पौराणिक कथा के अनुसार, जब इन्द्र असुरों के राजा बलि से युद्ध हार गए थे तब वे स्वर्गलोक की वापसी के लिए भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे और अपनी व्याथा सुनाई। इसके बाद भगवान विष्णु ने इन्द्र की परेशानी का हल निकालने के लिए समुद्र मंथन का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि समुद्र मंथन के दौरान अमृत निकलेगा, जो देवताओं को फिर से स्वर्ग दिला सकता है।
भगवान विष्णु द्वारा बताए गए रास्ते का प्रस्ताव को लेकर इन्द्र दैत्यों के राजा बलि के पास गए और समुद्र मंथन का प्रस्ताव रखा। इसके साथ ही उन्होंने अमृत की बात बताई। अमृत की बात सुनकर दैत्यों ने समुद्र मंथन के लिए देवताओं का साथ देने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद मदरांचल को मथानी और विष्णु के वासुकि नाग को रस्सी बनाकर समुद्र मंथन शुरू किया गया।
समुद्र मंथन से तो बहुत चीजें निकली लेकिन सबकी नजर अमृत पर थी क्योंकि सबको पता था कि अमृत अमर बना देगा। सबसे अंत में अमृत कलश निकला, जिसे धन्वन्तरिजी लेकर आए। धन्वन्तरिजी के हाथ में अमृत कलश देखते ही दैत्यों ने छीन लिया। इसके बाद अमृत को लेकर दैत्यों में झगड़ा शुरू हो गया जबकि देवता निराश खड़ा होकर देख रहे थे।
इस परिस्थिति को देखते हुए भगवान विष्णु ने एक सुंदर नारी का रूप धारण कर दैत्यों के पास पहुंचे। स्त्री रूप धारण किए भगवान विष्णु ने दैत्यों से अमृत समान रूप से बांटने की बात कही। इसके बाद दैत्यों ने भगवान विष्णु के मोहिनी रूप को देखकर अमृत कलश उन्हें सौंप दिया। इसके बाद भगवान विष्णु सारा अमृत देवताओं को पिला दिया। इस तरह हरि से स्त्री रूप धारण कर देवताओं का कल्याण किया।