प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को केरल पहुंचे और गुरुवायुर मंदिर में पहुंचकर पूजा अर्चना की। इससे मंदिर चर्चा में आ गया। वे इससे पहले भी गुरुवायुर मंदिर जा चुके हैं और अपने वजन के कमल के फूल बालगोपालन को समर्पित कर चुके हैं। इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है यहां खास समुदाय के लोग ही जा सकते हैं।
यह मंदिर केरल के त्रिशूर जिले के गांव गुरुवायुर में है। गुरुवायूर केरल के साथ ही देश का प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है। यह मंदिर त्रिशूर से करीब 25 किलोमीटर दूर है। गुरुवायुर मंदिर करीब 5 हजार साल पुराना है।
माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना देवगुरु बृहस्पति ने की थी।
मलयालम शब्द गुरुवायुर का अर्थ होता है जिस जमीन पर गुरुदेव ने वायु की मदद से स्थापना की। एक पौराणिक कथा के अनुसार कलयुग के प्रारंभिक काल में वायुदेव और देवगुरु बृहस्पति को कृष्णजी की एक मूर्ति मिली जोकि द्वापर युग की थी। दोनों ने एक मंदिर बनवाकर मूर्ति की स्थापना की। वायु देव और देव गुरु के नाम पर ही भगवान को गुरुवायुरप्पन कहा गया जबकि स्थान का नाम गुरुवायुर पड़ गया।
मलयालम शब्द गुरुवायुर का अर्थ होता है जिस जमीन पर गुरुदेव ने वायु की मदद से स्थापना की। एक पौराणिक कथा के अनुसार कलयुग के प्रारंभिक काल में वायुदेव और देवगुरु बृहस्पति को कृष्णजी की एक मूर्ति मिली जोकि द्वापर युग की थी। दोनों ने एक मंदिर बनवाकर मूर्ति की स्थापना की। वायु देव और देव गुरु के नाम पर ही भगवान को गुरुवायुरप्पन कहा गया जबकि स्थान का नाम गुरुवायुर पड़ गया।
मंदिर में भगवान गुरुवायुरप्पन बालरूप में विराजित हैं यानि यहां बाल गोपाल की पूजा की जाती है। बालगोपालन की मूर्तिं के चार हाथ हैं जिसमें एक हाथ में शंख, दूसरे हाथ में सुदर्शन चक्र, तीसरे हाथ में कमल पुष्प और चौथे हाथ में गदा है। गुरुवायुर मंदिर को भूलोक वैकुंठम भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है धरती का वैकुण्ठ लोक।
गुरुवायुर मंदिर करीब 5 हजार साल पुराना है। 17 वीं शताब्दी में इसका पुननिर्माण किया गया। पौराणिक मान्यता के मुताबिक देवगुरु बृहस्पति के आग्रह पर मंदिर का निर्माण खुद विश्वकर्मा ने किया था। खास बात ये है कि गुरुवायुर मंदिर में दूसरे धर्मों के लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है। यहां हिंदुओं के अलावा और कोई नहीं जा सकता।