सीजन का आखिरी अबूझ मुहूर्त 27 जून को है। यह भड्डाली नवमी के नाम से प्रसिद्ध है। इसे अबूझ मुहूर्त की श्रेणी में रखा गया है अर्थात इस दौरान भी विवाह आदि किए जा सकेंगे।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी देवशयनी के नाम से जानी जाती है। राजा बलि के यहां पर उसका आतिथ्य स्वीकार करने के लिए भगवान विष्णु चार माह विश्राम करते हैं। इसलिए क्षीरसागर में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और इससे पहले भगवान विष्णु सृष्टि का भार भगवान शिव को सौंप देते हैं। इस कारण से पृथ्वी पर 4 माह तक देव आराधना, धर्म, आध्यात्मिक, संस्कृति, तीर्थाटन, कल्पवास आदि का ही समय माना जाता है है। इस दृष्टि से इस समय भागवत कथा श्रवण एवं भजन पूजन करनी चाहिए। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है और आत्मा का उत्थान होता है।
27 को भड्डाली नवमी का अबूझ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला ने बताया कि पंचांग की गणना के अनुसार 29 जून को देव शयनी एकादशी रहेगी। धर्मशास्त्र की मान्यता से देखें तो देव शयनी एकादशी के बाद विवाह आदि कार्यों में विराम लग जाता है, क्योंकि इस बार अधिकमास की भी स्थिति बन रही है, इस दृष्टि से जून माह में विवाह के श्रेष्ठ मुहूर्त की संख्या केवल 5 हैं। इसी बीच अन्य धार्मिक कार्य भी इन्हीं दिनों में होंगे, उसके बाद देवउठनी एकादशी तक प्रतीक्षा करनी होगी। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 29 जून को गुरुवार के दिन स्वाति नक्षत्र एवं सिद्धि योग तथा तुला राशि के चंद्रमा की साक्षी में आएगी। देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास आरंभ हो जाता है, इस दृष्टि से विवाह आदि कार्य प्रतिबंधित माने जाते हैं।
देवशयनी एकादशी से चातुर्मास का आरंभ हो जाता है, क्योंकि इस बार चातुर्मास के साथ-साथ अधिकमास का भी अनुक्रम बन रहा है। इस दृष्टि से यह कुल मिलाकर 5 माह का धर्म, आध्यात्म, संस्कृति व तीर्थ के दर्शन के लिए श्रेष्ठ माना जाएगा, क्योंकि इस दौरान श्रावण का माह अधिकमास के अनुक्रम से स्थापित हो रहा है। यह समय भगवान शिव की साधना के साथ-साथ भगवान विष्णु की साधना का संयुक्त अनुक्रम स्थापित करने के लिए श्रेष्ठ अवसर रहेगा। इस दौरान कल्पवास या तीर्थ वास, तीर्थ प्रवास या तीर्थाटन आदि की दृष्टि के साथ ही गुरु दीक्षा, गुरु परंपरा, संस्कृति, सभ्यता व सनातन धर्म की ओर बढ़ने के लिए श्रेष्ठ समय रहेगा। इस दौरान इस समय तथा योग की साक्षी में अपने आत्मकल्याण के लिए विशिष्ट धार्मिक उपचार किए जा सकेंगे।
इस बार चातुर्मास के अंतर्गत आने वाले श्रावण में अधिकमास का अनुक्रम रहेगा। अधिकमास अर्थात शुद्ध श्रावण और अधिकमास का संयोग 19 वर्ष बाद बन रहा है। हालांकि 3 साल में आने वाले अधिकमास की स्थिति वर्षांतर के अनुक्रम से मास विशेष पर निर्भर करती है। इसकी गणना का पक्ष अलग-अलग हो सकता है। यह अधिकमास श्रावण में आने से विशेष रूप से पूजनीय एवं तीर्थ है तथा अध्यात्म की दृष्टि से अनुकूल है।