दरअसल कोराना संक्रमण के बढ़ते खतरे के चलते हरिद्वार महाकुंभ में विदेशी संतों की संन्यास दीक्षा पर रोक लगा दी गई है। जानकारी के अनुसार अमेरिका और रूस समेत दुनियाभर से 250 विदेशियों ने संन्यास दीक्षा संस्कार के लिए श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा को सहमति प्रस्ताव भेजे, इस पर जूना अखाड़ा ने प्रस्तावों को फिलहाल टाल दिया है।
जूना अखाड़ा की ओर से फिलहाल पांच अप्रैल को केवल देशभर से तीन हजार नागाओं को दीक्षा दी जाएगी। अखाड़ा स्तर पर इसकी तैयारियां शुरू हो गई हैं। ज्ञात हो कि श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा संन्यासियों का सबसे बड़ा अखाड़ा है। दुनियाभर के संत और अनुयायी अखाड़ा से जुड़े हैं।
हर बार कुंभ में देश और विदेश से आने वाले संतों को संन्यास की दीक्षा दी जाती है। लेकिन इस बार हरिद्वार कुंभ में कोविड का साया मंडरा रहा है। देश-दुनिया में कोरोना के बढ़ते केसों को देखते हुए अखाड़ा ने संन्यास दीक्षा समारोह को सीमित कर दिया है। ऐसे में सुरक्षा के चलते विदेशी संतों के हरिद्वार आने से मना कर दिया है।
जूना अखाड़े से मिली जानकारी के मुताबिक रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, इंग्लैंड, जर्मनी, पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका समेत कई देशों से 250 लोगों ने हरिद्वार कुंभ में संन्यास की दीक्षा के लिए सहमति आवेदन किए हैं। अखाड़ा की कार्यकारिणी ने फिलहाल विदेशियों के प्रस्ताव को टाल दिया है और विदेशियों को आने पर मनाही कर दी है।
वहीं जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक एवं अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरिगिरि का कहना है कि नागा संन्यासियों के संन्यास की दीक्षा का पांच अप्रैल को मुहूर्त निकाला गया है। समारोह में तीन हजार नागाओं को संन्यास की दीक्षा दी जाएगी।
इसके लिए देशभर में फैली अखाड़ा की शाखाओं के माध्यम से पंजीकरण कराया जा रहा है। पांच अप्रैल को यह संस्कार दीक्षा जूना अखाड़ा की प्राचीन शाखा दुख हरण हनुमान मंदिर मायापुरी हरिद्वार स्थित घाट पर होगी।
इस दौरान सुबह आठ बजे से आयोजन होगा। जिसमें सबसे पहले जनेऊ-मुंडन संस्कार के बाद विधि विधान से सनातनी बनाया जाएगा। इसके बाद पिंडदान कराया जाएगा। दीक्षा के बाद संत घर-परिवार की मोहमाया त्यागकर सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करेंगे।
वहीं 25 अप्रैल को भी संन्यास दीक्षा संस्कार होगा, जो संत पांच अप्रैल को होने वाले संस्कार में शामिल नहीं हो पाएंगे वो 25 अप्रैल में आएंगे।
संन्यास की दीक्षा लेने के बाद नागा संत अपनी साधना में लीन हो जाएंगे। साथ ही संतों को अखाड़ा की शाखाओं में विभाजित कर दिया जाएगा। ज्ञात हो कि नागा संत कुंभ को छोड़कर अन्य मेलों में नहीं दिखते हैं। वहीं एक शहर में बारह साल बाद कुंभ होता है। और नागा कुंभ अवधि में ही आते हैं और बाकी समय अखाड़ा की शाखा क्षेत्र में साधना करते हैं।
आपको बता दें कि श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा की यूरोप और एशिया के कई देशों में संपत्ति है। सबसे अधिक पांच लाख हेक्टेयर भूमि नेपाल में है। अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहंत हरिगिरि बताते हैं, विदेशी अनुयायियों ने ही जमीनें दान में दी हैं। रूस समेत कई देशों के अनुयायियों ने वहां मंदिर बनाने की सहमति मांगी है।
