कोई मालिक नहीं है
: सर्वज्ञ – सब कुछ जानने वाले
: परमात्मा – सबका अपना आपा
: सोमसूर्याग्निलोचन – चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आँख वाले
: हवि – आहूति रूपी द्रव्य वाले
: यज्ञमय – यज्ञस्वरूप वाले
: सोम – उमा के सहित रूप वाले
: पंचवक्त्र – पांच मुख वाले
: सदाशिव – नित्य कल्याण रूप वाले
: विश्वेश्वर – सारे विश्व के ईश्वर
: वीरभद्र – बहादुर होते हुए भी शांत रूप वाले
: गणनाथ – गणों के स्वामी
: प्रजापति – प्रजाओं का पालन करने वाले
: हिरण्यरेता – स्वर्ण तेज वाले
: दुर्धुर्ष – किसी से नहीं दबने वाले
: गिरीश – पहाड़ों के मालिक
: गिरिश – कैलाश पर्वत पर सोने वाले
: अनघ – पापरहित
: भुजंगभूषण – सांप के आभूषण वाले
: भर्ग – पापों को भूंज देने वाले
: गिरिधन्वा – मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले
: गिरिप्रिय – पर्वत प्रेमी
: कृत्तिवासा – गजचर्म पहनने वाले
: पुराराति – पुरों का नाश करने वाले
: भगवान् – सर्वसमर्थ षड्ऐश्वर्य संपन्न
: प्रमथाधिप – प्रमथगणों के अधिपति
: मृत्युंजय – मृत्यु को जीतने वाले
: सूक्ष्मतनु – सूक्ष्म शरीर वाले
: जगद्व्यापी – जगत् में व्याप्त होकर रहने वाले
: जगद्गुरू – जगत् के गुरू
: व्योमकेश – आकाश रूपी बाल वाले
: महासेनजनक – कार्तिकेय के पिता
: चारुविक्रम – सुन्दर पराक्रम वाले
: रूद्र – भक्तों के दुख देखकर रोने वाले
: भूतपति – भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी
: स्थाणु – स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले
: अहिर्बुध्न्य – कुण्डलिनी को धारण करने वाले
: दिगम्बर – नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले
: अष्टमूर्ति – आठ रूप वाले
: अनेकात्मा – अनेक रूप धारण करने वाले
: सात्त्विक – सत्व गुण वाले
: शुद्धविग्रह – शुद्धमूर्ति वाले
: शाश्वत – नित्य रहने वाले
: खण्डपरशु – टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले
: अज – जन्म रहित
: पाशविमोचन – बंधन से छुड़ाने वाले
: मृड – सुखस्वरूप वाले
: पशुपति – पशुओं के मालिक
: देव – स्वयं प्रकाश रूप
: महादेव – देवों के भी देव
: अव्यय – खर्च होने पर भी न घटने वाले
: आशुतोष – तुरंत प्रसन्न होनेवाला
: पूषदन्तभित् – पूषा के दांत उखाडऩे वाले
: अव्यग्र – कभी भी व्यथित न होने वाले
: दक्षाध्वरहर – दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाले
: हर – पापों व तापों को हरने वाले
: भगनेत्रभिद् – भग देवता की आंख फोडऩे वाले
: अव्यक्त – इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले
: सहस्राक्ष – अनंत आँख वाले
: सहस्रपाद – अनंत पैर वाले
: अपवर्गप्रद – कैवल्य मोक्ष देने वाले
: अनंत – देशकालवस्तुरूपी परिछेद से रहित
: तारक – सबको तारने वाला
: परमेश्वर – सबसे परे ईश्वर

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