जया पार्वती व्रत पूजा विधि
व्रत वाले दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सुहागिन स्त्रियां तथा कुंवारी कन्याएं स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद घर के पूजा स्थल की अच्छी तरह साफ-सफाई करके वहां भगवान भोलेनाथ और पार्वती मां की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
फिर शिव पार्वती पर कुमकुम, चंदन, रोली और पुष्प चढ़ाएं। तत्पश्चात नारियल और अनार अर्पित करें। ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करते हुए भोलेनाथ और पार्वती का मन में स्मरण करें।
माना जाता है कि जया पार्वती व्रत के समापन पर किसी ब्राह्मण को भोजन कराने और यथासंभव वस्त्र दान से भगवान की कृपा से अखंड सौभाग्य और संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
जया पार्वती व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक नगर में वामन नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसके घर में सभी सुख थे लेकिन केवल संतान की ही कमी थी। इस बात का दुख उन दोनों पति-पत्नी को बहुत था। एक बार नारद जी उनके घर गए। तब दोनों पति-पत्नी ने मिलकर देवर्षि नारद जी की खूब सेवा की। फिर उन्होंने नारद जी से अपने मन की बात कही।
तब नारद जी ने उन्हें बताया कि, इस नगर के बाहर एक जंगल है और उस जंगल के दक्षिणी हिस्से में भगवान शिव माता पार्वती के साथ ‘लिंग’ रूप में विराजमान हैं। तुम दोनों उनकी पूजा करो तो तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी।
नारद जी से यह सब सुनकर दोनों पति-पत्नी वन में जाकर भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा करने लगे और ऐसा करते-करते 5 साल बीत गए।
फिर एक दिन ब्राह्मण पूजा के लिए फूल लेने जा रहा था तो उसे एक सांप ने डस लिया जिससे वह बेसुध हो गया। बहुत समय तक ब्राह्मण की राह देखने के बाद ब्राह्मणी अपने पति की तलाश में निकली और फिर अपने पति को बेसुध देखकर दुखी होने लगी। ब्राह्मणी ने विलाप करते हुए वनदेवता और माता पार्वती का स्मरण किया।
इस प्रकार ब्राह्मणी को दुखी देखकर और उसका विलाप सुनकर माता पार्वती तथा वनदेवता उसके समक्ष प्रकट हुए और ब्राह्मण को जीवित कर दिया। फिर दोनों पति-पत्नी ने साथ में माता पार्वती की पूजा की। इससे खुश होकर माता पार्वती ने उनसे वरदान मांगने को कहा। तब दंपति ने माता पार्वती से संतान प्राप्ति का वर मांगा।
उनका वर सुनकर माता पार्वती ने दोनों पति-पत्नी को विजया पार्वती व्रत के बारे में बताया। तब ब्राह्मण ने अपनी पत्नी के साथ आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि से लेकर विधिपूर्वक यह व्रत किया। जिसके फलस्वरूप उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।
तभी से मान्यता है कि इस व्रत को करने वाली सुहागिन महिला को अखंड सौभाग्य और पुत्ररत्न की प्राप्ति का वरदान मिलता है।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)