इसके अलावा विदेशी हरिद्वार महाकुंभ में शामिल भी होना चाहते हैं, लेकिन कोविड के चलते अखाड़ा की कार्यकारिणी की ओर से अभी उनको आने की सहमति नहीं दी है।
इधर, बेन बाबा स्विट्जरलैंड से पैदल कुंभ स्नान करने पहुंचे…
वहीं इस रोक के लगने से पहले ही स्विट्जरलैंड के बेन बाबा ने स्विट्जरलैंड से हरिद्वार तक का सफर अपने कदमों से पूरा कर लिया। और वर्तमान में वे मंदिरों, मठों में जाकर भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का अध्ययन कर रहे हैं। वे हिमाचल के कांगड़ा से 25 दिनों के पैदल सफर के बाद हरिद्वार पहुंचे हैं।
बेन किसी अखाड़े से जुड़े नहीं हैं। इसलिए हरिद्वार में कभी हरकी पैड़ी तो कभी गंगा किनारे टहलते रहते हैं। गंगा किनारे घाटों को अपना ठिकाना बनाया है। बेन को नंगे पैर गायत्री मंत्र का जाप करते और गंगा आरती करते देख श्रद्धालु भी अचंभित होते हैं।
33 वर्षीय बेन बताते हैं भारतीय संस्कृति, परंपरा और सभ्यता अद्भुत है। योग, ध्यान और भारतीय वेद पुराण सबसे मूल्यवान हैं। इनमें अलौकिक ताकत है। बेन बाबा पेशे से वेब डिजाइनर हैं। स्विट्जरलैंड की लग्जरी जिंदगी छोड़कर अध्यात्म और योग में रम गए हैं।
जानकारी के अनुसार भारतीय संस्कृति, सनातन धर्म और योग से प्रभावित बेन बाबा पांच साल में करीब साढ़े छह हजार किलोमीटर पैदल सफर कर हरिद्वार कुंभ स्नान करने पहुंचे हैं। उन्होंने सनातन धर्म और योग का प्रचार-प्रसार को जिंदगी का मकसद और पैदल विश्व यात्रा को अपनी साधना बना लिया है।
योग ध्यान और भारतीय वेद पुराण से प्रभावित होकर बेन बाबा ने भारत भ्रमण का लक्ष्य बनाया। इसके लिए उन्होंने स्विट्जरलैंड में ही हिंदी सीखी। बेन बाबा न केवल हिंदी बोलते हैं, बल्कि उन्हें गायत्री मंत्र और गंगा आरती कंठस्थ याद है।
पांच साल पहले स्विट्जरलैंड से भारत के लिए पैदल सफर शुरू किया और फिर लंबे सफर के बाद भारत के पहुंचे। पांचवें साल में भारत में भ्रमण कर रहे हैं।
बेन बाबा ने बताया कि स्विट्जरलैंड से वे यूरोप से टर्की, इरान, आर्मेनिया, जॉर्जिया, रसिया, किर्गिस्तान, उबेकिस्तान, कजाकिस्तान, चायना, पाकिस्तान समेत 18 मुल्क पार करने के बाद भारत पहुंचे। जिस देश का बॉर्डर आने वाला होता था पहले ही उसके लिए वीजा अप्लाई कर देते थे।
बेन बाबा के अनुसार स्विट्जरलैंड में वे प्रति घंटे 10 यूरो कमाते थे। गाड़ी, घर और लग्जरी लाइफ थी। औसतन प्रति घंटे 10 डॉलर करीब 720 भारतीय रुपये कमाते थे। मन अंदर से बिल्कुल भी खुश नहीं था।
उनके अनुसार कुल मिलाकर यूरोप में पैसा के साथ ही लग्जरी जिंदगी तो है, लेकिन खुशी नहीं है। खुशी को पैसों से कभी नहीं खरीदा जा सकता है। खुशी तो योग और ध्यान से मिलती है। भारतीय संस्कृति और योग के बारे में पढ़ा और अध्यात्म एवं योग के लिए स्विट्जरलैंड छोड़ दिया। बेन पतंजलि से योग भी सीख रहे हैं।
वर्तमान में बेन के पास न तो पैसा है और न ही ठौर ठिकाना। पैदल सफर में जहां थकान लगी, वहीं अपना ठिकाना ढूंढ लेते हैं। मंदिर, गुरुद्वारा, आश्रम और स्कूल में रात बिताते हैं। कई बार जंगल और फुटपाथ पर ही खुले आसमान के नीचे रात बिताते हैं। पैदल सफर में रास्ते में खाने के लिए जिसने जो दिया उसे खाकर पेट भरते हैं।